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मुजफ्फरनगर में जो कुछ हुआ और उसकी जिस तरह से अखबारों ने एकपक्षीय रपटें छापीं उससे लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ की निष्पक्षता पर एक बार फिर प्रश्नचिन्ह लग गया है। खासकर अंग्रेजी के सेकुलर अखबारों ने सिर्फ समुदाय विशेष को केन्द्रित करके उसे ही सताया और बेबस दिखाया, जबकि तथ्य यह है कि हिन्दू भी बड़ी संख्या में हताहत हुए, बेघर हुए और लगातार कई दिन खौफ के साए में जीने को मजबूर कर दिए गए, क्योंकि अखिलेश सरकार की पुलिस ने उनको सुरक्षा देने के नाम पर हाथ खड़े कर दिए थे। रपटों में एक समुदाय के झुलसे घरों, घायलों की बार बार तस्वीरें छापी गईं जबकि हिन्दुओं की पीड़ा का जिक्र करने से कन्नी काटी जाती रही। आजम खान के कथित इशारे पर मुजफ्फरनगर के आसपास के ग्रामीण इलाकों में समुदाय विशेष के लोग जिस तरह से सुनियोजित मारकाट मचा रहे थे उसकी न रिपोर्टिंग की गई, न तस्वीरें छापी गईं। मारे गए दो भाइयों पर जो भीड़ टूट पड़ी थी और जिस बर्बरता से उनकी हत्या की गई उसकी फुटेज होने के बावजूद 10 दिन से ज्यादा बीत जाने बाद भी किसी दोषी को नहीं पकड़ा गया। इसके विरोध में 7 सितम्बर को महापंचायत से लौटते लोगों पर समुदाय विशेष के मोहल्लों से पत्थर बरसाए गए, लोगों को लेकर लौट रहीं कई ट्रेक्टर ट्रॉलियां लापता हो गईं, उनमें बैठे लोगों का कोई अता-पता नहीं चला। आज से नहीं, मुजफ्फरनगर में पिछले लंबे अर्से से समुदाय विशेष के आवारा किस्म के लड़के हिन्दू लड़कियों को निशाना बनाए हुए हैं, उन्हें गाहे-बगाहे नुकसान पहंुचाने की फिराक में रहते हैं। खासकर अखिलेश की सपा सरकार बनने के बाद से इस शरारत में तेजी आई है, क्योंकि पुलिस भी मुस्लिमों के खिलाफ कार्रवाई करने से बचती है। ग्रामीण इलाकों में तो हालात ज्यादा खराब हैं। तनाव के दिनों में मुस्लिम मोहल्ले खालापार से सिर्फ डेढ़ एक किलोमीटर पर सिविल लाइन्स इलाके में हिन्दुओं के मोहल्लों में भय का यह आलम था कि वहां के युवाओं ने रात-रात जागकर पहरा दिया, क्योंकि पुलिस ने उनकी हिफाजत करने में अपनी मजबूरी जता दी थी। ह्यसुरक्षात्मक कारणोंह्ण से इलाके के अनेक भाजपा और हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के नेताओं को कई दिन तक कैद में रखा गया। 4 सितम्बर को शहीद चौक पर धारा 144 लगी होने के बावजूद स्थानीय मजहबी नेताओं, जैसे सैदुल जमां, कादिर राणा के अलावा सैकड़ों मुस्लिमों की मौजूदगी पर डीएम, एसडीएम और पुलिस अधिकारी आंखें बंद किए रहे, एक को भी नहीं पकड़ा गया। क्यों? समुदाय विशेष के लोगों के पास से एके-47 की गोलियां मिलने की खबरें क्यों दबाई गईं? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन पर खुद को सेकुलर बताने वाले अंग्रेजी मीडिया को जवाब देना ही होगा। स्मिता सिंह
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