तत्कालीन चकबंदी महानिदेशक अशोक खेमका ने किया खुलासा-रॉबर्ट वाड्रा-डीएलएफ सौदे में फर्जीवाड़े से हुआ जमीन का सौदा
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तत्कालीन चकबंदी महानिदेशक अशोक खेमका ने किया खुलासा-रॉबर्ट वाड्रा-डीएलएफ सौदे में फर्जीवाड़े से हुआ जमीन का सौदा

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Aug 19, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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हुड्डा सरकार मेहरबान ‘दामाद जी’ पहलवान

दिंनाक: 19 Aug 2013 11:13:26

 गांधी परिवार के दामाद, राबर्ट वाड्रा ने गोरखधंधे से कमाए 58 करोड़, सरकार ने कानूनों से आंख फेरी

हरियाणा के गुड़गांव में शिकोहपुर गांव में राबर्ट वाड्रा-डीएलएफ सौदे में  प्रदेश की हुड्डा सरकार पर गंभीर आरोप लगे हंै, जिसमें सरकार ने ‘कांग्रेस के दामाद’ राबर्ट वाड्रा को लाभ पहुंचाने के लिए सभी चकबंदी नियम-कानूनों को नजरअंदाज किया। यही नहीं सरकार ने न तो लेन-देन की हकीकत को देखा और न ही उसके फर्जी दस्तावेजों पर गौर किया। जब पोल खुली तो लीपापोती करने के लिए जांच समिति बनाकर रफा-दफा करने का प्रयास भी किया। राबर्ट वाड्रा-डीएलएफ सौदे में जब अधिकारी ने फर्जीवाड़ा होने का संदेह जताकर सौदा रद्द करने के आदेश दिए तो सरकार ने उसे भी नजरअंदाज कर दिया और अधिकारी का ही स्थानांतरण कर दिया। ऐसे में शुरू से ही इस मामले में सरकार की पूरी तरह मिलीभगत साफ नजर आती है। चकबंदी विभाग के तत्कालीन महानिदेशक अशोक खेमका की ‘रिपोर्ट’ देखें तो राबर्ट वाड्रा व डीएलएफ के बीच जिस सौदे में चकबंदी कानून को ताक पर रखा, उसमें वाड्रा द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों पर ही सवालिया निशान लग गया। यही नहीं लेन-देन में इस्तेमाल चैक भी फर्जी बताया गया और कहा कि सौदा ‘कमर्शियल कॉलोनी’ लाइसेंस हासिल करने तक ही सीमित दिखाई दिया है। जब अधिकारी ने जमीन सौदे को रद्द करने के आदेश दिए तो रास नहीं आया और सरकार ने अक्तूबर 2012 में उन अधिकारियों अतिरिक्त मुख्य सचिव कृष्ण मोहन, के के जालान व राजन गुप्ता की तीन सदस्यीय समिति को ही जांच का जिम्मां सौंप दिया जिनकी भूमिका इस मामले में पहले से ही संदेह के घेरे में रही है। कृष्ण मोहन पर अशोक खेमका ने आरोप लगाया है कि जांच समिति ने उनसे किसी भी तरह की जानकारी नहीं ली। जिसको लेकर उन्होंने 21 मई 2013 को 100 से ज्यादा पेज में लिखा अपना जवाब समिति को सौंप दिया। प्रदेश की जनता भी मांग कर रही है कि यदि हुड्डा सरकार पाक साफ है तो क्यों जांच नहीं कराती और अधिकारी द्वारा दी गई अपनी रिपोर्ट मिलने के 3 महीने बाद भी क्यों चुप्पी साध रखी है।
खेमका की ‘रिपोर्ट’ – खेमका ने अपनी ‘रिपोर्ट’ में कहा है कि डीएलएफ को दो बार लाइसेंस से इनकार किया जा चुका था, लेकिन जैसे ही वाड्रा की कंपनी इसमें शामिल हुई, लाइसेंस जारी हो गया। इसके बदले में वाड्रा की कंपनी के प्रति एकड़ 15 करोड़ 78 लाख रुपए का प्रीमियम मिला। फरवरी 2008 में वाड्रा की कंपनी स्काईलाईट हॉस्पिलिटी ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से शिकोहपुर गांव में 3.़53 एकड़ जमीन खरीदी। ‘सेल डीड’ में साढ़े सात करोड़ रुपए के चेक से भुगतान का जिक्र है। उन्होंने कहा कि जो चैक दिया गया यदि उसकी बैंक रिपोर्ट को देखें तो उस दौरान वाड्रा के बैंक खाते में सौदे से संबंधित पर्याप्त राशि ही नहीं थी जिससे चेक फर्जी होने की पुष्टि होती है। उन्होेंने कहा कि फरवरी में डील और मार्च 2008 में हरियाणा सरकार के डिपार्टमेंट आॅफ टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (डीटीसीपी) से वाड्रा की कंपनी ने कमर्शियल कॉलोनी का लाइसेंस हासिल किया और अगस्त 2008 में वाड्रा की कंपनी ने जमीन 58 करोड़ रूपए में डीएलएफ को बेच दी। जिस पर अप्रैल 2012 में डीटीसीपी ने डीएलएफ को कॉलोनी लाइसेंस ट्रांसफर करने की अनुमति दी।
जांच समिति के सदस्यों पर सवालिया निशान- खेमका ने मुख्य सचिव को भेजी अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि जांच समिति सदस्य पहले ही संदेह के घेरे में है।  कृष्ण मोहन इस डील के रेवेन्यु विभाग के मुखिया थे, जिनकों इस मामले में घोटाले की जानकारी दी गई थी। लेकिन उन्होनें ध्यान नहीं दिया। यही नहीं उनके सुझाव को भी अंदेखा किया।  उधर जांच समिति के दूसरे सदस्य के.के. जालान ‘टाऊन एंड कंटरी प्लानिंग एंड अरबन स्टेट’ के प्रधान सचिव थे, तब उन्होंने सी.एल.ए. और आवासीय कॉलोनी के ‘लाईसैंस’ दिए और जमीन के मालिकों को जमीन को बेचने के लिए मजबूर किया।
‘डील’ से संबंधित जमीन- हरियाणा के गुड़गांव में शिकोहपुर गांव में राबर्ट वाड्रा-डीएलएफ डील से संबंधित जमीन खसरा ऩ 730 में है। 9 एकड़ के इस जमीन को 21 फरवरी 2006 में मालिक बदलु राम ने लक्ष्य बिलडर्स को बेचा। जिसे बाद में ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज को बेचा गया। इस जमीन के 3.़53 एकड़ जमीन पर वाड्रा डीएलएफ ‘डील’ हुई।
क्या है स्काईलाईट व ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज की हकीकत- स्काईलाईट प्रॉपर्टीज के मालिक खुद राबर्ट वाड्रा हैं। जबकि ओंकरेश्वर प्रॉपर्टीज के मालिक सत्यानंद काजी हैं जिनके पिता स्वतंत्रता सेनानी शीलभद्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता के निजी दोस्त रहे हैं।   डा. गणेश दत्त वत्स

