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17 जून (सोमवार) की रात तक सभी टेलीविजन चैनलों पर उत्तराखंड पर टूटी आपदा के दृश्य छाए रहे, बादलों का फटना, भारी वर्षा, नदियों का प्रलयंकारी रूप, ढहते गिरते कई मंजिले भवन, गांवों-धर्मशालाओं का प्रकृति की गोद में समाना, सड़कों-पुलों का नदारद होना और इस आपदा के मुख में फंसे लाखों उत्तराखंडवासी, भारत के कोने-कोने से चारधाम की यात्रा पर गये लाखों तीर्थयात्री। पूरा देश इन दृश्यों को देखकर दहल गया। पर आपदा के इन भयंकर क्षणों में सोनिया पार्टी के युवराज राहुल का कहीं अता-पता नहीं था। पत्रकारीय स्रोतों के अनुसार वे कहीं विदेश में अपनी प्रेमिका के साथ अपना जन्मदिन मना रहे थे। और संयोग देखिये कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी अगले दिन योजना आयोग के साथ अपनी बैठक हेतु 17 की शाम को ही दिल्ली पहुंचे थे। टेलीविजन चैनलों पर आपदा के इन भयंकर दृश्यों को देखकर उन्होंने तुरन्त गुजरात के प्रमुख अधिकारियों से परामर्श किया, उत्तराखंड में राहत कार्य की रूपरेखा तैयार की, हरिद्वार में गायत्री परिवार के प्रमुख डा. प्रणव पंड्या से सम्पर्क किया, उनके शांतिकुंज में गुजरात सरकार का एक राहत शिविर स्थापित करने की सुविधा मांगी, उन्होंने सहर्ष दे दी। ये सब व्यवस्थाएं करके मोदी स्वयं 21 जून को उच्चाधिकारियों के एक जत्थे के साथ देहरादून पहुंच गये। उत्तराखंड के कांग्रेसी मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से मिले, राहत कार्य में सहयोग देने की तत्परता जतायी, क्षतिग्रस्त केदारनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का दायित्व संभालने को कहा। उत्तराखंड सरकार को एक बड़ी सहायता राशि देने की पेशकश की।
नरेन्द्र मोदी ने यह सब कार्य भारत के एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते सहज रूप से किया। किंतु वंशवादी पार्टी तो उन्हें युवराज के एकमात्र प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखती है और उनके राज्याभिषेक में सबसे बड़ी बाधा मानती है। उन्हें लगा कि उत्तराखंड में राहत कार्य का पूरा श्रेय मोदी और भाजपा को जा रहा है, इसे रोकना युवराज और वंशवादी पार्टी के हित में आवश्यक है। अत: इसकी काट के लिए तुरंत गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे राजस्थान के कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ देहरादून पहुंच गये, प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर मीडिया पर छा गये। अगला कदम उन्होंने यह उठाया कि उत्तराखंड में अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के जाने पर रोक लगा दी। उधर युवराज की मां सोनिया ने प्रचार मोर्चे पर अपना परचम फहराने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को साथ लेकर हवाई उड़ान भरी और राहुल की गैरहाजिरी पर मीडिया में चल रही खबरों पर विराम लगाने के लिए युवराज को चुपचाप भारत बुला लिया और एक दिन उत्तराखंड के लिये ट्रकों द्वारा राहत सामग्री को हरी झंडी दिखाते समय राहुल को बगल में खड़ा करके खूब फोटो खिंचवाये। पर मीडिया की बहादुरी देखिये कि उसने एक बार भी यह सवाल नहीं उठाया कि जब उत्तराखंड में सड़कें ही नहीं बची हैं तो ये ट्रकें राहत सामग्री पहुंचाएंगे कहां?
