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चीन अपने विस्तारवादी मंसूबों को पूरा करने की अपनी राज्य-नीति पर कायम है। तिब्बत को हड़पने, वहां तिब्बती जनता पर हर तरह की जोर-जबरदस्ती करने, वहां की जनसांख्यिकी बदलने के साथ ही उसने भारत-चीन सीमा के पूर्वी और पश्चिमी सेक्टर में अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को अंजाम देना जारी रखा हुआ है। पिछले साल चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा का करीब 400 बार उल्लंघन किया जिसमें से 90 फीसदी सीमा अतिक्रमण लद्दाख में देखने में आया। उधर पूर्वी सेक्टर में अरुणाचल पर चीन रह-रहकर दावा जताता आ रहा है। चीनी इस इलाके को अपने यहां 'दक्षिणी तिब्बत' कहते हैं।
उल्लेखनीय है कि अरुणाचल से चीन जाने वाले भारतीयों को चीन ने यह कहकर वीसा जारी करने से इनकार कर दिया था कि 'वह इलाका तो चीन का ही है'। अक्तूबर, 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अरुणाचल दौरे के वक्त भी चीन ने भड़काऊ बयानबाजी करके माहौल बिगाड़ने की चाल चली थी। लेकिन चीन ने पश्चिमी सेक्टर में लद्दाख में जिस तरह की जमीनी सैन्य घुसपैठ की है वैसी हिम्मत पूर्वी सेक्टर (अरुणाचल) में फिलहाल उसने नहीं दिखाई है। उधर दक्षिण चीन सागर में भी चीन अपनी दादागिरी दिखा रहा है। जापान के टापुओं पर चीन अपना अधिकार जमाता है। अभी पिछले हफ्ते उन टापुओं के आसपास तीन चीनी जहाज देखे जाने के बाद जापान और चीन के बीच गर्माहट उभर आई है।
लद्दाख इलाके में चीन की सैन्य घुसपैठ की ताजा हरकत 15 अप्रैल को देखने में आई। चीनी सेना के करीब 30 सैनिकों की टुकड़ी भारत-चीन सीमा के पश्चिमी सेक्टर में पूर्वी लद्दाख के दौलत बेग ओल्दी इलाके में बर्थे नामक स्थान पर 10 किलोमीटर अंदर तक आ गई। इतना ही नहीं, उसने वहां अपने रहने को तंबू भी तैनात कर लिए। पता चला है कि 15 अप्रैल की रात चीनी सैनिकों का एक दस्ता भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (भातिसीपु) को कुछ घंटे तक गोलीबारी में उलझाए रखने के बाद लौट गया था। लेकिन इस अफरातफरी का फायदा उठाते हुए चीनी सैनिकों के एक दूसरे दस्ते ने वहां से तीन किलोमीटर दूर सीमा के 10 किलोमीटर अंदर तीन तंबू तान दिए जिनका पता भातिसीपु को अगले दिन सुबह ही चला। भातिसीपु का निकटतम शिविर वहां से 20 किमी दूर है। चीनियों ने इस तरह भारतीय सीमा के अंदर तंबू लगाने की कोशिश इससे पहले 1986 में ही की थी।
भारत के लिए यह बेहद गंभीर स्थिति है और इस चीनी घुसपैठ पर संसद में हल्ला भी मचा। रक्षा मंत्री ए. के. एंटोनी ने हालांकि बयान दिया है कि मामले पर नजर रखी जा रही है और हालात जल्दी ही काबू में आ जाएंगे। लेकिन साउथ ब्लाक तलब किए गए चीनी राजदूत व्ई व्ई के रवैए से साफ जाहिर होता है कि चीनी अपनी इस हरकत के लिए कतई शर्मिंदा नहीं हैं। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने 22 अप्रैल को बीजिंग में बयान दिया कि 'चीन के सीमा रक्षक….दोनों देशों द्वारा मान्य वास्तविक नियंत्रण रेखा का पालन कर रहे हैं…और रेखा पर चीनी हिस्से में ही गश्त कर रहे हैं।'
