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शिक्षक दिवस (5 सितंबर) पर विशेष
देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली डा़ राधाकृष्णन महान दार्शनिक और विचारक के रूप में पूरी दुनिया में मशहूर रहे। दर्शन में उनकी मेधा और विद्वता का सिर्फ भारतवासियों ने ही नहीं वरन् पश्चिमी देशों के विद्वानों और विचारकों ने भी लोहा माना। उन्होंने पूर्वी और पश्चिमी जगत के विचारकों के बीच सेतु के रूप में काम किया। 1962 से 1967 तक की अवधि में देश के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में कार्यरत रहे डा. राधाकृष्णन का जन्मदविस (5 सितम्बर) शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्हें सन् 1954 में भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म पांंच सितंबर 1888 को वर्तमान चेन्नई से करीब 84 किमी दूर स्थित तिरुत्तानी के पास नियोगी तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता एक स्थानीय जमींदार के अधीन राजस्वकर्मी के रूप में काम करते थे। राधाकृष्णन इतने मेधावी थे कि पूरे शैक्षणिक जीवन में उन्हें छात्रवृत्ति मिलती रही। उन्होंने 1906 में स्नातक की डिग्री हासिल की। दर्शनशास्त्र में उन्होंने परास्नातक की परीक्षा पास की। अपनी प्रतिभा से उन्होंने शिक्षकों का दिल भी जीत लिया। सन 1909 में सर्वपल्ली मद्रास प्रेसीडेंसी कालेज के दर्शनशास्त्र विभाग में शिक्षक नियुक्त किए गए। सन 1918 में वे मैसूर विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में प्रोफेसर बने। उन्होंने महाराजा कालेज, मैसूर में अध्यापन का कार्य किया।
जून 1926 में उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन कार्यरत विश्वविद्यालयों के विद्वानों के समागम में कोलकाता विवि का प्रतिनिधित्व किया था। इसी साल सितंबर माह में उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में आयोजित दर्शनशास्त्रियों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लिया। राधाकृष्णन को हैरिस मैनचेस्टर कालेज में प्राचार्य का पद खाली होने पर आमंत्रित किया गया। इसने उन्हें पश्चिमी दुनिया के विद्यार्थियों के बीच धर्म के तुलनात्मक पहलुओं को रेखांकित करने का अवसर दिया। राधाकृष्णन सन 1931 से 1936 के बीच आंध्रप्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। सन 1936 में वे आक्सफोर्ड विवि में प्रोफेसर नियुक्त हुए। सन् 1939 में पंडित मदन मोहन मालवीय ने उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का कुलपति पद संभालने के लिए आमंत्रित किया। जनवरी 1948 तक राधाकृष्णन ने बीएचयू के कुलपति के रूप में काम किया। उन्होंने सन 1946 से 1952 तक यूनेस्को में देश का प्रतिनिधित्व किया। सन 1949 से 1952 तक वे रूस में भारत के राजदूत के रूप में कार्यरत रहे। संविधानसभा के सदस्य के रूप में भी उनकी प्रभावी भूमिका रही। सन 1952 में वे देश के पहले उपराष्ट्रपति चुने गए और 1962 में देश के दूसरे राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। इसी साल जब कुछ विद्यार्थियों और शुभचिन्तकों ने उनका जन्मदिन मनाने का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने सुझाव दिया कि यदि उनका जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो उन्हें गौरव की अनुभूति होगी। उसी साल से पांच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाने का सिलसिला शुरू हुआ। 17 अप्रैल 1975 को डा़ राधाकृष्णन ने इस दुनिया से विदा ले ली। आज वह अनूठी प्रतिभा वाला व्यक्तित्व भले हमारे बीच नहीं है लेकिन उसकी कृतियां अनमोल धरोहर के रूप में विद्यमान हैं। वे हिंदुत्व के प्रबल पुरोधा और प्रखर राष्ट्रवादी के रूप में पूरी दुनिया में विख्याात रहे। उमेश शुक्ल
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