कौन बनेंगी विजेता शेख हसीना या खालिदा जिया?

Published by
Archive Manager

दिंनाक: 21 Sep 2013 16:14:20

जनवरी 2014 में आयोजित होंगे बंगलादेश के आम चुनाव

भारतीय उपखंड के लिये 2013 और 2014 आम चुनाव के वर्ष होंगे। 2013 में पाकिस्तान के चुनाव सम्पन्न हो गये। अब 2014 में भारत और बंगलादेश में आम चुनाव की चर्चा है। अमरीका ने जब से यह तय किया है कि उसकी सेना 2014 में अफगानिस्तान से लौटना प्रारंभ कर देगी तब से वहां चुनाव की चर्चा चल पड़ी है। वर्तमान राष्ट्रपति करजई का कार्यकाल पूरा होते ही वहां भी जनता के प्रतिनिधियों की ओर से नई सरकार का गठन हो जाएगा। इसलिए कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भारतीय उपखंड में चुनावी लहर अपने यौवन पर होगी। इस बार बंगलादेश का चुनाव, जो जनवरी 2014 में होगा, अत्यंत दिलचस्प रहेगा। बंगलादेश के नेता और राजनीतिक दलों में कोई परिवर्तन नहीं होने वाला है। अवामी लीग वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी और बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व में। दोनों ही महिलाओं को बंगलादेश का नेतृत्व करने का अवसर मिलेगा। दोनों नेता इस बार के चुनाव में संभवत: अपने बेटों को अपने उत्तराधिकारी के रूप में मैदान में उतार सकती हैं। शेख हसीना के बेटे साजिद पिछले दिनों शायद इसी महत्वाकांक्षा के साथ अमरीका से ढाका आए थे। वहां वह कुछ दिन रहे और फिर अमरीका लौट गए हैं। साजिद कुछ वर्षों से अमरीका में हैं, लेकिन इस बार उनके ढाका आते ही यह चर्चा चल पड़ी थी कि आगामी आम चुनाव में उनकी माता, जो इस समय प्रधानमंत्री हैं, अपने सुपुत्र को अपना उत्तराधिकारी बना कर चुनावी दंगल में उतार सकती हैं। खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान, जो लंदन में रहते हैं, ने भी पिछले दिनों ढाका की यात्रा की थी। तारिक ने ढाका आने का कारण अपनी मां की बीमारी बताया था। तारिक पर भ्रष्टाचार के अनेक आरोप हैं। इसलिए यहां यह भी कहा जा रहा है कि इस बीच यदि चुनाव के समय कामचलाऊ सरकार नहीं बनाई गई तो तारिक का जेल जाना तय है। लेकिन पिछले दिनों जून और जुलाई के उपचुनाव में बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने गाजीपुर औद्योगिक क्षेत्र की सीट जीतकर अवामी लीग को तगड़ा झटका दिया था, तब से यह महसूस किया जाने लगा था कि अवामी लीग को आने वाला आम चुनाव भारी पड़ सकता है। एक फैक्ट्री में 1100 मजदूरों के जल जाने के पश्चात अवामी लीग की सरकार को बड़ी नाराजगी झेलनी पड़ी थी। इसलिए ऐसा माना जा रहा था कि अगला चुनाव जीतना अवामी लीग के लिए कठिन होगा। लेकिन पिछले दिनों जमाते इस्लामी को लेकर हसीना वाजेद ने जो पैंतरा बदला है उससे अब यह विश्वास पैदा गया है कि अगली सरकार भी अवामी लीग की ही बन सकती है। बंगलादेश में जमाते इस्लामी राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत है। जमात बंगलादेश बनने के पश्चात ही सक्रिय हो गई है। जमात का यह कहना है कि यदि समय आया तो वे खाजिदा जिया को समर्थन दे सकते