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क्षेत्र के वनवासी किसान अपने खेतों में जरूरी बीज-बुआई के लिए साहूकार की शरण में जाते है। फसल आने पर उसका अधिकांश हिस्सा साहूकार को देने में ही जाता है। उनके अपने बच्चों के पेट खाली रहते हैं। सरकार की गलत नीतियों के कारण देश में रोजगार घट रहे हैं तथा ऋण बढ़ता जा रहा है। महाराष्ट्र के पश्चिमी छोर के निकट पहाड़ी क्षेत्र ठाणे जिले के जव्हारा-मोरवाड़ा से लेकर पूर्व में मध्य प्रदेश के सीमावर्ती सतपुड़ा के पहाड़ी क्षेत्र मेलघाट तक कुपोषित वनवासी बालकों की मृत्यु से राज्य के ग्रामीण एवं वनवासी क्षेत्र के बालकों के कुपोषण की समस्या नए सिरे से चर्चा में आ गई है। पिछले एक महीने में राज्य के ठाणे जिले के वनवासी अंचलों में रहने वाले 28 वनवासी बालकों की मृत्यु कुपोषण के कारण हो चुकी है। इस वस्तुस्थिति के अलावा राज्य में अप्रैल, 2012 से जनवरी 2013 तक कुपोषण के चलते मौत के मुंह में गए बच्चों की संख्या 3233 तक होने से राज्य के शासन और प्रशासन दोनों की नींद हराम हुई है। यदि आंकड़ों के साथ बताया जाए तो महाराष्ट्र के वनवासी बहुल चार जिलों गड़चिरोली, नासिक और यवतमाल में कुपोषण के चलते हुई बच्चों की मौतों के अलावा 82 हजार बच्चों में कुपोषण की समस्या पाई गई है। इस बात की पुष्टि सरकारी आंकड़ों से होती है। राज्य के कुपोषण ग्रस्त बच्चों के जिलावार आंकड़े कुछ इस प्रकार है-जिला उम्र 1वर्ष १ से से कम ६ सालठाणे451161गढ़चिरोली47586नासिक 1021323यवतमाल534182अचंभित करने वाले तथ्य तथा आंकड़ों के अलावा राज्य के खासकर वनवासी क्षेत्र के बच्चों के कुपोषण का मुद्दा न्यायालय से लेकर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक चर्चा का विषय बना हुआ है। इसके चलते इन दिनों प्रतिष्ठित मंचों पर राज्य सरकार को भी कटघरे में खड़ा होना पड़ा रहा है।ठाणे जिले के वनवासी क्षेत्र के भाजपा विधायक विष्णु सावरा के अनुसार वनवासी बालकों में लगातार हो रहे कुपोषण व उसके चलते होने वाली मौतों की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर जाती है। उनके अनुसार राज्य में बरसों तक वनवासियों के कल्याण का काम करने वाले ठक्कर बप्पा, गोदा ताई परुलेकर, अनताई वाद्य, माधवराव काणे, केशवराव केलकर आदि समर्पित कार्यकर्ताओं द्वारा वनवासी क्षेत्र के विकास के लिए अपना जीवन समर्पित करने के बाद व इन महान लोगों के बाद उनके अनुयायियों द्वारा उनकी परिपाटी पर पर चलकर उनके मिशन को आगे बढ़ाने के बाद भी इन क्षेत्रों के बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। विदर्भ संभाग के महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश के सीमावर्ती मेलघाट के हाल एवं हालत तो और भी खराब हैं। इस क्षेत्र में वास्तविक रूप में कितने बच्चे अब तक मर गए हैं और कितनों पर कुपोषण व मौत का साया मंडरा रहा है। इसके अधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। मेलघाट की प्राकृतिक विपदा एवं वास्तविकता यह है कि जून से लेकर अगस्त तक होने वाली भारी बारिश के समय यहां के बच्चों में अत्यधिक कुपोषण पाया जाता है। इस दौरान यहां के बच्चों को पर्याप्त व पौष्टिक भोजन न मिलने से वे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। यह दौर वर्ष भर जारी रहता है। इस बीच क्षेत्र के वनवासी किसान अपने खेतों में जरूरी बीज-बोआई के लिए साहूकार की शरण में जाते है। फसल आने पर उसका अधिकांश हिस्सा साहूकार को देने में चला जाता है। नतीजतन किसानों को अपने भोजन-पोषण के लिए भी अनाज नहीं मिल पाता है। इसके चलते उनके बच्चों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता और वे कुपोषण का शिकार होते रहते हैं। स्थिति तब और बदत्तर पाती है। जब सरकार तथा शासकीय योजनाओं के तहत वनवासियों के लिए जारी योजनाओं पर भी ठीक से अमल नहीं होता है। मेलघाट में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डाक्टरों की हमेशा कमी ही रहती है। यही हालत शासकीय आश्रम, स्कूल और बाल सुधार केंद्रों की भी है। इस बात को राज्य के वनवासी कल्याण मंत्री मधुकर पितड़ ने भी स्वीकार किया है। उनके अनुसार राज्य के वनवासी क्षेत्र के बालकों में कुपोषण की समस्या होना वैसे तो आम बात है, लेकिन इस वर्ष कुपोषण के मामलों में जो अत्याधिक बढ़ोतरी हुई है। उसकी छानबीन कर जरूरी उपाय किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि वे स्वयं राज्य के वनवासी कल्याण विभाग के राज्यमंत्री के साथ उन क्षेत्रों का दौरा करेंगे। हजारों की संख्या में राज्य के वनवासी बच्चों के कुपोषण की चपेट में आकर असमय मौत का शिकार होने के मामलों की गंभीरता को देखते हुए महाराष्ट्र के राज्यपाल के शंकर नारायण ने तुरंत तथा असरकारी उपायों के लिए पहल की है।वनवासी बालकों के मामले में ठाणे जिले के वनवासी बहुल क्षेत्र का दौरा करने के बाद राज्यपाल ने जवाहर में अधिकारियों की बैठक और उन्हें उनकी जवाबदेही से भी अवगत कराया। इसके अलावा उन्होंने कुपोषण के चलते लगातार हो रही वनवासी बच्चों की मौत के मामले में भी अधिकारियों को आड़े हाथों लिया। राज्यपाल द्वारा इस पहल के करने से जहां एक ओर राज्य के शासन-प्रशासन क्षेत्र में हलचल हो गई है। वहीं देर से ही सही पर राज्य के वनवासी एवं उनके पीडि़त बच्चों के लिए कुछ आशा की किरण अवश्य जागी है। द.वा. आंबुलकरइस वर्ष के शुरुआती तीन महीनों में राज्य भर कुपोषित बालकों से संबद्ध सर्वेक्षण के आंकड़े प्राप्त हुए है, वे भी अवश्य चौका देने वाले है-महिलासर्वेक्षण किए बच्चे कुपोषित बच्चेजनवरी 201355,50,85389,331फरवरी 201356,34,51486,520मार्च 201356,84,96882,719
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