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'कमला तो कृष्णा-कृष्णा कहते मरी थीं'

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Jul 13, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 13 Jul 2013 15:33:17

लीला मेनन ने बताया सच– मल

 

यालम की सुप्रसिद्ध लेखिका माधवी कुट्टी उपनाम कमला दास, जिन्होंने 65 वर्ष की उम्र में इस्लाम कबूला था, वापस हिन्दू होने के लिए व्याकुल थीं, पर उनके पुत्र माधव दास नलपत ने उन्हें ऐसा करने से रोका।

जब प्रख्यात कवि और मलयालम की सुप्रसिद्ध उपन्यासकार माधवी कुट्टी उपाख्य कमला दास (31 मार्च 1934-31 मई, 2009) ने 65 साल की उम्र में इस्लाम स्वीकारने के अपने फैसले की घोषणा की थी तो चारों तरफ शोर उठा और आश्चर्य भी दिखा, निंदा भी हुई। तब  भी दबे-ढंके  कहा गया था कि मुस्लिम लीग के एक नेता द्वारा शादी के झेठे वादे में पड़कर माधवी ने यह कदम उठाया।  हालांकि उस समय उस मुस्लिम नेता ने  इस तरह के किसी भी वादे से इनकार किया और माधवी के इस्लाम में परिवर्तित होने का फैसला इस्लामी संस्कृति की 'महानता' को समझने के बाद उसे सोच समझकर लिया गया था। पर किसी के गले से यह बात नीचे नहीं उतरी थी कि पढ़ी-लिखी और इस्लाम को जानने वाली कमला दास क्या यह नहीं जानती थीं कि वहां महिलाओं के साथ दूसरे दर्जे का व्यवहार किया जाता है।

पर अब उस रहस्य से पर्दा उठ गया है, या वह आशंका सच साबित  हो गयी है कि कमला दास ने सोच समझकर इस्लाम नहीं कबूल किया था, बल्कि मुस्लिम लीग के नेता अब्दुल समद सामदानी के बहकावे में आकर उस तरफ बढ़ गयीं थी और फिर जल्दी ही उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और वे उलटे पैर वापस भी आना चाहती थीं, पर उनके बेटे ने कट्टरवादी इस्लाम का डर दिखाकर और वापसी पर होने वाली हिंसक प्रतिक्रिया के भय से उन्हें ऐसा करने से रोक दिया और कमला दास अपने अंतिम दिनों में 'मेरे कान्हा- मेरे 'श्याम' कहते – कहते प्राण त्याग गयीं। उनकी मृत्यु के 4  साल बाद यह सब सच सामने लाने का साहस किया है पत्रकार और लेखिका लीला मेनन  ने, जोकि कमला दास की बहुत अभिन्न मित्र थीं। लीला मेनन ने साफ-साफ लिखा है कि कमला वापस अपने हिन्दू धर्म में आने के लिए व्याकुल थीं, छटपटा रहीं थीं , लेकिन उनके पुत्र मोनू (माधव  दास नलपत ) ने  उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। मोनू को डर था कि उनकी माँ ने ऐसा किया तो कट्टरवादी  इस्लामी तत्व उन्हें व उनके बच्चों (कमला के पोतों) को निशाना बना सकते हैं ।  

लीला मेनन ने यह भी रहस्योद्घाटन किया है कि  तब 36  वर्षीय सामदानी ने कमला दास को बहला-फुसलाकर कर अपने घर बुलाया, उसे प्यार के झूठे मोहजाल में फंसाकर उनका यौन शोषण भी किया, और बाद में शादी से इनकार कर दिया, जिससे कमला भीतर ही भीतर बहुत टूट चुकी थीं। जब कमला ने सामदानी पर शादी के लिए दबाव डाला तो उसने कहा कि वह उनके लेखिका होने के कारण सिर्फ उनका प्रशंसक है, प्रेमी नहीं। वैसे सामदानी के लिए कमला पहली नहीं थीं, इससे पहले उसने मलयालम में लघु कथा लिखने वाली अस्थिता को भी अपने प्रेमजाल में फंसाने की कोशिश की थी, पर अस्थिता से बड़े प्यार से सामदानी को बाहर का रास्ता दिखा दिया था, यह बात खुद अस्थिता ने लीला मेनन को बताई थी। पर सहज-सरल कमला दास अब्दुल समद सामदानी के जाल में सब कुछ गंवा बैठीं, अपना नाम, अपना धर्म और यहाँ तक कि अपनी स्वतंत्रता भी।

लीला आगे बताती हैं कि कमला हमेशा अपने श्याम के लिए राधा ही बनी रहीं। कमला की भगवान श्रीकृष्ण में अटूट और अगाध श्रद्धा थी और वह उनके अंतिम दिनों तक जस की तस बनी रही। जब लीला अपनी सखी शारदा के साथ पुणे में उनसे मिलने गयी तो कमला ने शारदा से 'कारमुकिल  वरनानते  चुन्दिल' गीत गाने को कहा, जोकि श्रीकृष्ण  को समर्पित भक्ति गीत है। ऐसे ही कमला अपनी सेवा में लगी अम्मू से भी 'नारायण नारायण' गवाती रहती थीं, तब तक जब तक कि वे सो नहीं जातीं। कमलादास कि  इस दुर्दशा  के लिए मोनू (माधव दास नलपत) को पूरी तौर पर जिम्मेदार ठहराती  हुई लीला मेनन लिखती हैं कि, 'कमला अपने श्याम के लिए राधा की तरह जीती रहीं, फिर भी उन्हें कब्रिस्तान में क्यों दफनाया गया? यह बहुत दु:खद है कि उनका अंतिम संस्कार भी उनकी इच्छा के अनुसार नहीं किया गया। कमला के सबसे छोटे बेटे जयसूर्या ने उनकी इच्छा के अनुसार उनके हिन्दू रीति से अंतिम संस्कार की पूरी तेयारी  कर ली थी, पर वह मोनू ही था जिसे अपनी जान का भय सबसे ज्यादा सता रहा था और उसने जोर देकर माधवी कुट्टी उपाख्य कमला दास और मेरी नजर में कृष्ण की राधा को इस्लामी रीति रिवाज के अनुसार  दफनाने के लिए मजबूर किया। केरल से प्रदीप कृष्णन

बुर्के से मुक्ति चाहती थीं कमला

लीला मेनन ने अपने आलेख में बताया है कि जब कमला कुछ दिनों के लिए पुणे आई थीं तो उन्होंने मुझे फोन किया, वह बहुत खुश थीं, चहक रहीं थीं वह। उन्होंने मुझसे कहा कि, 'मैंने पर्दा छोड़ दिया है, अब मैं वापस मुंडू-वेष्टि  (मलयाली परिधान) पहन सकती हूँ। अब मैं अपने बाल भी खुले रख सकती हूँ।' पर उनकी यह खुशी 2  दिन तक ही रह सकी। 2 दिन बाद ही उनका फिर से फोन आया, अब उनकी आवाज से वो चहक गायब थी। उन्होंने बताया कि मोनू और बाकी सबने मिलकर मुझे फिर पर्दे से बाँध दिया है। मोनू पुणे की बाजार से बुकर्ा खरीद लाया है, उसका कहना है कि बाहर जाते समय इससे जरूर पहनूं।

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