11 सितम्बर को वाशिंगटन में मुस्लिम मार्च
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11 सितम्बर को वाशिंगटन में मुस्लिम मार्च

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Sep 7, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Sep 2013 15:10:53

 

अमरीकी मुसलमानों का एक वर्ग यह मानने को तैयार नहीं है कि 11/9 के हमले के पीछे किसी मुस्लिम संगठन का हाथ है।
ऐसे ही लोग 11 सितम्बर को एक रैली कर रहे हैं। इनका कहना है कि 11/9 की आड़ में मुस्लिमों को परेशान किया जा रहा है।
मुस्लिमों की इस हरकत से आम अमरीकियों में काफी गुस्सा है।
मुस्लिम मार्च के विरोध में बाइक रैली निकालने का निर्णय लिया गया है, जिसको दुनिया के कई देशों के लोगों ने अपना समर्थन दिया है।

अमरीका सहित सम्पूर्ण विश्व उस घटना को नहीं भूल पाया है जो 11सितम्बर, 2001 को घटित हुई थी। उस दिन अमरीका पर सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हुआ था। उस हमले के साजिशकर्ता ओसामा बिन लादेन को अमरीका ने मार गिराया है। लेकिन अमरीकी मुसलमानों में आज भी एक बड़ा वर्ग है जो इस बात पर विश्वास नहीं करता कि 11/9 की घटना में किसी मुस्लिम आतंकवादी संगठन का             हाथ था।
उस हृदय विदारक घटना को याद कर आज भी अमरीका की जनता सहम जाती है। इस हमले में हताहत हुए लोगों को अपनी श्रद्धाञ्जलि हर वर्ष अर्पित करती है। परम्परा के अनुसार इस वर्ष भी अमरीका मृतकों के प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करेगा। लेकिन इस 12वीं बरसी पर अमरीकी जनता को एक अन्य दृश्य भी देखने को मिलेगा। उक्त हमले के पश्चात् अमरीका में रहने वाले मुसलमानों के साथ जो व्यवहार किया गया और उन पर जो आरोप-प्रत्यारोप लगे उनके विरुद्ध मीलियन मुस्लिम मार्च आयोजित करने का निर्णय लिया गया है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि 11 सितम्बर को ही मार्च करने की आवश्यकता क्यों पड़ गई है? इसका तो स्पष्ट संदेश यह है कि अमरीकी मुसलमानों का एक वर्ग अमरीका पर हुए इस आतंकी हमले का समर्थक है। ओसामा के पक्षधर बन कर क्या वे अमरीका पर कब्जा करना चाहते हैं? उक्त प्रदर्शन के ज्यों ही समाचार प्रसारित हुए कि सम्पूर्ण अमरीका में कोहराम मच गया। सरकार और सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गईं। आयोजकों ने जब अमरीकियों के इस आक्रोश को देखा तो इस मार्च का नाम उन्होंने ‘मीलियन अमरीकी मार्च’ कर दिया। उन्हें लगने लगा कि उनके मार्च के आगे लगे हुए मुस्लिम शब्द ने अनेक भ्रांतियां पैदा कर दी हैं। अमरीकी जनता में इसकी चर्चा होने लगी कि इस मार्च के पीछे अमरीकी मुसमलानों की क्या रणनीति है? ‘अमरीकन मुस्लिम पॉलिटिकल एक्शन कमेटी’, जो इस मार्च की आयोजक है, से अनेक सवाल पूछे जाने लगे। इस कमेटी के प्रवक्ता ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि हम सामान्य अमरीकियों की तरह ही 11/9 के हमले के विरोधी हैं, लेकिन उसके पश्चात् सभी मुसलमानों को शंका के घेरे में रखकर सामान्य अमरीकी जिस तरह की प्रतिक्रिया उनके विरुद्ध व्यक्त रह रहे हैं वह उनके साथ खुला अन्याय है। हम भी उन्हीं की तरह अमरीका के वफादार नागरिक हैं और अपने इस देश के लिए अपना बलिदान देने को तैयार हैं। लेकिन उनके प्रति बरती जा रही घृणा और अलगाव उनके लिए सहन करने योग्य नहीं है। इसलिए इस मार्च के द्वारा हम अपने दु:ख व्यक्त करना चाहते हैं और सामान्य अमरीकी नागरिकों को बताना चाहते हैं कि उनके प्रति मन में घृणा और प्रतिशोध रख कर वे अपने ही देश अमरीका का नुकसान कर रहे हैं। हमारा यह मार्च हमारे कष्टों और दु:खों को प्रदर्शित करने का एक मात्र माध्यम है। यदि कोई उसे अमरीका के विरुद्ध समझ ले तो यह हमारे लिए शोकांतिका होगी। किसी प्रकार का भ्रम न रहे इसलिए अब हमने अपना दु:खड़ा व्यक्त करने के लिए इस मार्च को अपना माध्यम बनाया है।