हैं। लेकिन हसीना वाजेद ने पहले ही जमाते इस्लामी को न केवल अवैध राजनीतिक दल के रूप में प्रतिबंधित कर दिया है, बल्कि उसके वरिष्ठ नेताओं को फांसी और जेल की सजा देकर यह भी सिद्ध कर दिया है कि बंगलादेश में इस्लाम के नाम पर आतंकवाद की राजनीति को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। बंगलादेश के अखबार जमात की तुलना मिस्र की इखवानुल मुसलिमीन से कर रहे हैं। वे जमात को प्रतिक्रियावादी दल मानते हैं। इसलिए हसीना की सरकार ने जमाते इस्लामी के सबसे बुजुर्ग नेता को फांसी की सजा सुनाकर यह संदेश दे दिया है कि वे किसी भी स्थिति में बंगलादेश को मध्य पूर्व की हिंसक राजनीति का अखाड़ा नहीं बनाना चाहते हैं। भारत और पाकिस्तान में जमाते इस्लामी को कट्टरवादी पार्टी के रूप में तो जाना जाता ही है साथ में वे जमाते इस्लामी को, सेकुलर विरोधी मानकर अपने देश को आतंकवाद का अखाड़ा नहीं बनाना चाहते हैं। लेकिन जमात समर्थकों की संख्या भी वहां कम नहीं है। इसलिए चुनाव में जमात ने यदि खालिदा जिया को समर्थन दे दिया तो शेख हसीना को पसीना आ सकता है। शेख हसीना का मानना है कि आज जो नेता जमाते इस्लामी का समर्थन कर रहे हैं उन्होंने 1971 के स्वतंत्रता युद्ध में पाकिस्तानी एजेंट की भूमिका निभाई थी। पाकिस्तान के जनरलों ने बंगलादेशियों का कत्लेआम किया था। मुजीबुर्रहमान को तो फांसी देने की तैयारियां चल ही रही थीं लेकिन इसके बावजूद सैकड़ों राष्ट्रभक्त बंगलादेशियों को भी चुन-चुन कर मार दिया गया था। यही नहीं जबसे बंगलादेश बना है आतंकवादी तत्व जमात के वेश में बंगलादेश को अपने शिकंजे में जकड़ने के लिए आतुर हैं। इसलिए अनेक स्थानों पर राष्ट्रवादी बंगलादेशी और कट्टरवादी पाकिस्तान समर्थकों में संघर्ष चलता ही रहता है। राजनीतिक पंडितों का मत है कि शेख हसीना ने इस मुद्दे को उठा कर अपने पक्ष में माहौल बनाने के प्रयास किये हैं। लेकिन कुछ समाचार पत्र यह भी कह रहे हैं कि इससे बीएनपी की ओर जमाते इस्लामी के वोट खिसक जाएंगे। बंगलादेश में आज भी पाक समर्थक लोगों की कमी नहीं है। वे कभी-कभी तो बंगलादेश का विलय पुन: पाकिस्तान में हो जाए ऐसी मांग उठाते रहते हैं। इस बार जब ढाका में ईदुल फितर मनाई गई उसमें चुनाव के बैनरों और पोस्टर की भी धूम देखते ही बनती थी। एक पोस्टर पर लिखा था 'नेता वही जो गद्दारों को सजा दिलाए।' सच तो यह है कि इस चुनाव में 1971-72 की यादें लौट रही हैं। बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने सवाल उठाया है कि आपका वोट देश की प्रगति के लिए या फिर गड़े मुर्दे उखाड़ने के लिए? यह तय है कि चुनाव ज्यों ज्यों निकट आएंगे जमाते इस्लामी माहौल को गर्म करने के लिए अपना भरपूर प्रयास करेगी। बंगलादेश टाइम्स ने अपने सम्पादकीय में सवाल उठाया है कि भावी चुनाव देश की प्रगति के लिए या फिर गड़े मुर्दे उखाड़ने के लिए? लेकिन पत्र ने शेख हसीना की प्रशंसा करते हुए यह भी लिखा है कि जमाते इस्लामी जैसी ताकत को शिकंजे में कस कर हसीना ने बड़े साहस का परिचय दिया है। प्रतिक्रियावादी ताकतें