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अदरक का मसाले के तौर पर प्रयोग करने वाला स्वस्थ ही रहता है। अदरक को शास्त्रों में ह्यमहौषधह्ण, ह्यविश्वौषधह्ण या ह्यविश्वाह्ण नामों से अलंकृत किया गया है।निर्धनता पर पर्दा निर्धन भाई सर्दियों में दो नींबू और ढाई सौ ग्राम अदरक का अचार डालकर ही साग-भाजी की जरूरत पूरी कर लेते हैं। दिल का सहारा कड़ाके की सर्दी में लोग अदरक की चाय पीते हैं तो कड़कती गर्मी में गन्ने के साथ अदरक भी पिलवाते हैं जो रस के वात विकार को टॉनिक में बदल देता है और डूबते दिल को सहारा देता है। घबराहट, प्यास और थकान दूर करने के साथ अदरक ताज़गी और ठंडक भी देता है। थकान दूर पिंडलियों में पीड़ा हो या हाथ-पैर टूट रहे हों, गर्दन अकड़ गई हो या जाँघें दुख रही हों। सिर फट रहा हो, कमर दुख रही हो, घबराहट और बेचैनी हो, अदरक का सेवन कीजिए, चुटकियों में तनाव और ऐंठन जाते रहेंगे।गठीला बनाता है अदरक भारत से ही विदेशों को जाता था। संसार ने पहले इसे पौष्टिक और बलदायक मसाले के तौर पर ही अपनाया था जो बाद में भारत की देखा देखी औषध के रूप में लोकप्रिय होता गया। आज सारे संसार में इसकी खेती होती है और इसके लिए सारी दुनिया भारत का उपकार मानती है। अदरक चुस्ती-फुर्ती देता है और आदमी को कर्मठ तथा गठीला बनाता है।बेसुरी आवाज सुरीली जिन गवैयों की आवाज़ तार-सप्तक (ऊंचे स्वरों) में कांपने लगती है या टिकी हुई नहीं लगती, उनके लिए अदरक ईश्वर का वरदान है। जिन नेताओं और रंगमंच के अभिनेताओं का बोलते-बोलते गला सूख जाता है या स्वरभंग हो जाता है, उन्हें अदरक का रस पीकर ही मंच पर उतरना चाहिए। अदरक का प्रभाव ही ऐसा है कि मुँह में रखते ही लाला-रस की ग्रन्थियाँ लार-सी छोड़ने लगती हैं जिनसे गला तर रहता है, खाना पच जाता है, नस-नाडि़याँ निर्मल हो जाती हैं और स्वर-यंत्र खुल जाता है।बूढ़ा भी जवान अदरक श्वास-नली, फेफड़े, आंख, नाक, कान, दिमाग़, दिल, पेट, टांगों और पैरों तक खून को गर्माए रखता है। जिसका खून गर्म रहेगा, उसके बूढ़े होने का सवाल ही नहीं उठता। चेतना-तन्तुओं पर इसका प्रभाव बड़ा अनुकूल पड़ता है। यह गर्म होने पर भी खून को जलाता नहीं, बल्कि स्वस्थ और ताज़ा रखता है। स्मरण-शक्ति बढ़ाने में भी अदरक रामबाण है। यह दसों इन्द्रियों को जवान और मानसिक शक्तियों को प्रखर किये रहता है। घुटनों को यह जुड़ने नहीं देता और बुढ़ापे को पास फटकने नहीं देता।महिलाओं का हितैषीमासिक धर्म, गर्भाधान, प्रसव, गर्भाशय और दूध (स्तन) की प्रक्रियाएं कुछ ऐसी जटिल हैं कि इनमें प्राय: जटिल विकार पैदा हो जाते हैं जो केवल नारी को भोगने पड़ते हैं। कभी-कभी ये विकार घातक भी हो जाते हैं। शिशु को जन्म देकर कई तो प्राण भी गंवा बैठती हैं। अदरक इस मामले में महिलाओं का विशेष शुभचिन्तक है। गर्भाशय की शुद्धि, प्रसूत-ज्वर, प्रदर (ल्यूकोरिया) मासिक कष्ट, कुंआरियों की परेशानियां और प्रसव में अदरक विशेष रूप से हितकारी है।सुगन्ध फैलाता है अदरक खुद चाहे धरती में जड़ के रूप में पैदा होता है, किन्तु तबीयत से सफाई-पसन्द है। कफ के कारण सांस तक दुर्गन्धित हो जाती है, मगर अदरक का रस शरीर में जाते ही कफ भाग खड़ा होता है। आंतों का मल और नस-नाडि़यों की मैल इस तरह बह जाते हैं जैसे खुरचकर निकाले गए हों। इस तरह प्राण और अपान वायु, दोनों निर्मल और सुवासित रहते हैं।टेढ़े को सीधा लकवा मार जाए तो मुंह टेढ़ा हो जाता है। अधरंग (अर्द्धांग पक्षाघात) हो जाए तो आधा शरीर बेकार हो जाता है। पेट खराब हो तो हाथ-पैर भी पूरा साथ नहीं देते। दमा या खांसी-बलगम हो तो काम-धंधा ही चौपट हो जाता है। गठिया हो जाए तो घुटने ही जवाब दे जाता है। अदरक (सूखा) इन सब रोगों को तोड़-फोड़कर आदमी को नौजवान घोड़े की तरह कस देता है। शरीर का जहरीली तत्व निकालने में यह अमृत का काम करता है।दूसरों को हरा सोंठ के रूप में यह इन्सान के नवजात बच्चे के लिए माँ के स्तनों में दूध पैदा करता है। जिस गर्भ से इन्सान पैदा होता है, उसकी शुद्धि करने में मदद करता है। खाँसी और जुकाम, न्यूमोनिया और तपेदिक जैसे भयंकर रोगों से यह कवच बनकर रक्षा करता है। अदरक का रेशा-रेशा मनुष्यता की सेवा में समर्पित रहता है। काट लो, कूट लो, पीस लो, निचोड़ लो, अदरक दूसरों का भला ही करेगा।
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