July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

 

by
Aug 30, 2013, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

भारत की आध्यात्मिक विश्व विजय का स्मरण

दिंनाक: 30 Aug 2013 15:30:59

मन के हारे हार है मन के जीते जीत’, यह कहावत जितनी व्यक्ति पर लागू होती है उतनी ही समाज पर भी लागू होती है। विजय की आकांक्षा व विजय की अनूभूति समाज मन का शक्तिवर्धन करती हैं। जब समूचा राष्टÑ ही अपनी निहित शक्तियों के प्रति अनभिज्ञ होने के कारण आत्मग्लानि से ग्रस्त हो जाता है तब कोई अद्वितीय विजय ही उसे मानसिक लकवे से बाहर ला सकती है। आत्म-विस्मृति की मानसिकता पराभव की मानसिकता होती है, अकर्मण्यता की मानसिकता होती है। ऐसे में स्वप्न भी संकुचित हो जाते हैं।
19 वीं शताब्दी के अंत में भारत की यही स्थिति थी। कहीं से कोई आशा नहीं दिखाई देती थी। पराधीनता तो थी ही, स्वाधीनता के लिए प्रयत्न करने का आत्मविश्वास भी नष्ट प्राय: सा हो गया था।
इस बौद्घिक, मानसिक व आर्थिक दासता की पृष्ठभूमि में 11 सितम्बर 1893 को शिकागो की सर्वपंथ सभा में हुए दिग्विजयी चमत्कार को समझा जाना चाहिए। सनातन हिंदू धर्म का गर्वोन्नत प्रतिनिधित्व करते हुए युवा संन्यासी स्वामी विवेकानन्द ने प्राचीन ऋषियों के दिव्य सम्बोधन जब समूचे विश्व के सामने रखे तब केवल सभागार में बैठे 7000 श्रोता ही नहीं अपितु पूरा अमरीका बंधुत्व भाव से अनुप्राणित हो गया। उपस्थितों को आध्यात्मिक अनूभूतियां होने लगीं। किसी ने कहा-‘अमरीका निवासी मेरे प्यारे भगिनी और बंधु, इन पांच शब्दों को सुनकर हमारे शरीर में विद्युत तरंग सी दौड़ने लगी थी।’ किसी ने अपनी दैनंदिनी मे लिखा,  ‘मुझे मेरा खोया भाई मिल गया।’ वैसे बंधुत्व के संबोधन का प्रयोग करने वाले स्वामी विवेकानंद उस दिन की सभा के पहले वक्ता नहीं थे। उनसे पूर्व महाबोधि सोसायटी के प्रतिनिधि श्रीलंका से पधारे धम्मपाल अंगिकारा, भारत से ही थियोसॉफिकल सोसायटी का प्रतिनिधित्व कर रहे प्रताप चंद्र मजूमदार तथा जापान के एक बौद्घ भिक्षु ने लगभग ऐसे ही संबोधन से सभा को संबोधित किया था। उसी समय लगभग आधे घंटे के उपरांत चौथी बार यह संबोधन सुनने के बाद श्रोताआें ने ऐसी अनूठी प्रतिक्रिया दी थी। इसके पीछे का कारण केवल नावीन्य नहीं था, अपितु वैदिक ऋषियों की परंपरा से उत्पन्न भारतीय संस्कृती के एकात्म जीवन दर्शन की प्रत्यक्षानुभूती थी। इसीलिए यह केवल एक व्यक्ति का जागतिक मंच पर प्रतिष्ठित होना नहीं था, अपितु चिरपुरातन नित्यनूतन हिंदू जीवन पद्घति की विश्वविजय थी।
