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'सती–सावित्री एक पुराख्यान चरित्र होते हुए भी आज के नारीवादी विमर्श और स्त्री अधिकारवादी (फेमिनिस्ट) आंदोलन को ऊर्जा देता है। आज की नवयुवतियों के लिए स्वावलंबन, स्वाभिमान, त्याग और आत्मबल से युक्त साधिका के रूप में सती-सावित्री से बड़ा आदर्श और अनुकरणीय चरित्र कोई दूसरा नहीं हो सकता'। ये विचार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमती सुषमा स्वराज ने गत दिनों प्रसिद्ध लेखिका श्रीमती मृदुला सिन्हा के उपन्यास 'विजयिनी' का लोकार्पण करते हुए व्यक्त किए। दिल्ली के हिन्दी भवन में आयोजित लोकार्पण के कार्यक्रम में श्रीमती स्वराज मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थीं।
'विजयिनी' के बारे में बताते हुए श्रीमती मृदुला सिन्हा ने कहा कि विजयिनी की सावित्री प्रत्येक युग की स्वाभिमानी और अपना ध्येय तलाशने वाली
युवती है।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ लेखक श्री नरेद्र कोहली ने कहा कि सावित्री की यमराज पर विजय के पीछे केवल तर्कशक्ति नहीं, अपितु वह संघर्ष और साधना है जिससे उसे ऐसी शक्ति प्राप्त हुई। वेला पत्रिका के संपादक डा. संजय पंकज ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए।
समारोह में सर्वश्री आलोक मेहता, संविधानविद् डा. सुभाष कश्यप, अच्युतानन्द मिश्र सहित राजधानी दिल्ली के प्रबुद्ध नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित थे। समारोह का संचालन श्रीमती संगीता शाही ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन किया सामयिक प्रकाशन के श्री महेश भारद्वाज ने। प्रतिनिधि
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