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पिछले दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री पद के दावेदार श्री नरेन्द्र मोदी और वर्तमान यूपीए सरकार के मंत्रियों के बीच विकास के आंकड़ों को लेकर ठन गई। नरेन्द्र मोदी ने कहा था- एनडीए के शासनकाल के दौरान विकास दर 8.4 प्रतिशत के बाद से वर्तमान सरकार ने उसे 2012-13 तक आते आते 5 प्रतिशत तक पहंुचा दिया है। उसे आगे बढ़ाते हुए (भारतीय जनता पार्टी शासित) मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह कहा है कि वर्तमान में जो 5 प्रतिशत विकास दर है, उसमें भी भारतीय जनता पार्टी शासित प्रदेशों का ही योगदान ज्यादा है, जिनकी विकास दर अभी भी दो अंकों (10 प्रतिशत से ज्यादा) बनी हुई है।
चिदंबरम का जवाब
मोदी के इस दावे के बाद पी. चिदंबरम और यूपीए सरकार के मंत्रियों ने जवाबी हमला बोलते हुए मर्यादाओं को भी लांघ दिया। इस आंकड़ों की ह्यफर्जी मुठभेड़ह्ण तक करार दे दिया। चिदंबरम का कहना था कि यूपीए के शासन के दौरान सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर पहले से कहीं ज्यादा रही। यूपीए-1 के दौरान औसत संवृद्घि दर 8़4 प्रतिशत और यूपीए-2 के पहले 4 साल के दौरान औसत संवृद्घि दर 7़3 प्रतिशत रिकार्ड की गई है।
यूपीए की असलियत
यूपीए-1 ने 2004 में सत्ता संभाली थी। यूपीए सरकार के रिपोर्ट कार्ड को देखा जाए तो उसकी नाकामी स्पष्ट दिखाई देती है। सामान्यत: जब किसी विद्यार्थी का रिपोर्ट कार्ड देखकर उसकी प्रगति का आकलन लगाना हो तो, उसके अंकों में वृद्घि होने पर उसे अच्छी प्रगति मानी जायेगी, लेकिन यदि अंक कम हो रहे हों तो उसकी प्रगति संदिग्ध मानी जाएगी। इस आधार पर यदि हम आकलन करें तो देखते हैं कि वाजपेयी शासनकाल के अंतिम वर्षों में, जब उनकी आर्थिक नीतियों के अच्छे परिणाम आने शुरू हुए, विकास दर बढ़ती रही, जबकि यूपीए सरकार अंतिम वर्षों में यह ज्यादातर घटती रही। यूपीए सरकार को जो अर्थव्यवस्था की ऊंची विकास दर मिली, उसने उसमें वृद्घि करने की बजाए अंतिम वर्षों में कमी ही की।
यूपीए शासन के अंतिम तीन वर्षों में, जब उनकी जनविरोधी आर्थिक नीतियों के दुष्परिणाम आने शुरू हुए, यह विकास दर पिछड़ती हुई क्रमश: 6़2, 5़0 और 4़5 (संभावित 2013-14) प्रतिशत तक गिर गयी। यही नहीं, एनडीए शासनकाल में कई कारणों से अर्थव्यवस्था में अच्छे संकेत आने लगे थे जिसके कारण उस समय ह्यफील गुडह्ण की बात कही जाने लगी थी। हालांकि जब तक देश के अंतिम व्यक्ति तक विकास का लाभ न पहुंचे, संतोष नहीं किया जा सकता। उस ह्यफील गुडह्ण के कुछ बिन्दुओं का जिक्र करना भी जरूरी होगा, क्योंकि विकास के आंकड़ों का सही आकलन तभी हो पायेगा।
