|
दुनिया के सबसे महंगे और स्वतंत्र क्रिकेट बोर्ड ने अपनी ओर से 'मैच फिक्सिंग' के खिलाफ कोई प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज कराई? कठोर कानून क्यों नही बनाया? क्या–क्या खामियां है क्रिकेट के इस नए रूप आईपीएल में, इस मुद्दे पर जितेन्द्र तिवारी ने पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी व लोकसभा सदस्य कीर्ति आजाद से बात की, यहां प्रस्तुत है उसके मुख्य अंश–
आईपीएल में जो कुछ भी और जैसे भी हो रहा है, क्या उसे क्रिकेट कहा जा सकता है?
जो खेला जा रहा है वह तो क्रिकेट ही है। खेलने के नियम बदले हैं, तरीके बदले हैं, पर क्रिकेट प्रेमियों के लिए तो खेल हो ही रहा है। पर खिलाने वालों और खेलने वालों के ऊपर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लग गया है कि इसमें खेल के साथ गोरखधंधा भी शामिल कैसे हो गया?
अब तो इसमें सट्टेबाजी और फिक्सिंग का भी आयाम जुड़ गया है।
लोगों को याद होगा कि मैच फिक्सिंग का पहला मामला जब सन् 1999 में सामने आया था तब मैंने लोकसभा में भी उसे उठाया था। तत्काल कड़ी कार्रवाई हुई और तीन खिलाड़ियों को आजीवन प्रतिबंधित कर दिया गया। उसके बाद से 2008 तक कभी खेल में भ्रष्टाचार की बात नहीं सुनाई दी। लेकिन 2008 में जैसे ही आईपीएल के रूप में क्रिकेट सामने आया तो भ्रष्टाचार का नाला बह निकला। शुरुआत हुई हरभजन के श्रीसंत को मारे गए चाटे से, फिर 2009 में जैसी वित्तीय गड़बड़ियां हुईं उसके बाद यशवंत सिन्हा कमेटी की रपट के बाद बीसीसीआई के अधिकारियों ने माफी मांगी। क्योंकि रपट में एफडीआई का पैसा, फ्रेंचाइजी में मनीलांड्रिंग, फेमा कानून का उल्लंधन, आरबीआई के कानूनों के उल्लंघन की बात सामने आयी थी। पर उसके बाद भी कुछ ठोस हुआ नहीं।
आप शुरू से ही आईपीएल के विरोध में क्यों है?
मैं खेल के विरोध में कतई नहीं हूं। खेल तो मेरे लिए भगवान जैसा है। लेकिन भगवान का नाम लेकर बेईमानी करने वाले पुजारी का विरोध होता है। वैसे ही खेल का नाम लेकर घपलेबाजी करने वालों का मैं विरोधी हूं।
आपको क्या लगता है, बोर्ड में कोई एक–दूसरे के खिलाफ बोलता क्यों नहीं?
क्योंकि आज न कल हर किसी को बीसीसीआई का अध्यक्ष बनना है। उन्हें लगता है कि आज इसे हटाया तो कल इसके समर्थक 15 वोट मेरे खिलाफ हो जाएंगे। भले क्रिकेट घोर अनिश्चितताओं का खेल है पर बीसीसीआई में बैठे लोगों के लिए यह घोर-घोर निश्चितताओं का खेल है, क्योंकि सब तय है कि आपस में मिलकर कैसा खेल खेलाना है।
शायद खेल को राजनीति से अलग रखने के लिए वहां सब एक होते हैं?
तो फिर राजनीतिक दलों के लोग ही प्रदेश क्रिकेट संघों के अध्यक्ष क्यों बनते हैं? उन खिलाड़ियों को क्यों नहीं बनने देते जो राजनीति से अलग हैं?
पर बीसीसीआई अब जांच करा रही है?
पहले बीसीसीआई ने कहा था कि वह कोई जांच करने वाली एजेंसी नहीं है तो अब जांच के लिए समिति क्यों? करने दीजिए भारतीय कानून को अपना काम। आपकी ही कमियों की वजह से जिस तरह खिलाड़ी बेईमान हो रहे हैं, पकड़े जा रहे हैंट उससे आईपीएल की दो ही टीमें बचेंगी, सट्टेबाज इंडियंस और तिहाड़ डेयरडेविल्स। और इसके साथ ही सब आयोजक-प्रायोजकों की जांच हो जाए तो इनकी मीटिंग ऐतिहासिक सेलुलर जेल में होगी।
आप स्वयं दिल्ली क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के सदस्य हैं। आपने अनियमितताओं को रोकने के लिए क्या कोशिश की?
मैं पूरी ईमानदारी और दमदारी से अपनी बात रखता हूं, चाहे उसकी कोई भी कीमत चुकानी पड़े। मैंने बीसीसीआई को भी लिखा- कहा, पर कहीं से कोई सकारात्मक प्रति उत्तर नहीं मिला। वीसीसीआई के 'एंटीकरप्शन यूनिट' भी पूरी तरह निष्क्रिय है। दरअसल क्रिकेट बोर्डों में ही कुछ भस्मासुर पैदा हो गए हैं। यह खेल और खिलाड़ियों को भस्म करना चाहते हैं। 1999 में खिलाड़ी प्रतिबंधित हुए, अब भी श्रीसंत व अन्य दो खिलाड़ी निलंबित हुए। 2009 के आईपीएल में गड़बड़ियों की रपट के चलते कई सरकारी अधिकारियों को दंडित किया गया। पर अब तक बीसीसीआई के किसी सदस्य या कर्मचारी को सजा नहीं मिली, क्योंकि वहां सब मिले हुए हैं। ये सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के दायरे से भी बाहर है। कोई पादर्शिता नहीं। सब एक दूसरे में से बांटकर खा रहे हैं।
तो क्रिकेट साफ कैसे होगी, बीसीसीआई कैसे कठोर कानून बनाएगी?
क्रिकेट बोर्डों में ईमानदार पूर्व खिलाड़ियों को जगह नहीं मिलती। विशन सिंह बेदी जैसे बेहतरीन स्पिनर व पूर्व कप्तान को दिल्ली में जगह नहीं मिलती, वे जम्मू-कश्मीर में कोचिंग दे रहे हैं। बेहतरीन आलराउंडर मदनलाल मध्य प्रदेश में कोचिंग कर रहे हैं। मनिंदर सिंह मुम्बई में हैं और मुझे कहीं और से प्रस्ताव आ रहा है। ऐसे सभी खिलाड़ियों को पूछा ही नहीं जाता। क्योंकि हम चाहते हैं क्रिकेट साफ हो। पर क्रिकेट बोर्डों में तो सटोरिये बैठे हुए हैं, जो क्रिकेट चुनते हैं। जब तक क्रिकेट बोर्डों की सफाई नहीं होगी, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की सफाई नहीं होगी, तब तक साफ-सुथरी क्रिकेट की बात भूल जाइये।
टिप्पणियाँ