चीन लौटा, पर हमने क्या गंवाया?
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चीन लौटा, पर हमने क्या गंवाया?

by
May 11, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 May 2013 14:15:05

बीजिंग में सलमान की चुप्पी का राज क्या?

घुसपैठ पर सीधे बात करने से क्यों कतराए?

चीनी प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान सीमा–वार्ता में 'नरमी' की तैयारी?

चीन से अपनी करीब 45 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन कब छुड़ाएगा भारत?

अरुणाचल पर चीन की गलत बयानियों पर कब लगेगी लगाम?

पीओके में चीनी सैनिकों की माजूदगी पर कब होगी बात?

5 मई को चीन लद्दाख के दौलत बेग ओल्दी से अपने चार तंबू उखाड़कर पीछे लौट गया। सरकार की तरफ से यह बयान देते हुए विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद अपनी पीठ थपथपाने के अंदाज में दिखाई दिए। 20 दिन तक भारत सरकार और पूरे सत्ता प्रतिष्ठान को अपनी ठसक दिखाने के बाद चीन पीछे लौटा। क्या चीन का यह तेवर महज उसके स्थानीय बद्दिमाग कमांडर का किया-धरा था, जो दिल्ली के 'दरियादिल' बयानों से पिघलकर अपनी टुकड़ी को पीछे ले गया? 17 हजार फुट की ऊंचाई पर, 30 चीनी सैनिकों का जत्था नियंत्रण रेखा से पूरे 19 किलोमीटर अंदर आकर जमकर बैठ जाए तो इसमें किसी को शुबहा नहीं रहना चाहिए कि उसके पीछे बीजिंग की ताकत थी। लाख आपके सलमान फरियाद करते रहे कि हम दोस्ती बढ़ाने के रास्ते पर बढ़ रहे हैं, हम शांति से मसला सुलझाना चाहते हैं, चीन की टुकड़ी तीन फ्लैग मीटिंगों के बाद भी तंबू ताने बैठी रही। मीडिया की मार्फत जो जानकारियां छनकर आती रहीं उनसे साफ हुआ कि चीनियों की एक ही मांग थी कि पहले भारत चुमार में बने सैन्य ढांचे हटाए तभी वे लौटेंगे।

उधर फौजी टुकड़ी को बीजिंग का पूरा कूटनीतिक बल मिला हुआ था। वहां के विदेश मंत्रालय ने आखिर तक यह नहीं माना कि चीन ने भारत की सीमा का अतिक्रमण किया है। उसने बराबर यही कहा कि हम अपनी जमीन पर हैं। यहां से दो सवाल खड़े होते हैं। पहला, अगर चीन अपने कहे मुताबिक अपनी ही जमीन पर था तो पीछे क्यों और कहां तक हटा? दूसरा, अगर सलमान के कहे को मानें तो, चीन की शर्त मानकर भारत ने चुमार में कोई ढांचा नहीं हटाया, तो वह पीछे कैसे हटा? चीन की मौजूदा हरकत के गहरे मायने हैं। जहां इसमें सीमा निर्धारण के 'धंुधलके' में भारत की जमीन कब्जाने और मनमानी करा लेने की उसकी खतरनाक मंशा की भनक है तो वहीं दुनिया के इस हिस्से में अपनी बढ़ती ताकत का प्रदर्शन करके अमरीका और यूरोपीय देशों को यह जताने की कवायद भी है कि दुनिया की राजनीति में चीन को नजरअंदाज करना भूल होगी।

जानकारों का कहना है कि चीन दौलत बेग ओल्दी में महज दो किलोमीटर पीछे हटा है, पूरी तरह सीमा से बाहर नहीं हुआ है। क्यों कि, बीजिंग में सरकार की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने बार बार दोहराया कि चीन के सैनिक  नियंत्रण रेखा पर अपने पाले में ही गश्त कर रहे हैं, सीमा नहीं लांघी। इसी के साथ वह भारत के उस जगह पर अपने दावे को पूरी तरह निरस्त न करते हुए मसले को बातचीत से सुलझाने पर भी जोर देती रहीं। अगर चीनी अपने ही पाले में थे तो फिर पीछे क्यों हटे? अगर नहीं थे तो पूरी तरह बाहर क्यों नहीं गए? पीछे हटे तो क्या भारत ने चौथी फ्लैग मीटिंग में उनकी शर्त मान ली? खबर है कि भारत ने चुमार में रणनीतिक नजरिए से अहम जगह बने अपने सैन्य ठिकाने को हटा लिया है। सेना वहां से हटकर बर्स्ते के आधार शिविर पर लौट आई है।

उल्लेखनीय है कि कराकोरम दर्रे के पास दौलत बेग ओल्दी में भारत की हवाई पट्टी है, जिसके नजदीक भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की चौकी है और दूसरी तरफ सेना की निगरानी चौकी है। उसके दाईं तरफ राकी नाला के पास, चीन ने 1993 के सीमा पर यथास्थिति बनाए रखने के करार को धता बताते हुए, 15 अप्रैल को चार तंबू लगाए थे। उपग्रह से मिलीं तस्वीरें बताती हैं कि उनको वहां गाड़ियों से रसद और बाकी चीजें पहंुचाई जाती थीं।

इधर चीन की इस अतिक्रमण की हरकत पर साउथ ब्लॉक बगलें झांक रहा था तो लगभग उसी दौरान चीन के दोस्त ओर उसके इशारों पर चलने वाले पाकिस्तान ने भारतीय कैदी सरबजीत पर जेल में जानलेवा 'हमले' की खबर भिजवाई। भारत का सरकारी अमला सकते में आ गया। चीन पर टिकी निगाहें बंटकर पाकिस्तान के अस्पताल पर जा टिकीं जहां सरबजीत जीवन-मरण के बीच झूल रहा था और आखिरकार 2 मई को उसकी मौत हो गई। 5 मई को चीनी मैदान खाली कर गए। क्या दोनों घटनाक्रमों के बीच कोई तार नहीं जुड़ता?