दुष्प्रचार का खेल
बात यहीं नहीं रुकी। मीडिया के मोर्चे पर एक बड़ा धमाका हुआ। 23 जून, रविवार अंग्रेजी के सबसे बड़े दैनिक 'टाइम्स आफ इंडिया' के पहले पन्ने पर सबसे ऊपर एक समाचार छपा जिसके शीर्षक में ही नरेन्द्र मोदी को अमरीका के फिल्मी चरित्र 'रैम्बो' बताकर कहा गया कि 'रैम्बो' ने 15000 गुजराती तीर्थयात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। समाचार में कहा गया कि नरेन्द्र मोदी अपने साथ कई आईपीएस, आईएएस एवं आईएफएस अधिकारियों की टीम ले गये थे। चार बोइंग विमान, 80 इनोवा गाड़ियां और 25 लग्जरी बसों की मदद से गुजराती पीड़ितों को बाहर निकालने का यह चमत्कार कर दिखाया। इतने महत्वपूर्ण समाचार पर संवाददाता का नाम नहीं छापा गया, जो टाइम्स आफ इंडिया की परम्परा में नहीं है। इस समाचार के छपते ही सभी कांग्रेसी प्रवक्ता नरेन्द्र मोदी पर टूट पड़े। उन्हें श्रेय लूटने के लिए झूठे प्रचार का भूखा बताना शुरू कर दिया। भारत का प्रधानमंत्री बनने के आकांक्षी को गुजराती संकीर्णतावाद से प्रेरित बताया। इस समाचार को नरेन्द्र मोदी के प्रचारतंत्र को शिगूफा बताया।
26 जून को 'टाइम्स आफ इंडिया' में ही अभीक बर्मन नाम के स्तंभ लेखक ने अनेक प्रश्न उठाकर उस समाचार की सत्यता को चुनौती दी और इस झूठे प्रचार के लिए नरेन्द्र मोदी द्वारा नियुक्त एक अमरीकी प्रचार एजेंसी 'आपको वर्ल्डवाइड' को दोषी ठहराया। अभीक बर्मन ने इस अमरीकी कंपनी के इतिहास और कारनामों का बखान करके मोदी के विकास दावों को झूठा सिद्ध करने की कोशिश की। पता नहीं क्यों भाजपा का प्रचार तंत्र इस पर तीन दिन तक मौन रहा। क्या वे सचमुच नहीं समझ पाये कि यह झूठा प्रचार उनके नेता का गौरव बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि व उन्हें मजाक का विषय बना रहा है। तीन दिन बाद गुजरात सरकार के जन सम्पर्क अधिकारी ने कहा कि उस समाचार में कही गयी एक भी बात हमने नहीं कही। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के पूछने पर नरेन्द्र मोदी ने कहा कि इस समाचार का स्रोत हमारे यहां नहीं है।
समाचार के स्रोत पर बहस शुरू हो गयी तब अंग्रेजी दैनिक 'हिन्दू' में प्रशांत झा की 'बाइलाइन' से एक लम्बा समाचार छपा, जिससे पता चला कि इस समाचार का स्रोत 'टाइम्स आफ इंडिया' का ही एक महत्वपूर्ण पत्रकार आनंद सूनदास है। आनंद सूनदास 'टाइम्स आफ इंडिया' के नेशनल न्यूज फीचर्स का प्रमुख होने के साथ-साथ 'संडे टाइम्स' का सम्पादक भी है, अर्थात उसी ने संडे टाइम्स में यह समाचार छापा था। पूछताछ करने पर आनंद सूनदास ने बताया कि उसे यह सब जानकारी भाजपा के उत्तराखंड प्रवक्ता अनिल बलूनी से देहरादून में वार्तालाप में प्राप्त हुई। उसने बताया कि यह वार्तालाप उत्तराखण्ड भाजपा के अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत और गुजरात सरकार के कुछ अधिकारियों की उपस्थिति में हुआ। अनिल बलूनी ने सूनदास के इस कथन को चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि यदि मैंने ऐसी ऊल-जलूल बातें कहीं थी तो क्या आनंद सूनदास ने उनकी वहां उपस्थित गुजरात के अधिकारियों से पुष्टि की। बलूनी ने सूनदास को 15 दिन में क्षमायाचना का नोटिस दिया है और मानहानि का मुकदमा करने को कहा। 30 जून को 'मेल टुडे' ने एक जांच रपट में स्पष्ट किया कि 15000 की संख्या बलूनी ने नहीं बतायी, बल्कि 'टाइम्स आफ इंडिया' की मेज पर ही गढ़ी गयी। वहीं मोदी के लिए 'रैम्बो' विशेषण भी ईजाद हुआ। 1 जुलाई को 'हिन्दू' ने अपनी जांच को आगे बढ़ाते हुए कहा कि बलूनी ने 15000 की संख्या नहीं दी। बलूनी ने यह भी कहा कि गुजरात सरकार की ओर से बोलने का मुझे अधिकार ही नहीं था।