जब तक देश में हैं तब तक हम नई सोच और नई पीढ़ी तैयार नहीं कर सकते। वास्तविकता तो यह है कि पाकिस्तान के पद चिह्नों पर चलने वाली बंगलादेश की फौज ने सेकुलर ताकतों को कमजोर करने और कट्टरवादियों को नया मैदान देने के लिए ही जमाते इस्लामी को जन्म दिया था। बंगलादेश का चुनावी इतिहास बताता है कि आज तक कोई भी पार्टी दूसरी बारी में चुनाव नहीं जीत सकी है। लेकिन इस बार यह आशा व्यक्त की जा रही है कि बंगलादेश का राष्ट्रवाद इस मामले में नया इतिहास रचेगा और शेख हसीना को समर्थन देकर बंगलादेश की परम्परा को पुष्ट करने का प्रयास करेगा। युवा पीढ़ी भी इसके समर्थन में है। इसलिए यदि शेख हसीना अपने पुत्र के हाथों में पार्टी और सरकार की बागडोर सौंप दें तो बहुत आश्चर्य नहीं होगा। 2013 में जिस फैक्ट्री में आग लगने से 1100 मजदूर हताहत हुए हैं उनके परिवारजनों को उक्त स्थान पर मनोनीत करके और साथ ही उनकी मजदूरी में भी भारी वृद्धि करके शेख हसीना ने पांसा पलट दिया है। बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी का स्वरूप बुर्जुआ है इसलिए देश का मजदूर, किसान और आम आदमी बेगम हसीना की ओर आकर्षित है।इस चुनाव में एक मुद्दा भारत भी है। यह पूछा जा रहा है कि किस पार्टी की सरकार आने पर उन्हें अपने पड़ोसी देश की सहायता अधिक मिल सकती है। इसका जवाब केवल शेख हसीना की पार्टी है। बेगम खालिदा जिया के पति जियाउर्रहमान सैनिक शासन में वहां के राष्ट्रपति रह चुके हैं। बंगलादेश के सैनिकों ने हमेशा पाकिस्तान की भाषा में बात की है। इसलिए मतदाताओं के सिर पर यह खतरा भी मंडरा रहा है कि पाकिस्तान की तरह बंगलादेश में भी सेना हावी न हो जाए। क्योंकि आज पाकिस्तान में जिस तरह से आईएसआई हावी है उसी प्रकार सेना और आतंकवादी नेताओं की टोली यदि हावी हो जाती है तो वह बंगलादेश के विकास में सबसे बड़ा रोड़ा बन जाएगा।  बंगलादेशी इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि पाकिस्तान की तुलना में भारत उनके लिए अधिक सहायता देने वाला देश हो सकता है। भारत अब दुनिया की शक्तियों में अपना नाम दर्ज करवा रहा है। ऐसे समय में एक आतंकवादी और सेना की राजनीति से भरपूर देश पाकिस्तान उनके लिए कदापि उपयोगी नहीं हो सकता है। असंख्य बंगलादेशी भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं। प्रतिदिन उनकी घुसपैठ बढ़ रही है। खालिदा जिया और जमाते इस्लामी इसके पक्षधर होंगे। लेकिन यदि लम्बा सफर तय करना है तो बंगलादेश को भारत का हाथ पकड़ना ही पड़ेगा। भारत के साथ जो बंगलादेश के विवाद हैं उनमें शेख हसीना बड़ी भूमिका अदा कर सकती हैं। लेकिन पिछला अनुभव यह बताता है कि सेना और आतंकवाद समर्थक लोगों ने इस समस्या को अधिक बढ़ाया है। इसलिए आम बंगलादेशी भारत को अपने अधिक निकट समझता है। बंगलादेश के राष्ट्रपिता मुजीबुर्रहमान की छवि तुर्की के कमाल पाशा जैसी है। इसलिए उनके पद चिह्नों पर चलने वाली पार्टी यदि चुनाव में सफल होती है तो यह राष्ट्रवाद की विजय होगी। 

Share
Leave a Comment
Published by
Archive Manager