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राष्ट्रप्रेम की प्रेरक कहानियां

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Jul 27, 2013, 12:00 am IST
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युगपुरुष की महाकाव्यात्मक गाथा

दिंनाक: 27 Jul 2013 13:57:10

 

 

यह स्वामी विवेकानंद का सार्द्धशती वर्ष चल रहा है। इस निमित्त हिन्दी, अंग्रेजी सहित लगभग सभी भारतीय भाषाओं में अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं। विवेकानंद के जीवन, दर्शन और आदर्शों को अलग-अलग तरह से व्याख्यायित करती इन पुस्तकों के बीच स्वामी जी की संपूर्ण जीवन गाथा की। 'युवमन्यु' में काव्यात्मक प्रस्तुति सहज ही ध्यान आकृष्ट करती है। प्रसिद्ध कवि एवं साहित्यकार आचार्य देवेन्द्र देव ने महाकाव्य स्वरूप में स्वामीजी के जीवन को लयबद्धता के साथ व्यक्त कर विलक्षण कार्य किया है। इस पुस्तक के शीर्षक चयन से लेकर उसमें वर्णित अनेक संदर्भों में लेखक ने विशेष रूप से युवा पीढ़ी को प्रेरित करने का प्रयत्न किया है। इस पुस्तक की एक विशेषता यह भी है कि यह केवल वैचारिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की दृष्टि से भी पाठक को बांधकर रखने में सक्षम है। इसमें पूर्व भी आचार्य देवेन्द्र देव की एक अन्य महाकाव्यात्मक कृति 'गायत्रेय' भी बहुचर्चित और बहुप्रशंसित हो चुकी है, लेकिन इस कृति के नायक के चरित्र में जिस तरह मनुष्यत्व में व्याप्त देवत्व का सुंदर समावेश करते हुए लेखक ने उसे छंदबद्ध किया है, उसे पढ़ना व महसूस करना अपने आपमें अलग तरह की अनुभूति प्रदान करता है। कुल ग्यारह सर्गों में विभक्त स्वामी विवेकानंद की गाथा न केवल छंदबद्ध और अलंकारिक है बल्कि उसकी भाषा में एक प्रवाह भी है। विवेकानंद जैसा दिव्य व्यक्तित्व और उस पर सुन्दर छंदों का संयोजन एक ऐसे साहित्य बिम्ब की रचना करते हैं जिसकी अनुभूति लंबे समय तक पाठक के मन में छायी रहती है।

आज के दौर में जब अधिकांश गद्य कविता ही लिख रहे हैं, और कहीं न कहीं इसमें बहुत से अकवियों को भी कवि बनने का अवसर मिल गया है, तब इस प्रकार की छंद और अलंकार युक्त कविता पढ़ना सुखद अनुभूति देता है। स्वामी विवेकानंद के अमरीका उद्बोधन के बाद भारत लौटने पर उनकी विद्वता को बड़ी खूबसूरती से आचार्य देव ने शब्दांकित किया है-

जैसे लौटे श्रीलंका से श्रीराम अयोध्या,

मर्दन करके अहंकार रावण का सारा।

जैसे लौटे कृष्ण कंस का गर्व खर्व कर

किए मुक्त पितु–मातु, तोड़ मथुरा की कारा।।

वैसे ही सब यूरोपीय देशों को मथकर,

अपनी संस्कृति की फहराकर दिव्य पताका।

लौटे थे युवमन्यु विवेकानन्द समुन्नत,

करके नभ में गर्वित मस्तक भारत मां का।।

इसी तरह स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़े अनेक पक्षों और प्रसंगों को कवि ने बहुत सुंदर और सम्मोहक छंदों में लिपिबद्ध किया है। यह केवल एक बानगी भर है उस महाकाव्य की। पढ़ते जाइये, स्वामी विवेकानंद के जीवन पर इससे बेहतर काव्य रचना शायद ही कोई दूसरी हो। इसीलिए इस काव्य के रचयिता आचार्य देवेन्द्र देव को परमार्थ निकेतन (ऋषिकेश) के प्रमुख स्वामी चिदानन्द मुनि, भारतमाता मन्दिर के संस्थापक स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि, योगगुरु स्वामी रामदेव ने तो आशीर्वचन दिया ही, रा.स्वसंघ के  सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने भी साधुवाद दिया। बाल कवि बैरागी के शब्दों में कहें तो, 'कवि ने अपनी सृजना के पृष्ठों पर आज की पीढ़ी का ज्ञान-वर्द्धन करते हुए अपने अनुशासित सृजन के माध्यम से स्वामी जी के जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों को प्रस्तुत करने करने का प्रशंसनीय और अभिनंदनीय कार्य किया है।'

पुस्तक का नाम –   युवमन्यु (महाकाव्य)

लेखक      –  आचार्य देवेन्द्र देव

प्रकाशक   –          परमार्थ प्रकाशन

                   ऋषिकेश (उत्तराखण्ड)