मीडिया की भूमिका
इतने सब स्पष्टीकरण के बाद भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश ने मोदी विरोध से अंधे होकर अपनी पीठ ढोंकी कि मैं रैम्बो नहीं हूं, कोई और होगा। और आज वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे ने जनसत्ता में 'रैम्बोगिरी' शीर्षक से 23 जून की 'संडे टाइम्स' में छपी झूठी कहानी को अक्षरश: सत्य मानकर मोदी की आलोचना कर डाली।
इस एक प्रकरण को हमने विस्तार से दिया है ताकि पाठकगण समझ सकें कि मीडिया का असली चरित्र क्या है और यह कैसे अपना इस्तेमाल करवाता है। साथ ही वे यह भी जान सकें कि लोकतंत्र के विरुद्ध वंशवाद कैसे ओछे हथकंडों का इस्तेमाल करता है। यह रणनीति है मीडिया के कंधों पर बैठकर अपने विरोधियों को विवादास्पद बनाये रखना और फोटो पत्रकारिता के माध्यम से अपनी छवि को चमकाना। इसी रणनीति के तहत देश के गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठे शिंदे ने, जिन्होंने यह गद्दी मिलने पर सार्वजनिक रूप में सोनिया-राहुल निष्ठा की कसम खायी थी, मुख्यमंत्रियों व नेताओं को उत्तराखंड जाकर वहां के राहत कार्य को बाधित करने से मना किया, किंतु चुपचाप राहुल के काफिले को उत्तराखंड भेज दिया। उसकी सुविधा के लिए राहत कार्य के सच्चे देवदूतों-अर्थात सेना के आवासों को खाली करवा दिया और अब समाचार आ रहे हैं कि ट्रकों में लादकर भेजी गयी राहत सामग्री पर सोनिया और राहुल की तस्वीरें चिपका कर बांटा जा रहा है। यदि इस पर सांसद शाहनवाज हुसैन टिप्पणी की कि सस्ती लोकप्रियता की इस भूख को देखकर घिन्न आती है। यह कैसी राजनीति है कि गुजरात सरकार की भेजी करोड़ों रुपयों की राशि को उत्तराखण्ड की कांग्रेस सरकार ठुकरा दे, केदारनाथ के जीर्णोद्धार में उसे सहयोग न करने दे और सदा से विवादास्पद सरकारी शंकराचार्य स्वरूपानंद के माध्यम से केदारनाथ मंदिर में पूजा के प्रश्न पर विवाद खड़ा करवा दे।
पत्रकारों की आपबीती
10 जनपथ मीडिया का किस तरह इस्तेमाल करता है और निर्भीक स्वतंत्र पत्रकारों को किस तरह बाधित करता है इसके दो आपबीती अनुभव संक्षेप में देना उचित रहेगा। 15 जून से इंटरनेट पर एक टीवी पत्रकार ने, जो आजकल जामिया मिलिया इस्लामिया में पढ़ा रहे हैं, आपबीती प्रसारित की है। वे लिखते हैं कि '2005 में झारखंड असेंबली में एनडीए को बहुमत प्राप्त हुआ किंतु सोनिया गांधी के चहेते राज्यपाल सिब्ते रजी ने कांग्रेस समर्थित शिबू सोरेन को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया और अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए 20 दिन का समय दिया। इतने नंगे असंवैधानिक कदम की न केवल विपक्ष और मीडिया, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी निंदा की। जब सिब्ते रजी के विरुद्ध प्रचार का बवंडर खड़ा हो गया तो मीडिया में प्रसारित हुआ कि सोनिया गांधी राज्यपाल से नाराज हैं और उनका असम स्थानांतरण कर दिया गया है। उनके हटने के बाद सीबीआई ने उनके झारखंड स्टाफ पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये। मुझे इस घटनाचक्र के पीछे का सत्य दिखायी दे गया। जब मैं सोनिया के घर के बाहर खड़े होकर अपनी रपट तैयार कर रहा था तो मेरा 'बास' मेरे सामने खड़ा हो गया और उसने 'सोनिया नाराज हैं' थीम पर कहानी बुनने का आदेश दिया। मेरे पास कोई विकल्प नहीं रहा पर सोनिया की ओर से इस आशय का कोई वक्तव्य जारी नहीं हुआ, केवल मीडिया के द्वारा उसे चलवाया गया'। यह पत्रकार लिखता है कि 'सोनिया की छवि से जुड़े समाचारों को सम्पादकों एवं मालिकों के स्तर पर दिशा दी जाती है। इन संपादकों का अहमद