अंग्रेजी अनिवार्य क्यों
|
समिति बनाओ और बताओ
जिनकी पढ़ाई का माध्यम मातृभाषा, हिन्दी अथवा अन्य कोई भारतीय भाषा है इस परीक्षा में 22.5 अंक के अंग्रेजी प्रश्नपत्र को अनिवार्य कर देने के कारण उनके हितों को क्षति पहुंचेगी।
देश की सबसे प्रतिष्ठित प्रशासनिक सेवा के लिए संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित होने वाली प्रारंभिक परीक्षा में अंग्रेजी अनिवार्य किए जाने को दिल्ली उच्च न्यायालय ने गंभीरता से लेते हुए केन्द्र सरकार से नए प्रारूप की समीक्षा करने को कहा है। न्यायालय ने यह आदेश गत 31 मई को शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के राष्ट्रीय संयोजक श्री दीनानाथ बत्रा की याचिका पर फैसला सुनाते हुए दिया। उल्लेखनीय है कि दो साल पहले केन्द्र सरकार ने प्रारंभिक परीक्षा में 22.5 अंक का अंग्रेजी का प्रश्नपत्र अनिवार्य कर दिया, जिसके अंक कुल योग में जुड़ते हैं। सरकार के इस निर्णय को हिन्दी भाषी छात्रों के साथ भेदभाव वाला बताते हुए शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के राष्ट्रीय संयोजक श्री दीनानाथ बत्रा ने 2012 में उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी।
उनकी याचिका पर फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश डी. मुरुगेशन और न्यायाधीश राजीव सहाय की पीठ ने केन्द्र सरकार को नए प्रारूप की समीक्षा के लिए तीन महीने के भीतर विशेषज्ञ समिति गठित करने को कहा। यह समिति याचिकाकर्ता द्वारा परीक्षा के संबंध में उठाए गए प्रश्नों की जांच कर 9 माह के अंदर रपट देगी। साथ ही यह भी तय करेगी कि अंग्रेजी के ज्ञान की यह परीक्षा जरूरी है या नहीं। क्योंकि मुख्य परीक्षा में यह पहले से ही आहर्ता (क्वालिफाइंग) परीक्षा के रूप में है। पीठ ने फैसले में मौजूदा व्यवस्था को उन छात्रों को प्रशासनिक सेवा के दौर से बाहर करने वाला बताया है, जो परीक्षा में कम अंक प्राप्त करते हैं। न्यायालय ने यह भी कहा है कि इससे देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा के परिणाम बहुत हद तक प्रभावित होंगे। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि अंग्रेजी को अनिवार्य किए जाने से दो बार के परिणाम में 5 से 10 फीसदी हिन्दी माध्यम का परिणाम कम रहा है।
सरकार द्वारा वर्ष 2011 से लागू की गई नई परीक्षा योजना के विरोध में वर्ष 2012 में शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के राष्ट्रीय संयोजक श्री दीनानाथ बत्रा ने अधिवक्ता जगदीप धनखड़ तथा मोनिका अरोड़ा के माध्यम से दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि जिनकी पढ़ाई का माध्यम मातृभाषा, हिन्दी अथवा अन्य कोई भारतीय भाषा है, इस परीक्षा में 22.5 अंक की अंग्रेजी के अनिवार्य कर देने के कारण उनके हितों को क्षति पहुंचेगी और वे संघ लोक सेवा आयोग की प्रशासनिक सेवा की मुख्य परीक्षा में बैठने की पात्रता (मेरिट) में आने से पिछड़ जाएंगे। यह हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ने वाले और परीक्षा देने वालों के साथ घोर पक्षपात व अन्याय है तथा इससे अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने वाले संभ्रांत एवं शहरी विद्यार्थियों को विशेष लाभ मिलेगा। यहां तक कि ग्रामीण तथा दूरदराज के पिछड़े क्षेत्रों के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। यह उनके संविधान में प्रदत्त नौकरियों में अवसर की समानता के अधिकार का हनन है, जिसकी रक्षा की जानी चाहिए।
विरोध का कारण
प्रारम्भिक परीक्षा के नए प्रारूप के अनुसार प्रारंभिक परीक्षा में बाकी सभी प्रश्नों के उत्तर किसी भी भारतीय भाषा में दे सकते हैं, लेकिन 22.5 अंकों का 'कॉम्प्रिहेंसिव स्किल टेस्ट' सिर्फ अंग्रेजी में देना होता है। इसके अंक कुल योग में जुड़ते हैं।
दिल्ली ब्यूरो
हमसे भी परामर्श हो
न्यायालय के निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए श्री दीनानाथ बत्रा ने कहा कि प्रारम्भिक परीक्षा से 22.5 अंक के अंग्रेजी के प्रश्नों को पूरी तरह हटा दिया जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं के छात्रों के साथ अन्याय होगा। सरकार की जो विशेषज्ञ समिति इस मामले की जांच करे, वह हमसे भी परामर्श ले, ताकि सही निर्णय हो सके।
टिप्पणियाँ