इस मार्च के सर्वेसर्वा एम डी रबी आलम हैं। उनका जन्म बंगलादेश में हुआ था लेकिन सम्पूर्ण जीवन अमरीका की सेना में व्यतीत हुआ है। रबी आलम ने फोकस न्यूज पर बताया है कि उक्त मार्च यह बताएगा कि सामान्य अमरीकी नागरिकों की तरह हम मुसलमान आतंकवाद के विरुद्ध हैं। लेकिन अमरीकी मुस्लिमों के ही एक अन्य संगठन इस्लामिक फोरम फॉर डेमोक्रेसी के अध्यक्ष जाहिद जाफर ने भी फोकस न्यूज से कहा है कि एक्शन कमेटी का मीलियन मार्च एक घटिया विचार है। ये लोग नकारात्मक प्रवृत्ति के हैं। इनका तो एक ही काम है कि सभी मामलों के लिए वे केवल अमरीका सरकार को ही बदनाम करें। ये लोग 11/9 की घटना का लाभ उठाना चाहते हैं। फोकस न्यूज ने मीलियन मुस्लिम मार्च पर बहस करवाई है। एंडीटिफेमेशन लीग के नेता का कहना है कि रबी आलम एक विवादास्पद नेता हैं। यह वही हैं जिन्होंने यह भी बयान दिया था कि 11/9 की घटना में यहूदियों का हाथ था। रबी आलम का कहना है कि वे इस मार्च का आयोजन केवल इसलिए कर रहे हैं कि 11/9 की हर बरसी पर मुसलमानों को इस हमले को लेकर निशाना बनाया जाता है। मुसलमान पिछले 12 वर्षों से अपमान के घूट पी रहे हैं। उन्हें भी अपने दर्द को व्यक्त करने का पूरा अधिकार है। यदि हम नहीं बोलेंगे तो यही कहा जाएगा कि मुसलमान सारी दुनिया में आतंकवादी हैं। 11/9 का मामला इसलिए हुआ कि अमरीकी मुसलमान उसमें शामिल था। रबी का कहना है कि हमारे ऊपर आरोपों की वर्षां होती है और कोई यह दबाव डाले कि हम अपना मुंह भी नहीं खोलें तो यह हमारा दब्बूपन होगा। अपनी बात कहने का अधिकार हमें अमरीका के संविधान ने दिया है। नागरिक होने के नाते यह बात हमें कहनी ही पड़ेगी और अमरीका में जो हम पर शंका करता है उसे अपना दिल और दिमाग साफ करना ही   होगा। उनका कहना था कि अमरीका की सरकार क्यों नहीं बोलती? वे अपना मुंह बंद रखकर हमें शंकाओं के घेरे में रखें, ऐसी उनकी नीयत है। अमरीका में मुसलमानों का सबसे बड़ा संगठन ‘कौंसिल े आॅन अमरीकन रिलेशन’ है। उसने भी रबी की एक्शन कमेटी की निंदा करते हुए कहा है कि इस प्रकार के कृत्य मुसलमानों के लिए घातक होंगे। उन्होंने अपील की है कि कृपया वे अमरीकी सरकार और अमरीकी नागरिकों में हमारी छवि खराब न करें। वरना हमें मुंह छिपाना कठिन हो जाएगा। अमरीकन पॉलिटिकल कमेटी के प्रवक्ता का कहना है कि हमारा चाहे जितना विरोध किया जाए लेकिन हमारे संगठन ने अमरीकी सरकार तक अपनी बात पहुंचाने का निश्चय किया है। हम अमरीकी नागरिकों को अपनी मुस्लिम हैसियत के अनुसार अपनी बात कहने का अधिकार है। कोई यदि इसका अर्थ दूसरा निकालता है तो यह उसकी मानसिक  स्थिति का दोष है। लेकिन अमरीका का सामान्य नागरिक कह रहा है कि इस प्रकार का मोर्चा हमारे घावों पर नमक छिड़कने के समान है। जबकि मार्च आयोजित करने वाले संगठन के प्रवक्ता का कहना था कि हमने फरवरी 2013 में ही यह निर्णय ले लिया था। आयोजकों का कहना है कि हमारे इस मार्च से सरकार भयभीत है। उसका सोचना है कि यदि अमरीकी मुससमान इसके पक्ष में बाहर निकल आया तो उसके सामने अनेक संकट खड़े हो सकते हैं।
