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आम और खास की सुरक्षा में भेद

by
May 11, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 May 2013 13:52:45

 

 

एक वी.आई.पी. की सुरक्षा के लिए 3 जवान और 700 आम आदमियों की सुरक्षा के लिए 1 जवान। देश के 16,788 विशिष्ट व्यक्तियों के लिए 50,059 सुरक्षाकर्मी तैनात हैं।

दिल्ली पुलिस ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उसके 8,049 जवान विशिष्ट और अतिविशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा में लगे हैं और उनकी सुरक्षा के लिए 341 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष खर्च किया जाता है। इसमें राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा पर खर्च होने वाला लगभग 39 करोड़ रुपया भी शामिल है।

 

17  जनवरी, 2013 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी.एस. सिंघवी की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ ने दिल्ली पुलिस के एक शपथपत्र के पश्चात केन्द्र सरकार, सभी राज्यों सरकारों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के संवैधानिक पदों के अलावा अन्य लोगों को दी गई सुरक्षा का विवरण तथा उसमें लगे पुलिसकर्मियों की जानकारी मांगी। हमारे संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त मूल अधिकारों में जीने और सुरक्षा का अधिकार भी है। परन्तु इसकी शब्दावली तथा भावना में बड़ा अन्तर है। व्यावहारिक रूप में भारतीय समाज में एक विघटनकारी विभेद तेजी से पनप रहा है। वह है अति विशिष्ट व्यक्तियों तथा सड़क पर चलते आम आदमी के बीच का भेद।

स्वतंत्रता के पश्चात 1978 तक भारतीय संसद में सामान्यत: ब्रिटिश संसद के सदस्यों के अनुरूप निर्धारित नियमों का अनुकरण होता रहा। 15 जून, 1978 में 44वें संशोधन के अन्तर्गत धारा 105 को परिवर्तित किया गया तथा सांसदों, विधायकों, न्यायाधीशों तथा नौकरशाहों के लिए सुविधाओं का पिटारा खुल गया। इसके साथ तरह-तरह की सुविधाओं की मांग बढ़ी। उदाहरणत: हवाई यात्रा में सुविधाएं, रेलवे यात्रा में विशिष्ट कोटा आदि सुविधाओं की मांग बढ़ी। इतना ही नहीं, सांसदों द्वारा अपने आप अपने वेतन तथा भत्ते मनमाने ढंग से कई गुना बढ़ाए। स्थान-स्थान पर सांसदों/विधायकों और उनके समर्थकों में लालबत्ती वाली गाड़ी प्राप्त करने की होड़-सी मची हुई है।

विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा

भारत में विशिष्ट व्यक्तियों की श्रेणी में राष्ट्रपति/राज्यपाल, प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री, मंत्री, संसद सदस्य, विधायक, न्यायाधीश तथा प्रथम श्रेणी के नौकरशाह आते हैं। गृह विभाग के 'ब्यूरो आफ पुलिस, रिसर्च एण्ड डेवलपमेन्ट' के आंकड़ों से ज्ञात होता है कि सन् 2010 में सभी राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में भारत में 16,788 विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए 50,059 पुलिसकर्मी नियुक्त थे, जो स्वीकृत सीमा से 21,769 अधिक थे।

पंजाब में 11,000 पुलिसकर्मियों के स्थान रिक्त होने पर भी वहां सर्वाधिक 5,410 पुलिसकर्मी विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए नियुक्त थे। दिल्ली में 1,186 पुलिसकर्मियों के रिक्त स्थान होने पर भी 5,001 पुलिसकर्मी विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा में जुटे थे। आंध्र प्रदेश में 40,596 की विशाल संख्या रिक्त स्थान होने पर भी 3,958 पुलिसकर्मी विशिष्ट लोगों की सुरक्षा व्यवस्था में जुटे थे। सन् 2009 के आंकड़े भी ऐसे ही थे। कुल 17,451 विशिष्ट व्यक्तियों के लिए 47,355 पुलिसकर्मी नियुक्त थे, जबकि इनकी स्वीकृत संख्या केवल 23,637 थी। यानी विशिष्ट व्यक्तियों के लिए सुरक्षाकर्मियों की संख्या दोगुने से भी अधिक थी।

वर्तमान में भी अनेक राज्यों की भारी धनराशि विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा पर व्यय हो रही है। उत्तर प्रदेश में 1,500 विशिष्ट व्यक्तियों की सूची है, जिन पर 120 करोड़ रुपया प्रतिवर्ष खर्च होता है। अनेक लोगों ने 'सम्भावित खतरे के आधार' पर विशिष्ट व्यक्ति की श्रेणी प्राप्त की है। एक आंकड़े के अनुसार अभी लगभग 10,000 व्यक्तियों ने सुरक्षा के लिए प्रार्थनापत्र दिए हुए हैं, जो अभी प्रतीक्षारत हैं।

सुरक्षा के विशिष्ट प्रकार

भारत में तीन दर्जन से अधिक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें जैड़ प्लस की सुविधा प्राप्त है। सरकारी पक्ष के अलावा इसमें वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, उ.प्र. की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, बसपा के राज्यसभा सदस्य ब्रजेश पाठक, उ.प्र. के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह प्रमुख हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एन.एस.जी.) में मुख्य भूमिका कमाण्डो की है, जो भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस या केन्द्रीय आरक्षी पुलिस बल (सी.आर.पी.एफ.) में से चुने जाते हैं। इन्हें मुख्यत: आतंकवादी विरोधी दस्तों के रूप में प्रशिक्षण दिया गया था। इनमें से 900 कमाण्डो का उपयोग विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए किया जाने लगा था। इसका विरोध होने पर 2012 में अधिकांश कमांडो को विशिष्ट व्यक्तियों की सेवा से हटा दिया गया। अब ये बहुत कम संख्या में विशिष्ट व्यक्तियों की सेवा में है।

सुरक्षा के मापदण्ड न होगा

विशिष्ट व्यक्तियों के सुरक्षा स्तर के स्पष्ट मानक न होने के कारण से यह सामंती मानसिकता का लक्षण बन गया है। इनकी जानकारी तब सामने आई जब उ.प्र. की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती के चुनाव हारने के पश्चात उनकी सुरक्षा में कटौती की गई। उस समय पता चला कि उनके पास जरूरत से ज्यादा संख्या में पुलिसकर्मी तथा सुरक्षा कारों का काफिला रहता था। इसी प्रकार गृह मंत्रालय ने सूचना के अधिकार के अन्तर्गत मांगी गई जानकारी के उत्तर में बताया कि भारत में केवल दो व्यक्ति-बौद्धों धर्म के शीर्ष के गुरु दलाई लामा तथा श्रीमती सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा, जो न किसी शासकीय पद पर हैं और न ही उनका जीवन साथी किसी विशिष्ट पद पर है, को देश के किसी भी हवाई अड्डे से बिना सुरक्षा जांच के आने-जाने की विशेष छूट प्राप्त है। वाड्रा को यह सुविधा तभी मिलती है जब वह स्पेशल प्रोटेक्सन ग्रुप (एस.पी.जी.) सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति के साथ यात्रा करते हैं।

सुरक्षा का राजनीतिकरण

वस्तुत: विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा राजनीतिक संस्कृति का एक हिस्सा तथा प्रतिष्ठा एवं शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक बन गई है। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के सात-आठ माह के शासनकाल में राजनीतिकों को ही नहीं बल्कि राजनीतिकों से सम्बंध रखने वाले नौकरशाहों को भी कमांडो तक की सुरक्षा प्रदान कराई है। शिंदे ने लगभग आधा दर्जन नौकरशाहों तथा कुछ 'महत्वपूर्ण  व्यक्तियों' को यह सुरक्षा प्रदान की है। पिछले कुछ महीनों में छह राजनीतिकों को जैड प्लस तथा जैड श्रेणी की सुरक्षा के आदेश दिए गए हैं। उदाहरण के लिए-बेनी प्रसाद वर्मा, जिन्हें पहले जैड़ श्रेणी की सुरक्षा थी, अब जैड प्लस की सुरक्षा दी गई है। अपने ही विभाग के राज्यमंत्री आर.पी.एन. सिंह को उन्होंने जैड़ श्रेणी दी गई। ब्रजेश पाठक, जो बहुजन समाज पार्टी के राज्यसभा सदस्य हैं और जिनके खिलाफ कई आपराधिक मामले हैं, जो न कभी मंत्री नहीं रहे, उन्हें भी 'जैड़ प्लस' की सुरक्षा दी गई है। चर्चा तो यह भी है कि शिंदे ने रायबरेली के एक पेट्रोल पम्प मालिक  को भी सरकारी सुरक्षा देने की सहमति जताई है।

