जिन्ना की हवेली ध्वस्त

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जमात के लिए शरीफ ने खोले खजाने

दिंनाक: 22 Jun 2013 14:50:24

 

कौन नहीं जानता, 2008 में मुम्बई हमलों की साजिश रचने वाला हाफिज सईद है? कौन नहीं जानता, हाफिज लश्करे तोइबा का जिहादी नेता है? कौन नहीं जानता, हाफिज सईद भारत सरकार और अमरीका की काली सूची में दर्ज है? कौन नहीं जानता, लश्करे-तोइबा पर पाबंदी लगने के बाद अब हाफिज सारा जिहादी कामकाज जमात उद दावा के तहत करता है? कौन नहीं जानता, जमात का मुख्यालय मुरीदके, लाहौर में है? कौन नहीं जानता, पाकिस्तान के सूबाए पंजाब के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ हैं, जो वहां नए बने प्रधानमंत्री और भारत से दोस्ती करने को बेताब नवाज शरीफ के छोटे भाई हैं? कौन नहीं जानता, नवाज किसको नवाजना चाह रहे हैं क्योंकि, कौन नहीं जानता शाहबाज ने सूबे के 2012-13 के बजट में जमात की संस्था मरकजे तोइबा को 6.13 करोड़ रु. का चंदा दिया है, जमात के मुख्यालय में एक 'नॉलेज पार्क' और दूसरे 'तरक्की वाले कामों' के लिए 35 करोड़ दिए हैं?

17 जून को सूबे की असेम्बली में इस चंदे की पूरी जानकारी रखी गई। कौन नहीं जानता, 2008 में मुम्बई हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जब लश्कर की सरपरस्त संस्था जमात उद दावा को काली सूची में डाला तो मुरीदके के उसके मुख्यालय को सूबे की सरकार ने अपनी अनोखे में ले लिया था? तबसे ही सरकार मुख्यालय के लिए अपने सालाना बजट में पैसा सहेजती आ रही है। जमात के अल दावा स्कूलों के लिए लाखों रु. सालाना जाते हैं। कौन नहीं जानता, अमरीका ने जमात के अगुआ हाफिज के सिर पर एक करोड़ डालर का इनाम रखा है, पर वह पाकिस्तान में बेखटके घूमता है और भारत के खिलाफ फतवे देता है? अभी पिछले हफ्ते उसने जिहादियों से कहा कि पाकिस्तान के अंदर होने वाली उग्रवादी कार्रवाइयों को जिहाद नहीं माना जा सकता। जिहादी ऐसा न करें। उसने बयान में आरोप लगाया- ' '….तमाम जिहादी तंजीमों से दरख्वास्त करता हूं, पाकिस्तान के अंदर हमले न करें…..अमरीका और इंडिया उनकी इन कार्रवाइयों का फायदा उठा रहे हैं।' कौन नहीं जानता, नवाज ने इस्लामाबाद में अभी कुर्सी संभाली है, पंजाब सूबे में भाई शाहबाज ने हाफिज के मुख्यालय के लिए खजाने खोले हुए हैं? पाकिस्तान में हमले पहले भी होते रहे हैं, लेकिन हाफिज के बयान अब आने शुरू हुए हैं। कौन नहीं जानता, भारत से दोस्ती को बेताब नवाज की पार्टी का नाम पाकिस्तान मुस्लिम लीग है, जिसका अपना एक 'इतिहास' है? क्या भारत की यूपीए सरकार यह नहीं जानती?

15 जून को उग्रवादियों ने सूबाए बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा से करीब 120 किलोमीटर दूर जिआरत में 121 साल पुरानी जिन्ना की जर्जरहाल हवेली को बम लगाकर तहस-नहस कर दिया। बताते हैं, दुनिया से जाने से पहले का कुछ वक्त जिन्ना ने इसी इमारत में    बिताया था। 

 

म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए फरमान

बच्चे हों तो बस दो

रोहिंग्या मुसलमान अब अपने परिवारों को मनमर्जी से बढ़ाते नहीं जा सकते। उन पर दो बच्चे तक की पाबंदी लगा दी गई है। यह पाबंदी लगाई है म्यांमार के पश्चिमी राज्य राखिने के प्रशासन ने। इसका मकसद यह है कि तेजी से बढ़ते जा रहे रोहिंग्याओं की आबादी पर थोड़ी लगाम लगे और वे अपने पड़ोसी बौद्धों को थोड़ा सुकून से जीने दें। यहां याद दिला दें, तकरीबन एक साल पहले रोहिंग्याओं ने भारी उत्पात मचाया था, बौद्ध भिक्षुओं को सताया था, आगजनी और लूटपाट की थी, कितने ही जान से गए थे। उस सब उथल-पुथल की जांच के लिए सरकार ने एक आयोग बिठाया था। उसने कुछ सुझाव दिए, जिनमें 2 बच्चों की हद बांधने के अलावा तनाव के इलाके में दोगुने सुरक्षाबल तैनात करना भी है।

सरकारी अफसरों का कहना है, रोहिंग्याओं की आबादी राखिने (बौद्धों) के मुकाबले 10 गुना तेजी से बढ़ रही है। नई नीति से एक से ज्यादा निकाह पर भी पाबंदी लग जाएगी। फिलहाल ये फरमान राखिने के दो नगरों, बूथिदाऊंग और माउंदॉ में दसेक दिनों पहले लागू हुआ है जो बंगलादेश से सटे हुए हैं और जहां आबादी में रोहिंग्या मुसलमान 95 फीसदी हैं। साफ है कि, म्यांमारी सरकार मानती है कि जहां मुस्लिमों की आबादी हद से ज्यादा बढ़ी वहीं दंगे-उत्पात हुए। 

 

मुल्क की हिफाजत अब अफगानियों के हाथ

आखिरकार अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई ने मुल्क की हिफाजत की बागडोर 'नाटो' से अफगानी सुरक्षाबलों के हाथों में जाने की मुनादी कर दी। 18 जून को काबुल स्थित नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम में करजई ने कहा कि उनके मुल्क की हिफाजत अब अमरीकी अगुआई वाले 'नाटो' गठबंधन से अपने सशस्त्र बलों के हाथ में जा रही है। 12 साल से घरेलू युद्ध झेलते आ रहे अफगानिस्तान में  'नाटो' की फौजें अब बस मददगार के तौर पर ही होंगी। इससे आने वाले 18 महीनों में 'नाटो' सेनाओं के वहां से पूरी तरह हटने की राह भी खुल गई है। उधर 'नाटो' ने कहा है कि गठबंधन सेनाएं जरूरत पड़ने पर ही फौजी मदद देंगी, लेकिन वे अब कोई बड़े अभियान न बनाएंगी, न चलाएंगी। आलोक गोस्वामी

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