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केद्र सरकार कोयले की कालिख मिटाने का उपाय इस घोटाले से जुड़ी फाइलों को गायब करके करने में लगी है। लेकिन सरकार का यह भ्रम है कि फाइलें गायब होने से असलियत छिप जाएगी, इसके उलट अब सरकार की फजीहत संसद से सड़क तक हो रही है। जो फाइलें गायब हुई हैं उनमें 45 कंपनियों के दस्तावेज नत्थी हैं। इस मसले से यह आशंका पुख्ता हुई है कि सरकार कोल खण्ड आवंटन से जुड़े प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को बचाना चाहती है। गायब हुई फाइलें प्रधानमंत्री के उस कार्यकाल से जुड़ी हैं जब उनके पास कोयला मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार था। इसरो से जुड़े ऐटिक्स देवास मामले के बाद कोयला घोटाला ही ऐसा मामला है, जिसके बाहर आने के बाद गड़बड़ी के छीटें प्रधानमंत्री पर सीधे पड़े हैं। कैग के बाद सीबीआई भी अपनी रपट में कोल खण्डों के आवंटन को गलत ठहरा चुकी है। लिहाजा सरकार द्वारा प्रधानमंत्री को बचाया जाना लाजिमी था। लेकिन फाइलें गायब करने जैसे हथकण्डों की बजाय सरकार और प्रधानमंत्री को अपना पक्ष कानून के दायरे में रखने की जरूरत थी।
प्रधानमंत्री के कोयला मंत्री रहने के दौरान ये कोल खण्ड ऐसी कंपनियों को दे दिये गए जिनकी न तो कोई बाजार में साख थी और न ही इस क्षेत्र में काम करने के अनुभव थे। न्यायमूर्ति आऱएस़ लोढ़ा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने रपट पर गौर करने के बाद साफ किया कि पहली नजर में गड़बडि़यांे के आरोपों की पुष्टि होती है और यदि आरोप सही पाये जाते हैं तो सभी आवंटन रद्द कर दिए जाएंगे। न्यायालय की यह टिप्पणी केंद्र सरकार के लिए चिंताजनक है।
कोल खण्डों के आवंटन से जुड़ी गड़बडि़यां कैग की अंकेक्षण प्रतिवेदन से सामने आई थीं। उसमें तथ्यात्मक आशंकाएं जताई गई थीं। लेकिन सरकार ने केवल यह जुमला छोड़ कर बरी हो जाने की कोशिश की थी कि नीति पारदर्शी थी और उसमें कोई अनिमितता या गलती नहीं हुई है। वैसे नीतियां तो सभी पारदर्शी और जन कल्याणकारी होती हैं, लेकिन निजी स्वार्थपूर्तियों के लिए उन पर अपारदर्शिता का मुलल्मा चढ़ाकर ही भ्रष्टाचार के द्वार खोले जाते हैं। अपारदर्शिता और अनीति का यही खेल कोल खण्डों के आवंटन में बरता गया और पलक झपकते ही चुनिंदा निजी कंपनियों को 1़86 लाख करोड़ रुपये का लाभ पहुंचा दिया। कोयले की इस दलाली में काले हाथ किसी और मंत्री – संत्री के नहीं बल्कि उस प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के हुए हैं जो ईमानदारी का कथित चोला ओढ़े हुए हैं। क्योंकि 2004-2009 के दौरान जिन कोल खण्डों का आवंटन किया गया, तब कोई और नहीं खुद प्रधानमंत्री कोयला मंत्री का अतिरिक्त प्रभार संभाले हुए थे।
कोल खण्डों के आवंटन में गड़बडि़यां हैं, इसकी सुगबुगाहट तो बहुत पहले शुरू हो गई थी। बाद में दल अण्णा ने मनमोहन सिंह समेत 15 कैबिनेट मंत्रियों पर दस्तावेजी साक्ष्य पेश करके भ्रष्टाचार के जो अरोप लगाए थे, उनसे भी तय हो गया था कि केंद्र्र सरकार का यह मंत्रिमण्डल अलीबाबा चालीस चोरों का समूह है।
कैग ने तय किया कि देश मेंअब तक का सबसे बड़ा घोटाला 1़76 लाख करोड़ रुपये का 2जी स्पेक्ट्रम था और अब यह कोयला घोटाला 1़86 लाख करोड़ रुपये का हो गया। इससे पहले मार्च 2012 में कैग की अनुमानित रपट सामने आई थी। उसमें 10़71 लाख करोड़ रुपय के नुकसान का आकलन किया गया था। उस समय सरकार ने इसे प्रारूप पत्र कहकर टाल दिया था। तब वित्त मंत्री पी. चिदंरबरम की ओर से संसद में सार्वजनिक की गई इस रपट के बारे में कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने दलील दी थी कि कैग के आकलन का तरीका ही गलत है। हम संसद की लोक लेखा समिति में अपना पक्ष रखेंगे।
2004 में जब पहली बार मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कोयला मंत्रालय अपने ही अधीन रखा। सरकार ने नीलामी के जरिए कोल खंड देने का फैसला किया। लेकिन इस हेतु न तो कोई वैधानिक तौर तरीके बनाए गए और न ही कोई प्रक्रिया अपनाई गई। लिहाजा प्रतिस्पर्धा बोलियों को आमंत्रित किए बिना ही निजी क्षेत्र की कंपनियों को सीधे नामांकन के आधार पर कोल खण्ड आवंटित किए जाने लगे। 2004-2009 के बीच 342 खदानों के पट्टे 155 निजी कंपनियों को दे दिए गए। कैग ने अभी केवल 194 कोल खण्डों की जांच की है। कैग ने कहा है, 25 नामी कंपनियां तो ऐसी हैं जिन्हें औने – पौने दामों में सीधे नामांकन के आधार पर कोल खंड दिए गए हैं। बाद में इसी तथ्य की पुष्टि सीबीआई ने की। लेकिन कोयले की कालिख को जाग्रत करने वाली फाइलें ही गायब कर दी गईं हैं। यह सब प्रधानमंत्री को पाक साफ बनाए रखने की दृष्टि से किया गया कारनामा लगता है। प्रमोद भाार्गव
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