इस साल की बात करें तो अब तक चीनी घुसपैठ की 100 के करीब घटनाएं हो चुकी हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी की मानें तो चीनी सेना ने सीमा पर पांच अतिक्रमण किए-एक हल्के वाहन से, दूसरा भारी वाहन से, दो बार पैदल और एक बार चीनी हैलीकाप्टर से। ये सभी एक ही सेक्टर में अलग अलग इलाकों में किए गए। भारत के वरिष्ठ रक्षा विश्लेषक बी. रमन इस घुसपैठ को फिलहाल किसी बड़े चीनी हमले की आहट नहीं मानते। लेकिन अगर चीनी सैनिक वहां तंबू लगाए जमे बैठे रहे और उन्होंने स्थायी रक्षा ढांचे खड़े किए तो यह मामला गंभीर हो सकता है।
हैरानी का बात है कि भारत सरकार इस मुद्दे पर अपने उसी पुराने ढर्रे पर कायम है कि 'सीमाएं स्पष्ट न होने से चीनी सैनिक भटककर इस तरफ आ जाते हैं।' लेकिन सरकार चीन की उस हेकड़ी भरी फरमाइश पर चुप क्यों है कि भारत पूर्वी लद्दाख के 'विवादित इलाके' में से अपनी कुछ पक्की चौकियों को हटाए तभी चीनी सैनिक देपसांग घाटी में बनाए अपने अस्थायी ठिकाने हटाएंगे? 23 अप्रैल को भारत-चीन के बीच सीमा अतिक्रमण को लेकर हुई 'फ्लैग मीटिंग' चीनियों की इसी शर्त के कारण बेनतीजा खत्म हो गई। खबर है कि भारत के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद 9 मई को चीन जाएंगे जहां वे इस मुद्दे पर चीनी अधिकारियों से बातचीत करेंगे। लेकिन चीन की इस दादागिरी पर भारत सरकार को जिस तरह की प्रतिक्रिया करनी चाहिए, वह नदारद है। सरकार के इस ढुलमुल रवैए और चीनी अतिक्रमण पर गंभीर चिंता जताते हुए भाजपा ने सरकार को पूरी निडरता से अपनी बात रखने को कहा है। 24 अप्रैल को भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा कि इस चीनी अतिक्रमण को लेकर पूरा देश चिंतित है। देश जानना चाहता है कि सरकार इस परिस्थिति पर क्या कार्रवाई कर रही है। इस मुद्दे पर सरकार को निडरता के साथ अपना पक्ष रखना चाहिए। इस पर भाजपा और पूरा देश साथ है। भाजपा की सलाह है कि चूंकि 'फ्लैग मीटिंग' बेनतीजा रही हैं इसलिए इस मुद्दे को राजनीतिक स्तर पर आगे बढ़ाते हुए भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिश होनी चाहिए।
दुगुनी हुई हेकड़ी, खुल के बतायी फौजियों की संख्या
चीन का फौजी अक्खड़पन इतना बढ़ गया है कि अब वह अपनी सामरिक जानकारियों को गोपनीय रखने की चिन्ता नहीं करता। उसकी थलसेना में कितने सैनिक हैं, वायुसेना में कितने उड़ाकू हैं और नौसेना में कितने पोत हैं, इस पर वह खूब लम्बे-चौड़े दावे करने से गुरेज नहीं करता। चीन के रक्षा मंत्रालय अभी पिछले दिनों अपने 40 पन्ने के प्रतिरक्षा दस्तावेज में ऐसी-ऐसी जानकारियां दी हैं जो कोई देश आमतौर पर सबके साथ सांझा नहीं करता। इस दस्तावेज में अपनी फौजी दमदारी की डींगें हांकने के अलावा उसने दुनियाभर के दमदार देशों को एक तरह से घुड़काया भी है। दुनिया में सबसे बड़ी थलसेना कही जाने वाली चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी में, दस्तावेज के मुताबिक, 850,000 पैदल सैनिक हैं तो नौसेना में 235,000 नौसैनिक हैं, वायुसेना में 398,000 वायु सैनिक हैं। चीन के इन आंकड़ों को हालांकि कुछ रणनीतिक विशेषज्ञों ने सच से परे बताया है, लेकिन अगर उसने इतनी भी जानकारी दी है तो वह उसके बढ़े हौसलों की तरफ इशारा जरूर करती है। पाञ्चजन्य ब्यूरो
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