मूल्य       – 120 रुपए पृष्ठ – 256

सम्पर्क      –   (0) 9412870495

देशभक्ति की भावनाओं से ओत-प्रोत घटनाओं पर आधारित कहानियों का संकलन 'राष्ट्र-प्रेम की कहानियां' कुछ समय पूर्व प्रकाशित होकर आया है। इस संग्रह में अधिकतर कहानियां ब्रिटिश शासनकाल की हैं, जब इस देश के बच्चे-बच्चे में राष्ट्र को स्वाधीन कराने की भावना हिलोरे ले रही थी। कई ऐसे प्रसंगों पर आधारित घटनाओं की भी चर्चा है जो राष्ट्र के प्रति उनके मन में मौजूद भावना को प्रदर्शित करती है। मिसाल के तौर पर चंद्रशेखर आजाद के जीवन से जुड़े एक प्रसंग पर आधारित कहानी 'देशसेवा के लिए है यह धन' की चर्चा कर सकते हैं। इसमें जिस तरह से तमाम मुसीबतें झेलती अपनी मां से भी ऊपर भारत माता की चर्चा आजाद के द्वारा होती है, वह अपने आपमें विलक्षण उदाहरण है। उत्तेजित स्वर में आजाद का यह कहना, 'भावी पीढ़ी को क्या यह संदेश दिया जाएगा कि लोगों से धन एकत्र करके देशसेवा की जगह परिवार सेवा में लगा दिया?', आज के दौर के राजनेताओं के लिए यह एक सबक की तरह हो सकता है।

इसी तरह 'वारांगना बनी वीरांगना' कहानी में जिस तरह नाचने- गाने वाली अजीजन बाई क्रांतिकारियों की मदद करते हुए अपने प्राण आहूत कर देती हैं, ऐसे उदाहरण मिलना दुर्लभ हैं। 'देशप्रेम और धैर्य' कहानी में कमजोर जर्मन सेना के सेनापति द्वारा सुभाष चन्द्र बोस से प्रेरणा लेकर ब्रिटेन और फ्रांस की सेनाओं के समक्ष हथियार न डालना, प्रेरणास्पद है। इसी तरह 'स्वदेशी वस्तु प्रेम' कहानी में महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा अंग्रेज व्यापारी के समक्ष यह उदाहरण प्रस्तुत करना कि भारतीय लोग स्वनिर्मित, स्वदेशी और दीर्घकालीन उपयोगी वस्तुओं का ही इस्तेमाल करते हैं, विदेशी चमक-दमक वाली क्षणभंगुर वस्तु को नहीं, आज के दौर में उन लोगों को दिशा प्रदान कर सकती है, जो विदेशी 'ग्लैमरस' वस्तुओं को बगैर सोचे-समझे अपनाना अपनी शान समझते हैं। इसी तरह कहानी 'देश की रक्षा-हम करेंगे' में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ करने की कोशिश को नाकाम करने के लिए गुल मोहम्मद जिस तरह भयानक ठंड भरी रात में ही भारतीय सेना को खबर देने घर से निकल पड़ता है, वह कथानक किसी भी व्यक्ति को देश के प्रति उसके दायित्व का बोध करता है। कह सकते हैं कि इस संग्रह में सभी कहानियों में देशप्रेम की भावना को सर्वोपरि मानते हुए अलग-अलग घटनाओं और पात्रों के माध्यम से व्यक्त किया गया है।

 

 पुस्तक का नाम –       राष्ट्र प्रेम की कहानियां

लेखक        –  आचार्य मायाराम पतंग

प्रकाशक     –            प्रतिभा प्रतिष्ठान

                   1661, दखनीराय स्ट्रीट

                   नेताजी सुभाष मार्ग, नई दिल्ली-110002

मूल्य         – 200 रुपए,  पृष्ठ – 159

'कैनवास पर शब्द' लोकार्पित

रेखांकन कला में देश में पहचान बना चुके श्री सन्दीप राशिनकर के प्रथम काव्य संग्रह 'कैनवास पर शब्द' का लोकार्पण गत दिनों देवपुत्र के सम्पादक श्रीकृष्ण कुमार अष्ठाना की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। 'हिन्दी परिवार' (इन्दौर) एवं आपले वाचनालय के संयुक्त आयोजन में इस कृति पर चर्चा करते हुए विशेष अतिथि पत्रकार श्री दिलीप चिंचालकर ने कहा कि इसमें रेखाओं की सरलता के साथ नए जमाने की तकनीकी कविताएं हैं। मुख्य अतिथि संदीप श्रोत्रिय ने कहा कि कवि को अपनी कविताओं के बारे में निर्मम होना चाहिए। ईमानदारी से लिखी रचनाएं अमर होती हैं। कृतिकार सन्दीप राशिनकर ने कहा कि माता श्रीमती सरयू एवं पिता श्री बसंत राशिनकर की प्रेरणा व आशीष से यह कार्य सम्भव हो सका। कार्यक्रम का संचालन 'हिन्दू परिवार' के अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी ने किया। आभार सचिव प्रदीप 'नवीन' ने व्यक्त किया।

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