इस मई महीने की 20 तारीख को चीन के प्रधानमंत्री ली कीकियांग भारत आने को 'आतुर' हैं। मार्च 2013 में कुर्सी संभालने के तुरंत बाद अपने कुटनीतिक अभियान के लिए उन्होंने भारत को पहली पसंद माना! भारत में उनके कार्यक्रमों को अंतिम रूप देने की गरज से सलमान 9 मई को बीजिंग गए। वहां चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ बात करते हुए उन्होंने इस चीनी घुसपैठ की वजह नहीं पूछी। क्यों? साथ ही, सलमान खुश थे कि चीनियों ने इस मसले पर भारत के 'शांतिपूर्ण प्रयासों' पर शाबाशी दी।

लेकिन चीनियों के सीमा पार करके हमारी जमीन पर जमकर बैठ जाने की वजह बहुत उलझनभरी नहीं दिखती। चीन लंबे अर्से से सीमा को विवादित और अस्पष्ट बताता आ रहा है और इसके जल्दी 'निपटारे' की आवाज उठाता रहा है। इसी 'अस्पष्टता' की आड़ में उसके सैनिक 4057 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा को पिछले तीन साल में 600 से ज्यादा बार लांघ चुके हैं। लद्दाख से छूते हुए कराकोरम राजमार्ग को ग्वादर बंदरगाह तक बढ़ाते हुए चीन पीओके में अपनी मौजूदगी पुख्ता करना चाहता है। इसके लिए जरूरी है कि उसकी गतिविधियों पर भारत की नजर न पड़ेे, जो चुमार में ऊंची चौकियों से राजमार्ग को देख सकता है। इसके लिए जरूरी है कि भारत को चुमार से हटाया जाए। इसके लिए जरूरी है कि चुमार और आसपास के इलाके पर अपना दावा जताया जाए। इसके लिए जरूरी है कि मौजूदा नियंत्रण रेखा से आगे बढ़कर लद्दाख के हिस्से कब्जाए जाएं। इसमें भारत कोई तीन-पांच न करे, इसके लिए जरूरी है कि भारत से मनमाफिक नक्शे पर दस्तखत कराए जाएं। इसके लिए  जरूरी है कि रेखा पर 'अस्पष्टता' की बात पुख्ता तौर पर उछाली जाए ताकि चंद दिनों में ली के नई दिल्ली आने पर सीमा का निर्धारण बाकी मुद्दों पर हावी रहे और 'शांति' को आतुर रहने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अक्साई चिन को भुलाकर, नक्शों की उधेड़बुन में उलझकर लद्दाख का एक बड़ा हिस्सा चीन के हवाले कर दें।

पाञ्चजन्य से बातचीत में मूलत: लद्दाख के फुंसोक स्तोब्दान ने इसी बात की तरफ इशारा करते हुए कहा कि चीन सीमा के मुद्दे को हवा देकर मनमानी कराना चाहता है। चीनी मामलों के गहन जानकार फंुसोक कहते हैं कि अगर भारत लद्दाख की अनदेखी करेगा, अपना ध्यान हटाएगा तो वहां चीन जमकर बैठेगा ही। उसे रणनीतिक महत्व के उस इलाके की जरूरत है। अगर हमने ढीला रवैया दिखाया तो चीन की घुसपैठ आगे भी होगी। (देखें, बाक्स) वरिष्ठ रक्षा विश्लेषक मेजर जनरल (सेनि) गगनदीप बख्शी मानते हैं कि चीन शातिर दिमाग है। उसने सरहद पर अपना तो पूरा ढांचा खड़ा कर लिया, लेकिन भारत का एक टीन शेड भी उसे बर्दाश्त नहीं है। ऐसे चीन का सामना करने के लिए हमारी सेना को नए हथियारों की सख्त जरूरत है। लेकिन सरकार के पास इस सबके लिए वक्त नहीं है। उसे कुर्सी की राजनीति से फुर्सत कहां है। (देखें, बाक्स) देश की रक्षा उसकी सोच में शायद सबसे नीचे है तभी तो वह इधर पाकिस्तान तो उधर चीन की शरारतों का करारा जवाब देने की बजाय चुप्पी ओढ़ लेता है। ली आएं तो मनमोहन सिंह के दिमाग में सवा सौ करोड़ के भारत का स्वाभिमान सबसे ऊपर होना चाहिए। देश की भौगोलिक अखंडता से किसी तरह की सौदेबाजी स्वीकार्य नहीं होगी। प्रस्तुति : आलोक गोस्वामी

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