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इन दिनों स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जयन्ती के अवसर पर देश-विदेश में अनेक कार्यक्रम हो रहे हैं। 11 सितम्बर (इसी दिन 1893 में स्वामी जी ने अमरीका में विश्व धर्म संसद को सम्बोधित किया था) को तो अमरीका से लेकर श्रीलंका तक अनेक कार्यक्रम हो रहे हैं। यदि आप चाहते हैं कि घूमना भी हो जाए और स्वामी विवेकानन्द से जुड़े किसी कार्यक्रम में भाग भी ले लें तो आप दक्षिण भारत स्थित कन्याकुमारी जा सकते हैं। यहां तीन सागरों के संगम स्थल पर समुद्र के भीतर स्थित एक विशाल शिलाखंड पर निर्मित स्वामी विवेकानंद शिला स्मारक को देखकर आप दांतों तले अंगुली दबा लेंगे। समुद्र तट से पचास फुट ऊंचाई पर निर्मित यह स्मारक विश्व के पर्यटन मानचित्र पर अपना नाम दर्ज करा चुका है। यहां प्रतिदिन सैकड़ों लोग आते हैं। यह स्मारक लगभग 73 हजार विशाल प्रस्तर खंडों से बना है। इस स्मारक के निर्माण में लगभग 650 कारीगरों ने 2081 दिनों तक रात-दिन श्रमदान किया था।
आगे बढ़ने से पहले इस स्मारक की पृष्ठभूमि को जान लेते हैं। उल्लेखनीय है कि 1886 में अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस के निधन के बाद स्वामी विवेकानन्द ने चार वर्ष तक अपने गुरु भाइयों का नेतृत्व किया। अपने गुरु भाइयों को संन्यास पथ पर अडिग करके 1890 में विवेकानन्द भारत भ्रमण के लिए निकल गए। अपने देश वासियों की हालत देखकर वे तड़प उठे। यात्रा के अंत में वे कन्याकुमारी पहुंचे। कहा जाता है कि कोई शक्ति उन्हें समुद्र में तैराकर शिला पर ले गयी। वहां वे तीन दिन तक ध्यान में जमे रहे। वहीं उनके मन में भारत तथा भारत के माध्यम से पूरी मानव जाति का उद्घार करने की एक योजना उभरी। उस योजना के अन्तर्गत ही आज भी रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन काम कर रहे हैं।
1963 में स्वामी विवेकानन्द के जन्म शताब्दी वर्ष में इस शिला पर स्मारक बनाने का विचार आया। इस निमित्त अखिल भारतीय विवेकानंद शिला स्मारक समिति का गठन किया गया। इस स्मारक के निर्माण का दायित्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता एकनाथ जी को जुलाई 1963 में दिया गया। एकनाथ जी ने सभी विरोधों और अवरोधों को समाप्त करके शिला स्मारक के मार्ग को साफ किया। एकनाथ जी ने अनुभव किया कि स्मारक निर्माण के लिए तमिलनाडु सरकार की अनुमति पाने से पहले केन्द्र सरकार की सहमति प्राप्त करना आवश्यक है। इसके बाद उन्होंने इस दिशा में काम करना शुरू किया और उन्हें सफलता मिल गई। सरकारी अड़चनों के बाद सबसे बड़ी समस्या थी इस स्मारक के लिए पैसा इकट्ठा करना। किन्तु एकनाथ जी का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि इस काम के लिए उन्हें सभी वगोंर् के लोगों और सभी राजनीतिक दलों के नेताओं का सहयोग मिला।
एकनाथ जी ने प्रत्येक राज्य सरकार को इस स्मारक के लिए न्यूनतम एक लाख रुपये की राशि देने के लिए मना लिया। नागालैण्ड, सिक्किम जैसे छोटे राज्यों और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला से भी उन्होंने यह राशि प्राप्त की। इसके अलावा आम लोगों से भी इस स्मारक के लिए सहयोग मांगा गया। लोगों ने भी दिल खोल कर मदद की। इस तरह स्मारक के लिए एक करोड़ पैंतीस लाख रुपए इकट्ठे हुए। इसके बाद युद्घ स्तर पर स्मारक का निर्माण कार्य शुरू हुआ। करीब छह साल में यह स्मारक बना और 2 सितम्बर, 1970 को इसका औपचारिक उद्घाटन हुआ।
कन्याकुमारी तमिलनाडु राज्य में समुद्र के तट स्थित एक मनोरम स्थल है। यहां हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर का संगम स्थल है। ये सागर अपने विभिन्न रंगों से मनोरम छटा बिखेरते हैं। भारत के सबसे दक्षिण छोर पर बसा कन्याकुमारी वर्षो से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है। भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी इस स्थान का अपना ही महत्च है। दूर-दूर फैले समुद्र के विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद आकर्षक लगता हैं। कन्याकुमारी में अनेक मन्दिर भी हैं।
दिल्ली सहित अनेक जगहों से कन्याकुमारी तक रेलगाड़ी जाती है। कन्याकुमारी के लिए निकटतम हवाई अड्डा है त्रिवेन्द्रम। त्रिवेन्द्रम से मात्र डेढ़ घंटे में आप सड़क मार्ग या रेल मार्ग से कन्याकुमारी जा सकते हैं।
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