वर्तमान संचार व्यवस्था के समान  संवाद के ज्यादा साधन उपलब्ध न होते हुए भी यह समाचार किसी वडवानल की भांति प्रथम अमरीका, तत्पश्चात ्यूरोप व अंतत: भारत में प्रसारित हुआ। इस अद्भुत घटना के मात्र एक वर्ष के अंदर ही देश का सामान्य किसान भी इसके बारे में चर्चा करने लगा था। इस दिग्विजय की घटना ने भारत के मानस को झकझोर दिया और यह सुप्त देश जागृत हुआ। ‘हम भी कुछ  कर सकते हैं,’ ‘हमारे अपने धर्म, संस्कृती, परंपरा में विश्वविजय की क्षमता हंै’, इसका भान आत्मग्लानि से ग्रसित राष्टÑ देवता को अपनी घोर निद्रा से बाहर लाने के लिए पर्याप्त था। अत: शिकागो की परिषद् में हुई आध्यात्मिक दिग्विजय को हम भारत की सर्वतोमुखी विश्वविजय का शुभारंभ कह सकते हैं।
इतिहास इस घटना के गांभीर्य को भले ही अभी पूर्णता से न समझा पाया हो और संभवत: आने वाले निकट भविष्य में भारत की विजय के पश्चात इसे जान सके, किंतु स्वामी विवेकानंद स्वयं अपने पराक्रम को पहचानते थे। अत: 2 जनवरी 1897 को रामनाड में बोलते हुए उन्होंने अपने अभूतपूर्व स्वागत के प्रत्युत्तर का प्रारंभ इन शब्दों से किया,‘सुदीर्घ रजनी अब समाप्तप्राय: सी जान पड़ती है, यह काली लंबी रात अब टल गयी, नभ में उषा काल की लाली ने समूचे विश्व के सम्मुख यह उद्घोष कर दिया है कि यह सोया भारत अब जाग उठा है।’
1897 में अंग्रेजों की पराधीनता से ग्रस्त भारत के प्रति स्वामी विवेकानन्द का अद्भुत आत्मविश्वास तो देखिए कि वे आगे कहते हैं, ‘केवल चक्षुहीन देख नहीं सकते और विक्षिप्त बुद्घि समझ नहीं सकते कि यह सोया हुआ अतिकाय अब जाग उठा है। अब यह नहीं सोयेगा। विश्व की कोई शक्ति इसे तब तक परास्त नहीं कर सकती जब तक यह अपने दायित्व को न भुला दे।’ स्वामी विवेकानंद ने मृतप्राय: से हिंदू समाज के सम्मुख विश्व विजय का उदात्त लक्ष्य रखा।
एक स्थान पर बोलते हुए उन्होंने स्पष्टता से कहा है, ‘कोई अन्य नहीं व तनिक भी कम नहीं, केवल विश्वविजय ही मेरा लक्ष्य है।’ जब हम स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जयंती को पूरे विश्व में तथा भारत के गांव-गांव में मना रहे हैं तब हमें भारत की इस आध्यात्मिक विश्वविजय के जीवनलक्ष्य का पुन:स्मरण करना चाहिए। स्वतंत्रता के पश्चात हमारी शिथिलता ने हमारी नयी पीढ़ी को राष्टÑध्येय के प्रति विस्मृत कर दिया है। भारत के स्वातंत्र्य का अर्थ ही वर्तमान पीढ़ी भूल गई है। इस कारण जब थोड़े से देशाभिमान से आज का युवा प्रेरित भी हो जाए तो भारत को विश्व का सबसे अमीर देश बनाने का स्वप्न देखता है। वैश्विक महाशक्ति का स्वप्न वर्तमान पीढ़ी आर्थिक महासत्ता के रूप में ही देखती है। यह भारत के स्वभावानुरूप नहीं हैं। और इसीलिए स्वामी विवेकानन्द को अभिप्रेत विश्वविजय भी नहीं है। स्वामी विवेकानन्द ने स्पष्ट कहा है, ‘भारत विश्वविजय करेगा यह निश्चित है।  किन्तु यह विजय राजनीतिक, सामाजिक अथवा आर्थिक बल से नहीं होगी, अपितु आत्मा की शक्ति से ही होगी।’ स्वामी जी ने सिंह गर्जना की थी, ‘उठो भारत! अपनी आध्यात्मिक शक्ति से संपूर्ण विश्व पर विजय   प्राप्त करो।’
आर्थिक सम्पन्नता, कूटनीतिक सम्प्रभुता इस आध्यात्मिक जगत्गुरु पद के प्रतिबिम्ब मात्र होंगे। अत: प्रयत्न राष्टÑ की संस्कृति के आध्यत्मिक जागरण के लिए होने चाहिए। आर्थिक व राजनीतिक समृद्घि तो इस सांस्कृतिक पुनर्जागरण के सहज सहउत्पाद होंगे। स्वामी विवेकानन्द की सार्द्धशती पर हमारी सम्यक श्रद्घाञ्जलि यह होगी कि हम चिरविजय की अक्षय आकांक्षा को राष्टÑजीवन में पुन: जागृत कर दें।  भारत का स्वधर्म, ज्ञान प्रवण अध्यात्म है और इसका व्यावहारिक आचरण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धर्म संस्थापना है। अत: 17वीं शताब्दी के प्रारंभ तक विश्व की सकल संपदा के 66 प्रतिशत हिस्से का उत्पादन करने वाला समृद्घ राष्टÑ विश्व व्यापार का आकांक्षी नहीं रहा। हर्षवर्धन, चंद्रगुप्त, समुद्रगुप्त, विक्रमादित्य आदि की पराक्रमी सेनाओं ने राजनीतिक विजय के लिए कभी राष्टÑ की सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया। भारत न तो अपने सामरिक सामर्थ्य से जगत को पदाक्रांत करने की अभिलाषा रखता है, न ही अपनी आर्थिक सम्पत्ति से अन्य राष्ट्रों को बाजार बनाकर उनका शोषण करना चाहता है। भारत की तो सहस्त्राब्दियों से एक ही आकांक्षा रही है कि विश्व की मानवता को ऋषियों की वैज्ञानिक जीवनपद्घति की सीख दे।
आइए, स्वामी जी की 150वी जयंती के उपलक्ष्य में संकल्प लें कि अपने जीते जी इस दृष्टि को जीवंत करने का प्राणपण से पराक्रम करेंगे
 मुकुल कानिटकर (लेखक भारतीय शिक्षण मण्डल के
अ़ भा़ सह संगठन मंत्री हैं)