ज्यों ही लोंग मार्च के समाचार अमरीकी प्रेस में प्रकाशित होने प्रारम्भ हुए अमरीका के अन्य मुस्लिम नागरिक सक्रिय हो गए। उन्होंने इसका मुंह तोड़ जवाब देने की तैयारी शुरू कर दी है। अमरीका में बसने वाले मुस्लिम एवं अन्य पंथ के लोगों ने भी यह तय किया है कि वे इस लोंग मार्च के विरोध में 20 लाख लोगों की जंगी मोटर साइकिल रैली आयोजित करेंगे। इस ‘बाइक मार्च’ की चर्चा अब चारों ओर चल पड़ी है। फेस बुक पर मोटर साइकिल रैली के आयोजकों ने एक-दूसरे से सम्पर्क करना प्रारम्भ कर दिया है। बाइक मार्च के आयोजकों का कहना है कि आपको वाशिंगटन आने की आवश्यकता नहीं है। केवल रजिस्ट्रेशन कराएं और अपने-अपने शहरों में बाइक मार्च निकालें। एक अमरीकी ने अपनी नाराजगी व्यक्त हुए पूछा है कि अमरीका में तो ओसामा के पक्ष में दस लाख लोग रैली में एकत्रित हो रहे हैं, लेकिन क्या कारण है कि मुस्लिम राष्ट्र में चल रहे आतंकवादी आन्दोलन के विरुद्ध कभी दल लाख लोग एकत्रित नहीं हुए? क्या उन्होंने हमास और हिजबुल्लाह जैसे आतंकवादी संगठनों की कभी भर्त्सना की? एक अमरीकी मुसलमान ने कहा है कि अब समय आ गया है कि हर मुसलमान मस्जिद के उन इमामों के खिलाफ अभियान शुरु करें, जो मजहब के नाम पर आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं। बाइक रैली के पक्ष में इंटरनेट पर जबरदस्त आन्दोलन चल रहा है। एक व्यक्ति ने वेब साइट पर टिप्पणी करते हुए कहा कि 11/9 को निर्दोंष इंसानों को मौत के घाट उतारने वाले अब यह कह रहे हैं कि वे बेगुनाह हैं। एक अमरीकी ने कहा कि बोस्टन में धमाके हुए तो एक भी मुस्लिम ने उसकी निंदा नहीं की। मार्च का नाम बदल देने से उसकी नीयत बदलने वाली नहीं है। अमरीका में बसने वाले अन्य मत पंथ के लोगों ने तय किया है कि अमरीका के मुसलमानों की इस सीनाजोरी को वे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे। समय के साथ लोगों का क्रोध शांत पड़Þता जा रहा है लेकिन रबी जैसे लोग आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। इसलिए न केवल अमरीकी नागरिक, बल्कि अमरीका में अन्य देशों से आए लोगों का भी यह दायित्व हो जाता है कि वे इस प्रकार के तत्वों के विरुद्ध  उठे खड़े हों। मोटर साइकिल रैली के आयोजक की हैसियत से पांच बड़े संगठन सामने आए हैं। इनमें एक है नेशनलिस्ट अमरीकन। इसमें विद्यार्थी अधिक संख्या में हैं। जिन बाहर के लोगों को नागरिकता मिल चुकी है अथवा जो वहां की नागरिकता प्राप्त करने के इच्छुक हैं उनमें भारी रोष है। वे इस प्रकार की गतिविधियों की खुल्लम खुल्ला भर्त्सना कर रहे हैं। जानकारों का मानना है कि एशियाई नागरिकों के तीन और आस्ट्रेलिया के दो संगठनों ने मोटर साइकिल रैली में भाग लेने का निश्चय किया है। 11 सितम्बर अमरीका का सबसे बड़ा शोक दिवस है इसलिए सरकार अपनी पूरी तैयारी में है। ओसामा मर गया है लेकिन उसके चेले-चपाटे और ओसामा के नाम पर मातम करने वाले अब भी जीवित  हैं। 11 सितम्बर को जब उनकी पहचान होगी तो एक बार फिर पता लग जाएगा कि मानवता के शत्रु कहां-कहां छिपे हैं? अमरीकी सरकार ने इन घटनाओं पर अपनी कोई प्रतिक्रिया अब तक व्यक्त नहीं की है।
मुजफ्फर हुसैन

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