|
मुस्लिम संस्थाओं ने लिया निकाह की उम्र कम कराने के लिए न्यायालय जाने का निर्णय
केरल के कुछ मुस्लिम संगठनों ने मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र के नियम को 18 वर्ष से कम करने के लिए उच्चतम न्यायालय में जाने का निर्णय लिया है। ये कट्टपंथी मुस्लिम संगठन संविधान में मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र के नियम को बदलवाना चाहते हैं। वहीं केरल के बहुत से मुसलमान इस पक्ष में नहीं है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान में लड़कियों की शादी करने की उम्र 18 वर्ष रखी गई है। इससे पहले की गई शादी को कानूनी रूप से मान्य नहीं होती है। केरल के कुछ मुस्लिम संगठन मुसलमान लड़कियों के लिए इस उम्र को कम कराना चाहते हैं। ताकि उनकी शादी 18 वर्ष से कम उम्र में की जा सके। केरल के भाजपा अध्यक्ष वी मुरलीधरन का कहना है कि कुछ मुस्लिम संगठन केरल में तालिबानी व्यवस्था कायम करना चाहते हैं। कौन किस पंथ को माने या ना माने, यह उसका व्यक्तिगत मामला है। यह संविधान के विरुद्ध नहीं हैं, लेकिन इस तरह की बात करना असंवैधानिक है।
दरअसल यह विवाद केरल में दस मुस्लिम संगठनों की बैठक में लिए गए निर्णय के बाद उठा। जानकारी के अनुसार बाल विवाह पर रोक लगाने के लिए वर्ष 2006 के अधिनियम में यह व्यवस्था की गई है कि किसी भी पंथ और धर्म की लड़की की शादी करने की आयु 18 वर्ष होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो उस विवाह को बाल विवाह माना जाएगा। मुस्लिम संगठनों का कहना है कि इस तरह के नियम बनाना मुसलमानों के मौलिक अधिकारों का हनन करना है। सुन्नी मुसलमानों के संगठन ह्यपर्सनल लॉ प्रोटेक्शन कमेटीह्ण के अध्यक्ष कोटूमाला बापू मुसलियर का कहना है कि शरिया के अनुसार लड़कियों की शादी के लिए कोई उम्र निर्धारित नहीं की गई है। इसके अलावा अंग्रेजी राज के समय से चले आ रहे मुस्लिम विवाह अधिनियम में भी ऐसा कुछ नहीं हैं। जब इस पूरे मसले पर कांग्रेस और माकपा के लोगों से बात करने की कोशिश की गई तो कि किसी ने भी स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा, क्योंकि केरल में ये दोनों राजनीतिक दन मुस्लिमों के हर सही और गलत कदम के साथ खड़े दिखाई देकर अपने को सेकुलर दिखाना चाहते हैं। ये सब जानते हैं कि माकपा के नेता कट्टवादी मुस्लिम नेता मदनी के लिए किसी तरह बिछे-बिछे रहे हैं, लेकिन केरल के समझदार लोगों ने निकाह की उम्र कम करने संबंधी बयानबाजी पर तीखा आक्रोश व्यक्त किया है। प्रदीप कृष्णन
टिप्पणियाँ