नाम की आंधी और जेब के गांधी
तरकश
देखिए नाम मत बिगाड़िए, आप रॉबर क्यों कहते हैं? लुटेरा क्यों कहते हैं? लूट नहीं, यह तो उनकी महिमा है। लक्ष्मी और सरस्वती का वैर है, आप जानते हैं फिर भी कहते हैं बिना बिजनेस स्कूल गए खनखन-खजाना कैसे? वैसे, खोट आपके मन में है। पैसे-कैसे, ऐसे कैसे, ये सब सवाल फिजूल हैं। वो महापुरुष हैं, नामसिद्धी योग के जानकार। ‘मां’ की सीधी कृपा उन पर हुई और नाम की आंधी और जेब   के गांधी के बीच का रहस्यमय सूक्त उनपर खुल गया। सूक्त क्या खुला, पीतल में रुलने वाले को पारस ही मिल गया। यह मत कहिए कि वे ठाठ करते हैं, असल में वे इस नामसिद्धि मंत्र का पाठ करते हैं।
बस ‘आबरा का वाडरा’ बुदबुदाया कि हरहरा के तरंगे उठीं और हरे-हरे नोट तैरने लगे। ऐसा चमत्कार कि किन जेबों के नोट किन तिजोरियों की तरफ उड़ चले किसी को अंदाज ही नहीं। भाव विभोर करने वाली इस शक्ति को देखिए, प्रणाम कीजिए, कृपा पाइए…मान जाइए।
आखिर आपको उनसे शिकायत क्या है? क्या कहा चश्मा…इस काले चश्मे से चिढ़ कैसी? पूरे सिस्टम की आंखों पर ऐसा ही काला चश्मा तो है। चश्मा चढ़ा रहने दीजिए, पर्दा पड़ा रहने दीजिए प्लीज, मान जाइए। दाग नहीं, दाग थोड़ी है, ध्यान दे देखिए टैटू है, फैशन है, जो किया वो जमाने का चलन है। अब दामाद जमाने के साथ चल रहा है तो नाराजगी कैसी? मान जाइए, आखिर वे मान पक्ष है, मान भी जाइए।
दामाद तो हीरा है, हां, लोकतंत्र की एक बुरी बात है। तंत्र की बुराई अगर लोक के कान में पड़ जाए तो जी हूम…हूम करे वाली बात हो जाती है। सो, दामाद और सासू मां का दिल ना दहलाइए,
मान जाइए।                              बेलाग देहलवी

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