भारत में लम्बे समय तक सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर अत्यंत निचले स्तर पर बनी रही। उल्लेखनीय है कि पहली पंचवर्षीय योजना से लेकर पांचवीं पंचवर्षीय योजना तक इसकी संवृद्घि दर 5 प्रतिशत का आंकड़ा पार नहीं कर पाई। उसके बाद भी आठवीं पंचवर्षीय योजना के अपवाद को छोड़कर संवृद्घि दर 5़5 प्रतिशत के पार नहीं पहुंची। 1998-99 में जब एनडीए की सरकार आई तो पहली बार राष्ट्रीय आय की विकास दर 5-6 प्रतिशत की बाधा लांघकर आगे बढ़ गई, जैसे 1998-99 में 6.7 प्रतिशत और 1999-00 में 7.6 प्रतिशत। अगले तीन साल कृषि के निराशाजनक परिणामों के कारण विकास दर फिर सिमटने लगी, लेकिन 2003-04 में वह फिर से 8.2 प्रतिशत पर पहुंच गई। भारतीय मूल के एक अमरीकी अर्थशास्त्री प्रो़ राज कृष्णा ने लम्बे समय तक भारत की आर्थिक संवृद्घि की नीची दर को एक नाम भी दे दिया और वह था ह्यहिन्दू रेट ऑफ ग्रोथह्ण। एनडीए के शासन की खासियत यह रही कि उस दौरान देश तथाकथित 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' के दुष्चक्र से बाहर आ सका और विकास को गति मिलने से बाद के कुछ सालों तक देश में यह 8 से 9 प्रतिशत के बीच बनी रही।
अतिरेक से घाटे की ओर
आजादी के बाद देश के सामने ऐसा मौका शायद ही कभी आया कि लगातार तीन वषोंर् तक विदेशी भुगतान शेष में अतिरेक हो सका। भुगतान शेष में अतिरेक तब होता है, जब देश की डालरों (या अन्य विदेशी मुद्राओं) की देनदारियां उनकी प्राप्तियों से कम रही हों। एनडीए शासन के दौरान लगातार तीन वर्ष तक, 2001-02 से 2003-04 के दौरान भुगतान शेष अतिरेक हो गया। ऐसा इसलिए संभव हो सका क्योंकि विदेशी व्यापार में घाटा होने के बावजूद हमारे सॉफ्टवेयर निर्यातों से प्राप्तियां और अनिवासी भारतीयों से आने वाला धन व्यापार घाटे को न केवल पाटने लगा, बल्कि उस घाटे के बाद भी देश को डालर बचने लगे। लेकिन यूपीए शासन में देश का वह सौभाग्य जारी न रह सका और व्यापार घाटा इतना ज्यादा बढ़ गया कि उसे पाटने में अनिवासी भारतीयों की बचतें और सॉफ्टवेयर निर्यातों से प्राप्तियां कहीं कम रह गयी। वर्ष 2003-04 में 14 अरब डालर के अतिरेक से आज वर्ष 2012-13 में हम 88़2 अरब डालर के भुगतान घाटे पर पहुंच चुके हैं।
बढ़ते भुगतान घाटे का असर यह हो रहा है कि देश पर विदेशी कर्ज बढ़ता जा रहा है। एनडीए शासन के दौरान विदेशी कर्ज मात्र 100 अरब डालर के आसपास से 2013 तक बढ़ता हुआ 390 अरब डालर तक पहुंच चुका है।
मुद्रास्फीति
यूपीए के पुरोधा हालांकि अपने शासन के दौरान ऊंची औसत विकास के लिए अपनी पीठ थपथपाने में कोई कमी नहीं छोड़ते, हालांकि दो-तीन वर्षों से यह विकास पर लगातार घटती जा रही है, और यह कहा जाने लगा है कि भारत दुबारा से अपनी वही पुरानी तथाकथित 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' पर वापस आ रहा है। दूसरी तरफ मुद्रास्फीति को रोकने में पूरी तरह से असफल यूपीए सरकार इसके लिए कभी अंतरराष्ट्रीय कारणों को तो कभी अपनी विरोधियों को इसका दोषी ठहराती है। एनडीए का शासन केवल विकास दर को बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि देश में मुद्रास्फीति को थाम कर 3 से 4 प्रतिशत तक लाने के लिए भी याद किया जाता है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले के दो-तीन दशकों में लगातार कई वर्ष मुद्रास्फीति के नीचे रहने का कोई उदाहरण नहीं है। मुद्रास्फीति से निजात पाकर देश का आम आदमी एक प्रकार से राहत महसूस कर रहा था, आज यूपीए शासन में दो अंकों में पहुंची मुद्रास्फीति से त्रस्त अपने जीवन की आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पा रहा।
घटती ब्याज दरों से निवेश को बल
कुशल एवं ईमानदार आर्थिक प्रबंधन के चलते मुद्रास्फीति की नीची दर के कारण ब्याज दरें भी घटना शुरू हो गईं। नीची ब्याज दरों से न केवल औद्योगिक निवेश, बल्कि 'इन्फ्रास्ट्रक्चर' निवेश को भी बल मिला। निजी साझेदारी से देश में 5 वर्ष के कालखंड में सबसे ज्यादा सड़कों का निर्माण इस दौरान हुआ। चिरस्थायी उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बढ़ने से औद्योगिक विकास को बल मिला। पिछले कई वर्षों में महंगाई की लगतार ऊंची दर बने रहने के कारण भारत की शेष विश्व की तुलना में प्रतिस्पर्द्घा शक्ति कहीं कम हो गई है। लागतें बढ़ रही हैं, निवेश और उपभोक्ता मांग थम सी गई है। आयात बढ़ रहे हैं और निर्यात घट रहे हैं। नतीजा यह है कि औद्योगिक संवृद्घि दर जो लगातार 9-10 प्रतिशत से अधिक बनी हुई थी, 2011-12 में 2़7 प्रतिशत और 2012-13 में मात्र 1 प्रतिशत पर पहुंच चुकी है।
यूपीए काल में बढ़ता भ्रष्टाचार
यूपीए सरकार के शासनकाल के दौरान भ्रष्टाचार अपनी तमाम हदें पार करता जा रहा है। इस दौरान घोटालों की कुल राशि के अलग-अलग आकलन हैं। वैश्विक तौर पर सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त भ्रष्टाचार का सूचकांक 'ट्रांस्पेरेंसी इंटरनेशनल' द्वारा प्रकाशित किया जाता है। उसके अनुसार भारत में भ्रष्टाचार का सूचकांक एनडीए के शासन के समय 2़7 से बढ़ता हुआ 2012 में 3़6 तक पहुंच चुका है। 'ट्रांस्पेरेंसी इंटरनेशनल' की परिभाषा के अनुसार भारत अब भ्रष्टतम देशों की श्रेणी में पहुंच रहा है।
किसी भी अर्थव्यवस्था में विकास दर के आंकड़े उसके विकास का पैमाना नहीं होते। विकास के लिए जरूरी है कि इसके साथ सभी का कल्याण भी सुनिश्चित हो। यूपीए शासनकान के दौरान न केवल अंततोगत्वा विकास दर घटने लगा है, वहीं देश में बढ़ता भ्रष्टाचार, महंगाई, विदेशी कर्ज और लगातार घटती देश की साख, इस समय सबसे बड़ी चिंता का विषय बने हुए हैं। विकास दर के आंकड़ों को चिदबरम के पैमाने से न बताने को वे आंकड़ों से 'फर्जी मुठभेड़' की संज्ञा दे देते हैं, लेकिन तमाम उन मुद्दों के बारे में जो देश को खोखला किए जा रहे हैं, यूपीए सरकार के उन पुरोधा मंत्रियों की चुप्पी को क्या कहा जाए, वे स्वयं ही बताएं। डॉ़ अश्विनी महाजन
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