पटेल से सीधा संबंध रहता है। पटेल कांग्रेस बीट के सब रिपोर्टरों पर नजर रखते हैं। यदि आप उनकी मनचाही खबरें बनाते हैं तो आपके यहां विवाह जैसे अवसरों पर पटेल स्वयं पधारते हैं और साथ में राहुल गांधी को भी लाते हैं। जिससे पत्रकारों में आपका भाव बढ़ जाता है। अभी हाल में एक निचले स्तर के कांग्रेस बीट रिपोर्टर के यहां वे दोनों आए, जिससे वह प्रधानमंत्री के साथ विदेश यात्रा पर जाने का प्रसाद पा गया। जिस प्रमुख टीवी नेटवर्क पर मैं कांग्रेस पार्टी को कवर करता था, वहां कांग्रेस रिपोर्टरों की पूरी फौज थी। वैसे तो कांग्रेस मेरी मुख्य बीट थी। पर जनवरी, 2006 में हैदराबाद में हुई एआईसीसी के अधिवेशन में मुझे नहीं जाने दिया गया। मुझे कभी अमेठी और रायबरेली को कवर नहीं करने दिया गया। अंतत: मुझे कांग्रेस बीट से हटा दिया गया। मेरी ब्यूरो चीफ ने बताया कि उसने मुझे कांग्रेस रिपोर्टर बने रहने के लिए बहुत जोर लगाया पर सम्पादकों ने कुछ नहीं सुना'।
प्रिंट मीडिया के एक वरिष्ठ पत्रकार ने सोनिया के निजी सचिव विन्सेंट जार्ज के भ्रष्टाचार की कहानी दी है कि कैसे वह 600 रुपए मासिक वेतन से करोड़पति हो गये। कैसे मैं जार्ज के एक कांग्रेसी मित्र के माध्यम से कांग्रेस के भीतर की खबरें लिया करता था। प्रवर्तन निदेशालय के कुख्यात अधिकारी अशोक अग्रवाल और नटवर सिंह के भतीजे अभिषेक वर्मा से जार्ज की घनिष्ठ दोस्ती थी। बाद में किसी लेन-देन के मुद्दे पर जार्ज की इस मंडली में फूट पड़ गयी। मुझे इन लोगों के द्वारा जार्ज के बारे में जानकारी मिलने लगी। उन दिनों जार्ज इतने अधिक शक्तिशाली थे कि कोई भी अखबार या पत्रकार उनके खिलाफ लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। मैंने पहली बार आयकर माफी योजना के तहत जार्ज की करोड़ों रुपये की आय की खबर छापी। खबर की दूसरी किश्त में मैंने उनकी आय का स्रोत बताने को कहा। खबर छपने के बाद भजनलाल से लेकर कपिल सिब्बल तक मुझे मनाने में जुट गए। भजनलाल ने तो गजब ही कर दिया। एक दिन सुबह उन्होंने मुझे अपने घर नाश्ते पर बुलाया और जार्ज से मेरी सीधी बात करा दी। जब हमारी बात हो गई तो भजनलाल बोले 'अरे भाई हफ्ता दस रोज अपनी कलम बंद रखो। 'सीडब्ल्यूसी' का ऐलान होना है। एक बार मैं उसमें पहुंच जाऊं। उसके बाद जो मर्जी आए लिखना। जार्ज ने मुझे चाणक्यपुरी स्थित अपने घर पर बुलाकर सफाइयां दीं।' इडलियां खिलाईं। इस बीच लगातार खबरें छपने के कारण सरकार पर उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दबाव बनने लगा। यह मामला दर्ज कर लिया गया। हमारे अखबार में सत्ता बदली। नए संपादक मुझे पसंद नहीं करते थे। एक दिन उन्होंने कहा कि आपने जार्ज के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है, निजी एजेंडा चला रहे हैं। उन्होंने मुझसे कांग्रेस बीट ले ली। पर सीबीआई ने जार्ज के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था और अंतत: सोनिया गांधी ने उन्हें अपने यहां से हटा दिया। लेकिन कई वर्ष तक सुर्खियों से बाहर रहने के बाद सीबीआई ने सबूतों के अभाव में आखिर केस बंद कर दिया।'
इन दो आपबीती कहानियों से सोनिया की कार्यनीति की झलक मिल जाती है। समझ सकते हैं कि 'तीस मार खां' बने सम्पादक आजतक उनका इंटरव्यू क्यों नहीं ले पाते, क्यों उनसे जुड़े किसी भी विवाद पर उनकी चुप्पी को तोड़ नहीं पातेे और क्यों उनके रोमन लिपि में लिखे दो मिनट के हिन्दी भाषण पर सुर्खियां बनाते रहते हैं। आगामी चुनाव युद्ध में मीडिया मैनेजमेंट की इसी कला से मुकाबला करना होगा। देवेन्द्र º´É°ü{É (4.7 13)
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