आम आदमी की असुरक्षा

एक ओर विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा के नाम पर आम आदमी से कर (टैक्स) के रूप में वसूले पैसे का दुरुपयोग हो रहा है, वहीं आम आदमी की अनदेखी की जा रही है। यह अपने देश की अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि आम आदमी सड़क पर भी सुरक्षापूर्वक नहीं चल सकता। किसी भी वाहन से चोट लगने पर या घायल होने पर उसके पास न इतना धन है कि वह अस्पतालों को मोटी फीस दे सके और न इतना धन होता है कि न्यायालयों का दरवाजा खटखटा सके तथा लम्बी न्याय प्रक्रिया की प्रतीक्षा कर सके। वृद्धों, महिलाओं तथा बच्चों की असुरक्षा अत्यधिक बढ़ी है। दिल्ली बलात्कार की नगरी तथा लुटेरों की सैरगाह बनता जा रहा है। बच्चों के अपहरण, चोरी, हत्या तथा डकैती का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। अब तो तिहाड़ जैसी जेल भी सुरक्षित नहीं है, जिसमें बलात्कार के आरोपी रामसिंह की हत्या (या आत्महत्या) जैसी असावधानी को खुद गृहमंत्री ने स्वीकार किया है।

भारत में आम आदमियों के लिए पुलिसकर्मियों की संख्या एक लाख व्यक्तियों पर कुल 173.5 निर्धारित की गई है, पर वास्तव में इससे भी बहुत कम अर्थात एक लाख पर कुल 131.4 पुलिसकर्मी ही हैं। जबकि विश्व के उन्नतशील देशों में जापान में प्रति लाख पर 303 तथा जर्मनी में 298 सुरक्षाकर्मी हैं। इसके विपरीत भारत में विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा सेवाएं इंग्लैण्ड, कनाडा तथा अमरीका आदि देशों से भी कहीं बेहतर हैं।

डा. सतीश चन्द्र मित्तल

अति विशिष्ट व्यक्तियों के सुरक्षा चक्र

जैड प्लस   – इस श्रेणी के अति विशिष्ट व्यक्ति की सुरक्षा 36 सुरक्षाकर्मियों का दल करता है।

जैड       – इस श्रेणी के अति विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा 28 सुरक्षाकर्मियों का दल करता है।

वाई       – इस श्रेणी के विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा 11 सुरक्षाकर्मियों का दल करता है।

एक्स     – इस श्रेणी के विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा 2 सुरक्षाकर्मी करते हैं।

 

कौन–कौन करता है सुरक्षा?

एस.पी.जी. अर्थात स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप का गठन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1985 में किया गया। इस ग्रुप के द्वारा सिर्फ प्रधानमंत्री एवं सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उनके परिजनों को सुरक्षा आवरण दिया जाता है। अन्य विशिष्ट लोगों की सुरक्षा उनकी श्रेणी के अनुसार की जाती है। अति विशिष्ट लोगों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा  गार्ड (एन.एस.जी. के कमाण्डो), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आई.टी.बी.पी.) तथा केन्द्रीय आरक्षी पुलिस बल (सी.आर.पी.एफ.) के जवान नियुक्त किए जाते हैं। इसके अलावा दिल्ली पुलिस पर भी विशिष्ट व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी होती ½èþ*n

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