गुस्से की बात
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गुस्से की बात

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Apr 27, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Apr 2013 12:11:40

कभी-कभी बहुत गुस्सा आता है। कोई बात हो या न हो, पर आता है। गुस्सा आये और निकले नहीं, तो बड़ी परेशानी हो जाती है।

शर्मा जी को एक बार उनके अधिकारी ने बुरी तरह डांट दिया। शर्मा जी को गुस्सा तो बहुत आया, पर वे ठहरे एक सामान्य क्लर्क। इसलिए चुपचाप उन्होंने फाइलें समेटी और समय से दो घंटे पहले घर जा पहुंचे। घर पर 'मैडम' आराम कर रही थीं। शर्मा जी ने सारा गुस्सा ब्याज सहित उन पर उतार दिया।

'मैडम' बेचारी क्या करतीं, चुपचाच गुस्सा पी लिया। थोड़ी देर बाद बेटे ने विद्यालय से आकर खाना मांगा, तो 'मैडम' ने उसे चांटा मार दिया। बेटे ने अंदर जाकर छोटी बहिन को पीट दिया। बहिन ने गुस्से में आकर अपनी गुड़िया को फर्श पर पटक दिया। इस तरह दफ्तर में शुरू हुई कहानी गुड़िया के टूटने पर जाकर समाप्त हुई।

परसों मुझे भी किसी बात पर गुस्सा आ गया। मैंने बहुत सिर मारा, पर समझ नहीं पाया कि गुस्सा कहां और किस पर उतारूं? इसलिए मैंने एक बार फिर शर्मा जी की ही शरण ली।

– शर्मा जी, यह समस्या बहुत पुरानी है। 1947 से पहले हम लोग हर बात के लिए अंग्रेजों को दोषी ठहरा देते थे। फिर यह गुस्सा व्यापारी और उद्योगपतियों से होता हुआ नक्सलियों और माओवादियों की ओर मुड़ गया, पर अब यह फैशन भी पुराना हो गया। इसलिए तुम अपना गुस्सा नेता जी या पुलिस वालों पर उतार दो।

– क्या मतलब ..?

– मतलब यह कि इन दोनों पर सब नाराज हो सकते हैं। लेखक, कवि और व्यंग्यकारों के लिए उन पर टिप्पणी करना बहुत सरल है। ये दोनों भी अपने कुकर्मों का दोष दूसरे को देकर पल्ला झाड़ लेते हैं। कई बार तो लोग मंच पर बैठे नेता जी के सामने ही ऐसा-वैसा कह देते हैं और वे चुपचाप खून का घूंट पीकर रह जाते हैं।

– लेकिन शर्मा जी, वे ऐसा क्यों करते हैं?

– क्योंकि वोट देने के बाद अगले पांच साल तक जनता के पास हाथ झटकने और पैर पटकने के अलावा कोई अधिकार नहीं रहता। पुलिस वाले भी माफिया और भ्रष्टाचारियों से मिले रहते हैं। कहते हैं कि हर थाने में रात के समय शराब और कबाब की महफिल सजती है। ऐसे में यदि कोई अभागी अपनी शिकायत लेकर पहुंच जाए, तो उसमें शबाब का तड़का भी लग जाता है, पर गुस्सा उतारते हुए यह ध्यान रखना कि कहीं वे गुस्सा न हो जाएं। क्योंकि हमारी-तुम्हारी तरह उनका गुस्सा शाकाहारी नहीं होता।

– शर्मा जी, इन दोनों से भिड़ना मेरे बस की बात नहीं है।

– तो फिर तुम गरीबों पर गुस्सा निकाल लो। उन पर हंसो या उन्हें मारो, वे बेचारे चुप ही रहते हैं। हमारे सत्ताधीश भी बार-बार उनके घावों पर नमक डालते रहते हैं। एक बार इन्दिरा गांधी ने 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया था। तब से उनकी पार्टी और परिवार वाले अपनी गरीबी हटा रहे हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के अनुसार यहां अपराध बढ़ने का कारण देश भर के वे गरीब हैं, जो लगातार यहां घुसे चले आ रहे हैं। योजना आयोग वाले गरीबी रेखा को ही आगे-पीछे खिसकाकर आंकड़ों की जुगाली करते रहते हैं।

– शर्मा जी कुछ दिन पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर सुब्बाराव ने भी तो गरीबों के बारे में कुछ कहा था?

– हां, उनका कहना है कि जेब में पैसा आने से गरीब लोग अधिक खाने लगे हैं, इसलिए भारत में गरीबी बढ़ रही है।

– पर शर्मा जी, ऐसी बातें सुनकर गरीबों को गुस्सा नहीं आता ?

– गुस्सा आता तो फिर बात ही क्या थी वर्मा। उनकी किस्मत में गुस्सा नहीं, भूख और अपमान लिखा है। इसीलिए तो मैं तुमसे कह रहा हूं कि तुम्हें भी गुस्सा निकालना हो, तो उन पर निकाल लो।

– लेकिन शर्मा जी, आपकी बात सुनकर तो मुझे उन लोगों पर गुस्सा आ रहा है, जो इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार हैं।

– यदि ऐसा है, तो इसे संभालकर रखो। इसे व्यर्थ न निकल जाने दो। क्योंकि चोट वही असर करती है, जो सही समय और सही स्थान पर की जाए। उस चोट का समय भी आ रहा है, पर ध्यान रहे, तब इधर-उधर की बातों में फंसकर इस गुस्से को भूल न जाना।

मैं शर्मा जी का मुंह देखता रह गया।   विजय कुमार

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