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माया-मुलायम के साथ कांग्रेस की नूरा-कुश्तियों, चुनाव सुधार में संशय भरे विमर्शों के बीच क्रिकेट से सचिन का संन्यास एक ऐसी घटना है जिसका जिक्र किए बिना सप्ताह का घटनाक्रम अधूरा है। वैचारिक बहस के कमरों से बाहर देश और दुनियाभर की हवाओं में एक अद्भुत विदाई गीत तैर रहा है। कौन इसे अनसुना करेगा? भारत में कौन है जिसने कभी बल्ला नहीं पकड़ा या मैच के रोमांच को जीने के बाद भीगी हुई आंखों से तालियां नहीं बजाईं?
व्यक्ति पूजा बुरी बात है, इसलिए जरूरी है कि सचिन को पूजा ना जाए बल्कि गाढ़े परिश्रम से लिखी उस कहानी को पढ़ा जाए जिसकी वजह से समाज ने उन्हें पलकों पर बैठाया।
15 वर्ष की आयु में क्रिकेटीय जगत में पदार्पण की यह वह कहानी है जो पाकिस्तान के तूफानी गेंदबाजों के सामने डटने के बालहठ से शुरू होती है, और खेल के हर शिखर पर भारतीय पताका फहराने और पश्चिम का दंभ तोड़ने पर खत्म होती है।
कुछ लोग दुनिया को खेल मानते हैं और कुछ की दुनिया ही खेल है। सचिन को उस दूसरी दुनिया ने ही देवता का दर्जा दिया। महान आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर डॉन ब्रेडमैन को जब उनमें अपनी झलक मिली तो क्रिकेट के एकेश्वरवादियों को मानो अपना भगवान मिल गया और करोड़ों भक्तों को यह संतोष कि देवता (क्रिकेट का) भारत में ही जन्मा है, लेकिन यहीं हम चूक जाते हैं। देवता या अवतार की कहानियों में बंधकर हम उस मानवीय जिजीविषा और समर्पण की उन सीढि़यों की ओर से आंखें मूंद लेते हैं जो पुरुष को महापुरुष के स्तर तक ले जाती हैं। शुरुआत से संन्यास तक सचिन का पूरा क्रिकेटीय जीवन चमत्कारी शिखरों तक अथक चढ़ाई का लंबा यात्रावृत्र ही तो है। पुरुषार्थ से कीर्तिस्तंभ खड़े करने की इस विजय यात्रा में संयम, शालीनता के भारतीय संस्कार भी हैं और बदले में मिला अथाह प्यार भी। सचिन रमेश तेंडुलकर ने एक खेल के माध्यम से वह बिन्दु छू लिया जहां सीमाएं मिट जाती हैं और पूरी दुनिया एक हो जाती है। सचिन, हम आपको पूजना नहीं चाहते क्योंकि सिर्फ क्रिकेट ही जीवन नहीं, लेकिन आपके दिए, परिश्रम में पगे वह मंत्र दोहराना चाहते हैं जो जीवन के विविध क्षेत्रों में सकारात्मक ऊंचाइयों की ओर ले जाते हैं। धन्यवाद सचिन, धड़कते दिलों, भिंची मुट्ठियों और भीगी आंखों को अनगिनत मौकों पर गौरव का अहसास कराने के लिए। मैदान कोई भी हो, खेल कोई भी, आपके पाठ हमें याद रहेंगे।
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