हिन्दुत्व के योद्धा संन्यासी

मानव जाति के इतिहास में एक युग की शुरुआत 11  सितम्बर, 1883 को शिकागो (अमरीका) के कोलम्बस हॉल में हुई थी। इसके सूत्रधार थे स्वामी विवेकानन्द। हिन्दू धर्म के पुनरुथान के लिए एक महाशक्ति-उनके दिवंगत गुरु रामकृष्ण परमहंस की शक्ति-स्वामी विवेकानंद में घनीभूत हुई थी।
आयरलैण्ड की विदूषी महिला श्रीमती ऐनी बीसेन्ट, जो बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्षा बनीं (1917), ने हिन्दुत्व की वैचारिक दिग्विजय का सूत्रपात शिकागो धर्म महासभा में अपनी आंखों से देखा था और उन्होंने स्वामी विवेकानन्द का जो वर्णन किया, वह अद्भुत है- ‘विवेकानन्द संन्यासी के नाम से विख्यात हैं, पर वास्तव में हैं वे एक योद्धा। दूसरे उपस्थित प्रतिनिधियों में उम्र में सबसे छोटे होने पर भी प्राचीनतम व श्रेष्ठतम सत्य की जीती जागती मूर्ति। उन्नत पाश्चात्य जगत में दूत का काम करने के लिए अपनी योग्यतम संतान को नियुक्त कर भारतमाता गौरवान्वित हुई थीं।’
उनकी शिकागो वक्तृत्वता के प्रभाव के बारे में समकालीन समाचारपत्र दि प्रेस आॅफ अमेरिका ने लिखा था- ‘हिन्दू दर्शन व विज्ञान में निष्णात स्वामी विवेकानन्द ने अपने भाषणों द्वारा विराट् सभा को मुग्ध कर दिया। तमाम ईसाई चर्चों के पादरी वहां उपस्थित थे। पर स्वामी जी की वाक्पटुता की आंधी में उनके सभी वक्तव्य- विषय बह गए।’
‘न्यूयार्क हैरल्ड’ नामक पत्र ने लिखा- ‘शिकागो धर्म महासभा में विवेकानन्द ही सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हैं। उन्हें सुनकर ऐसा लगता है कि धर्म के मामले में भारत जैसे समुन्नत राष्ट्र में हमारे (अर्थात् ईसाई मत के) मिशनरियों को भेजना बुद्धिहीनता है।' मेरी लुई बर्क नामक अमरीकी लेखिका, जो बाद में स्वामी जी की शिष्या बनकर भगिनी गार्गी कहलाईं, ने लिखा- ‘धर्म महासभा के हजारों श्रोताओं की दृष्टि में स्वामी जी ईसाई चर्चों की नीरस-विचार शून्य बातों के विरोध में खड़े हुए एक विजयी            योद्धा थे।'
 इन्हीं श्रोताओं में एक थे सर हीरम मैक्सिम, जिन्होंने 1883 में पहली स्वचालित मशीनगन का आविष्कार कर पर्याप्त ख्याति अर्जित की थी। उन्होंने लिखा- ‘…अमरीका के प्रोटेस्टैंट ईसाइयों ने सोचा था कि अन्य पंथों को धर्म महासभा में परास्त करना उनके लिए बाएं हाथ का खेल है और इस पूरे आत्मविश्वास के साथ, कि ‘देखो तो सही, तुम्हारा किस तरह खात्मा करते हैं’, उन्होंने सम्मेलन शुरू किया। किन्तु जब विवेकानन्द बोले तब वे जान गए कि उनका पाला एक नेपोलियन के साथ पड़ा है। स्वामी जी ने बीज बो दिया था तथा अमरीकी लोग सोचने लगे थे कि इस देवदूत के देश में मतांतरण करने को पादरी भेजने के लिए हम अपने पैसों का अपव्यय क्यों करें। परिणाम स्पष्ट था- मिशनरियों की वार्षिक आय दस लाख डॉलर से भी अधिक घट गयी। मिशनरी मतान्तरण पर कमरतोड़ चोट पड़ चुकी थी।
अपने एक मद्रासी शिष्य को स्वामी जी ने 28, जून 1894 को एक पत्र में लिखा- ‘मिशनरी लोग घर-घर जाकर प्रयास करते हैं कि मेरे अमरीकी मित्र मुझे त्याग दें? एक तो ये लोग मेरे पीछे पड़े हुए थे, साथ ही यहां के कुछ हिन्दू भी ईर्ष्या के कारण उनका साथ दे रहे हैं।’21 सितम्बर, 1894 को वे फिर लिखते हैं- ‘आजकल यहां कट्टरपंथी ईसाई ‘त्राहिमाम’ मचाये हुए हैं। वे मुझे यम जैसा देखते हैं और कहते हैं, यह पापी कहां से टपक पड़ा, देशभर के नर-नारी इसके पीछे लग फिरते हैं। यह कट्टरपंथियों की जड़ ही काटना चाहता है। समय आएगा, जब कट्टरपंथियों का दम निकल जाएगा। अपने यहां बुलाकर बेचारों ने एक मुसीबत मोल ले ली है, ये अब यही महसूस करने लगे हैं।’
सत्य ही कहा है कि एक विवेकानन्द ही जान सकता है कि विवेकानन्द ने क्या किया।  फिर केवल पश्चिम ही क्यों, स्वदेश लौटकर यहां जो राष्ट्रभक्ति की लहर उन्होंने पैदी की, जिसके ज्वार ने अंग्रेजी साम्राज्य डुबोया और जिसमें आज तक भारतवासी अवगाहन कर रहे हैं, वह उन्हें सार्वकालिक श्रेष्ठतम राष्ट्रसाधकों की श्रेणी में ख    करता है। 
अजय   मित्तल

Share15TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

नहीं हुआ कोई बलात्कार : IIM जोका पीड़िता के पिता ने किया रेप के आरोपों से इनकार, कहा- ‘बेटी ठीक, वह आराम कर रही है’

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies