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सरकारी शह पर लोगों को लूट रही हैं बिजली कम्पनियां

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Jun 8, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Jun 2013 14:18:09

 

ऐसा माना जा रहा है कि बहुत जल्दी दिल्ली में बिजली की दरें एक बार और बढ़ाई जाएंगी। इसके लिए वही घिसी-पिटी पुरानी दलील दी जा रही है कि बिजली वितरण करने वाली कम्पनियां(एन डी पी एल,बी वाई पी एल और बी आर पी एल) घाटे में जा रही हैं। पिछले 10 साल में कम से कम 25 बार दिल्ली में बिजली की दरें बढ़ाई गई हैं। यानी औसतन हर साल दो बार से अधिक। यह बिजली कानून 2003 का सरासर उल्लंघन है। बिजली कानून की धारा-62(4) कहती है कि बिजली के दाम वर्ष में सिर्फ एक बार बढ़ाये जाएंगे। किन्तु दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डी ई आर सी) जब चाहता  है तब दाम बढ़ा देता है। इसके अलावा डी ई आर सी हर साल  कभी विद्युत शुल्क (सर चार्ज) और स्थाई शुल्क (फिक्स चार्ज) के नाम पर उपभोक्ताओं से पैसा वसूलता है। उदहारण के लिए आप 2012 को ले सकते हैं। अप्रैल 2012 में उपभोक्ताओं से 5 प्रतिशत ईंधन शुल्क (फ्यूल चार्ज) लिया गया। पता हो कि ये कम्पनियां केवल बिजली वितरण करती हैं,बिजली बनाती नहीं हैं फिर ईंधन शुल्क क्यों? सूत्रों के अनुसार ईंधन शुल्क के मद में लिया गया पैसा नई दिल्ली नगरपालिका परिषद् (एन डी एम सी) और दिल्ली नगर निगम (एम सी डी) को दिया जाता है। इस ईंधन शुल्क के बाद 26 जून 2012 को बिजली का दाम बढ़ाया गया। इसके अनुसार 0 से 400 यूनिट तक बिजली खर्च करने वालों से 4 रुपए 80 पैसे प्रति यूनिट के हिसाब से बिल लिया जाने लगा। फिर 22 अक्तूबर 2012 को 201 से 400 यूनिट तक बिजली खर्च करने वालों से 5 रु 50 पैसा प्रति यूनिट लिया जाने लगा। यही नहीं नवम्बर 2012 में उपभोक्ताओं से 8 प्रतिशत सर चार्ज भी लिया गया। इस समय दिल्ली में 40.47 लाख बिजली उपभोक्ता हैं। अनुमान लगाया जा सकता है कि बिजली कम्पनियों ने बिल के अलावा कितना पैसा उपभोक्ताओं से वसूला है। फिर भी कहा जाता है कि ये कम्पनियां घाटे में जा रही हैं। दिल्ली सरकार ने इन कम्पनियों को 2006-07 तक बिजली वितरण का अधिकार दिया था। इसके बाद कब और कैसे इन कम्पनियों को फिर से अधिकार मिला, यह सार्वजनिक नहीं है। सूचना के अधिकार के तहत 17 जनवरी, 2012 को इस संबंध में जानकारी मांगी गई थी पर अब तक यह जानकारी नहीं दी गई है। लगता है कि इन कम्पनियों को दिल्ली सरकार का वरदहस्त प्राप्त है। यह बात इससे भी साबित होती है कि शीला सरकार ने इन कम्पनियों को 29 दिसम्बर, 2011 को 500 करोड़ रु. का अनुदान दिया था। 2011 में ही इन कम्पनियों ने 'लोड' (बिजली के अधिक खर्च को मानकर)  के नाम पर किसी उपभोक्ता से 600 रु., किसी से 1200 रु., तो किसी से 1800 रु. वसूले। अगर प्रति उपभोक्ता अनुमानत: 1000 रु. मान लें तो यह राशि 404.70 करोड़ रु. बनती है। इसी के साथ हर बिल में कम से कम 100 रु. स्थाई शुल्क लिया जा रहा है। इस तरह स्थाई शुल्क के रूप में कम्पनियों को वर्ष में लगभग 40 करोड़ रु. प्राप्त हो रहे हैं। फिर इन कम्पनियों को घाटा कैसे हो रहा है?

उपभोक्ता हितार्थ संस्था के अध्यक्ष और आर टी आई कार्यकर्ता सी.पी. राय कहते हैं, 'दिल्ली में बिजली का निजीकरण उपभोक्ताओं के हित के लिए नहीं किया गया था, बल्कि नेताओं ने अपनी जेब भरने के लिए किया था। इन्हीं नेताओं की शह पर ये कम्पनियां लोगों को जमकर लूट रही हैं।' श्री राय बिजली कानून 2003 के हवाले से कहते हैं कि दिल्ली में जो कम्पनियां बिजली वितरण करती हैं वे गैर-कानूनी हैं। वे कहते हैं कि बिजली कानून की धारा 39 के अनुसार केवल सरकारी कम्पनी या बोर्ड बिजली का वितरण कर सकता है। इसके बावजूद इन निजी कम्पनियों को बिजली वितरण का काम देना संकेत करता है कि जरूर कुछ गड़बड़ी है। श्री राय ने इस मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय तक पहुंचाया है। उन्होंने इन कम्पनियों की वैधानिक स्तर को चुनौती दी है। श्री राय यह भी कहते हैं कि डी ई आर सी ने इन कम्पनियों को जनता को लूटने की छूट दे रखी  है। इसलिए ये कम्पनियां दिल्ली में बिजली की कटौती कर दूसरे राज्यों को महंगे दामों में बिजली बेच देती हैं। चाहे अधिक सर्दी हो या गर्मी दोनों समय किसी न किसी बहाने ये कम्पनियां 200 से 300 मेगावाट बिजली की कटौती करती हैं। डी.ई.आर.सी ने भी इन्हें लाभ कमाकर बिजली बेचने के लिए अधिकृत किया है। यह जानकारी आरटीई से मिली है।

दिल्ली के बिजली उपभोक्ताओं की यह बहुत पुरानी शिकायत है कि बिजली का मीटर बहुत तेज भागता है। बिजली कानून की धारा 38(2)(सी) के अनुसार बिजली का बहाव समानान्तर होना चाहिए। किन्तु कभी  भी यह बहाव समानान्तर नहीं होता है। इससे घरों में लगे मीटरों में झटके लगते हैं और बिल बढ़ता है। 'लोड शेडिंग' में भी यही होता है। 'लोड शेडिंग' या बिजली का असमान बहाव जानबूझ कर कम्पनियां करती हैं, ताकि जनता को लूटा जा सके। लोग इस बारे में शिकायत करते रहते हैं पर ये बिजली कम्पनियां कुछ नहीं करती हैं।

बिजली कानून की धारा 55 कहती है मीटर बिल्कुल ठीक होने चाहिए। किन्तु ये कम्पनियां यहां भी लोगों की आंखों में धूल  झोक रही हैं। घरों में लगाए गए बिजली के मीटरों की संरचना इस प्रकार है कि वातावरण 23 डिग्री से आगे बढ़ते ही मीटर तेज चलने लगते हैं। वही मीटर सही माना जाता है जो 100 वाट के एक बल्ब के 10 घंटे तक जलने के बाद 1 यूनिट बिजली का खर्च दिखाता हो। इस हिसाब से तो इन कम्पनियों के सारे मीटर खराब हैं। लोग बार-बार मीटर ठीक करने या बदलने की मांग करते हैं किन्तु कोई कार्रवाई नहीं होती है।

बिजली कानून की धारा 61(डी) में कहा गया है कि बिजली की कीमत तय करने से पहले उपभोक्ता के हित का संरक्षण होना चाहिए। किन्तु डीईआरसी उपभोक्ता के हित को ताख पर रख कर निजी कम्पनियों को लाभ पहुंचा रहा है। उनके कहने के अनुसार ही दाम तय कर रहा है।

बहुत सारे उपभोक्ता यह भी शिकायत करते हैं कि उनसे अधिक पैसा लिया गया है। इस तरह के अनेक मामले हैं। पर ये बिजली कम्पनियां किसी भी उपभोक्ता का पैसा लौटाती नहीं हैं। यह भी बिजली कानून की धारा 62(6) का उल्लंघन है। इस धारा में प्रावधान है कि यदि किसी उपभोक्ता से अधिक पैसा लिया गया है तो उसे वापस किया जाना चाहिए और जितने दिन उसका पैसा रखा गया उतने दिन का उसको बैंक दर से ब्याज भी मिलना चाहिए। किन्तु ये कम्पनियां अब तक मनमाने ढंग से ही काम कर रही हैं। इसलिए लोग यह भी मांग कर रहे हैं कि इन बिजली कम्पनियों पर श्वेत पत्र लाया जाय। पर जो सरकार यह श्वेत पत्र ला सकती है वही इन कम्पनियों को संरक्षण दे रही है। इस हालत में लाख टके का सवाल यह है कि इन बिजली कम्पनियों पर लगाम कौन लगाएगा?

उन्हें क्यों मिलती है सस्ती बिजली?

दिल्ली के जिस क्षेत्र में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रियों, नेताओं और बड़े सरकारी अधिकारियों, बाबुओं और विभिन्न देशों के राजदूतों के आवास हैं उस क्षेत्र में बिजली सस्ती दी जाती है। इस क्षेत्र में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का जिम्मा नई दिल्ली नगरपालिका परिषद् (एन डी एम सी) के पास है। एन डी एम सी क्षेत्र में रहने वाले लोगों को करीब 2रु प्रति यूनिट बिजली दी जाती है,जबकि दिल्ली नगर निगम(एम सी डी) के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को कम से कम 5 रु. प्रति यूनिट बिजली मिलती है। एम सी डी का क्षेत्र यानी आमलोगों का क्षेत्र। आमलोगों से प्रतिमाह स्थाई शुल्क(फिक्स चार्ज) और विद्युत शुल्क लिया जाता है,जबकि एन डी एम सी क्षेत्र में रहने वाले लोगों से ऐसे शुल्क नहीं लिए जाते हैं। यानी आम लोगों से पैसा लेकर बड़े लोगों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। जबकि होना यह चाहिए था कि इन बड़े लोगों से अधिक बिल लिया जाता और आम लोगों से कम।

स्थाई शुल्क क्यों?

दिल्ली के हर बिजली बिल में एक खण्ड है स्थाई शुल्क का। यह शुल्क 'लोड' के आधार पर लिया जाता है। 2 किलोवाट तक के लिए हर महीने 40 रु और 2 से 5 किलोवाट तक के लिए 100 रु लिए जाते हैं। 5 किलोवाट से अधिक के लिए विभिन्न जगहों के लिए अलग-अलग दरें हैं। 2011 से पहले 'लोड' का कोई प्रावधान नहीं था। बिजली कम्पनियों ने यह प्रावधान किया है। सवाल उठता है कि जब उपभोक्ताओं से बिजली बिल लिया ही जाता है तो फिर यह स्थाई शुल्क क्यों लिया जा रहा है?

लागत एक पैसे की नहीं सिर्फ मुनाफा

निजीकरण से पहले दिल्ली में बिजली आपूर्ति का जिम्मा दिल्ली विद्युत बोर्ड के पास था। इस बोर्ड का बहुत बड़ा तंत्र था। दिल्ली के हर कोने में इसके कार्यालय थे। कर्मचारियों की भी बहुत बड़ी संख्या थी। दिल्ली विद्युत बोर्ड के सभी कार्यालय इन कम्पनियों को नाममात्र की राशि पर दिए गए हैं। यानी इन कम्पनियों को ढांचागत सुविधाओं के लिए कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ा है। इन्हें बना बनाया  सब कुछ मिला है। इन कम्पनियों ने पुराने कर्मचारियों में से अधिकतर की छंटनी भी कर दी है। अब क म से कम लोगों के जरिये ये कम्पनियां काम करती  हैं। ये कम्पनियां सस्ती बिजली खरीदती हैं और महंगी बेचती हैं। दिल्ली में बिजली की जितनी जरूरत है उससे कई गुना बिजली खरीदी जाती है और अधिक बिजली (सर प्लस बिजली) को ज्यादा मुनाफा लेकर अन्य राज्यों को बेची जाती है। फिर भी ये कम्पनियां कहती हैं घाटा हो रहा है बिजली का दाम बढ़ाओ।  दिल्ली सरकार भी इन कम्पनियों की मांग को तुरन्त मान लेती है और बिजली दर बढ़ा देती है।

इन सवालों पर चुप्पी क्यों?

l डीईआरसी बिजली कम्पनियों की जांच कैग से क्यों नहीं कराता?

l ये कम्पनियां किससे कितनी बिजली खरीदती हैं और कितने में बेचती हैं?

l जब कोयले के दाम नहीं बढ़े तो बिजली क्यों महंगी?

l डीईआरसी जब दाम बढ़ाता है तो विधानसभा को क्यों नहीं बताता?

l कम्पनियों की 'बैलेंस शीट' अलग-अलग क्यों है?

l कम्पनियों को आरटीआई के दायरे में क्यों नहीं लाया जाता?

l अन्य बिजली कम्पनियों के घाटा कम तो बीएसइएस यमुना का कैसे बढ़ा?

l सस्ती दर में बिजली लेकर महंगी क्यों बेची जा रही है?

l यह अधिकार सरकारी कम्पनी ट्रांस्को को क्यों नहीं दिया जाता?

कैग क्यों नहीं करता लेखा परीक्षण?

हर सरकारी दफ्तर के आय-व्यय का लेखा परीक्षण (आडिट) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) करता है। किन्तु दिल्ली में बिजली आपूर्ति करने वाली कम्पनियों  के खातों का परीक्षण कैग इसलिए नहीं कर सकता है कि ये कम्पनियां निजी हैं। कई लोगों का मानना है कि इन कम्पनियों को सरकारी अनुदान मिलता है और ये कम्पनियां एक सरकारी संस्था डी ई आर सी की देखरेख में काम करती हैं इसलिए इनका भी आडिट कैग करे। इसी मांग को लेकर 2010 में एक जनहित याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय में दाखिल की गई है। यह याचिका अभी भी लम्बित है। दिल्ली सरकार बार-बार आश्वासन देती है परन्तु आज तक कैग को जांच करने की अनुमति नहीं दी गई है।

'दिल्ली में बिजली का निजीकरण उपभोक्ताओं के हित के लिए नहीं किया गया था, बल्कि नेताओं ने अपनी जेब भरने के लिए किया था। इन्हीं नेताओं की शह पर ये कम्पनियां लोगों को जमकर लूट रही हैं।' -सी.पी. राय

दिल्ली सरकार ने दिखाया कानून को ठेंगा

दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग(डी ई आर सी) बिजली वितरण करने वाली निजी कम्पनियों पर नजर रखता है। यही आयोग इन कम्पनियों को दिशा निर्देश भी देता है। चाहे बिजली का दाम बढ़ाना हो या अन्य किसी तरह का मामला डी ई आर सी ही निर्णायक भूमिका अदा करता है। बिजली कानून 2003 की धारा 84(2) के अनुसार डी ई आर सी का अध्यक्ष उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश हो सकता है। किन्तु इस कानून का भी पालन नहीं किया जा रहा है। किसी को भी इस महत्वपूर्ण पद पर बैठा दिया जाता है। अरुण कुमार सिंह

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