रामसरन वर्मादौलतपुर का दौलतमंद
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रामसरन वर्मादौलतपुर का दौलतमंद

by
Apr 6, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Apr 2013 16:13:17

देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की vÉ®úiÉÒ…’ उपकार फिल्म का यह गाना उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 43 किमी. दूर दौलतपुर गांव के किसान रामसरन वर्मा की खेती पर सटीक बैठता है। आर्थिक रूप से मध्यवर्ग से जुड़े रामसरन वर्मा ने पारम्परिक खेती से हट कर प्रगतिशील किसानी की राह अपना कर प्रदेश ही नहीं, देश के किसानों के सामने आर्थिक सम्पन्नता का एक उदाहरण रखा है। बंजर होती खेती को रामसरन वर्मा ने उर्वर बनाकर एक कीर्तिमान स्थापित किया। कभी मात्र 6 एकड़ खेत में धान–गेहूं की फसल उगाकर किसी तरह परिवार चलाने वाले रामसरन आज केला, मेन्था, आलू, टमाटर आदि की बहुफसली खेती से न केवल अपना जीवकोपार्जन कर रहे बल्कि आस–पास के किसानों को भी उन्होंने राह दिखाई है। 90 एकड़ भूमि उन्होंने पट्टे पर लेकर इस प्रगतिशील खेती को नया आयाम दिया है, जिससे साल में कम से कम एक करोड़ रुपये का लाभ कमाते हैं। इस क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धि के लिए उन्हें केन्द्र सरकार का ‘¤ÉɤÉÚ जगजीवन राम कृषि {ÉÖ®úºEòÉ®ú’ मिल चुका है। रामसरन बता रहे हैं वह कमाल की गाथा –

मैं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पास बाराबंकी जिले के दौलतपुर गांव का रहने वाला हूं। मेरा जन्म 1968 में साधारण कृषक परिवार में हुआ और मात्र हाईस्कूल तक की शिक्षा प्राप्त कर सका। मैंने 1985 में अपनी 6 एकड़ पैतृक जमीन पर धान-गेहूं की परम्परागत खेती प्रारम्भ की और अथक परिश्रम के बावजूद हर वर्ष 20 हजार रुपये कमा सका। तब मैंने सोचा कि खेती को नया आयाम दिया जाए। मैंने कृषि में ऊतक संवर्धन (टिश्यू कल्चर) जानने के बाद पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रगतिशील कृषकों के खेतों, शोध संस्थानों, किसान मेलों, कृषि प्रदर्शनियों का भ्रमण किया और खेती के परम्परागत तरीके को छोड़ कर नए तरीके अपनाते हुए सर्वप्रथम 1990 में हरी छाल के केले की खेती प्रारम्भ की। इसमें सफलता मिलने के बाद इस विधा से प्रोत्साहित होकर मैं अपनी भूमि के साथ-साथ 90 एकड़ भूमि पट्टे पर लेकर फसल चक्र अपनाते हुए केला, टमाटर, आलू और मेन्था की सहकारिता आधारित खेती कर रहा हूं।

मैं 90 एकड़ भूमि पर ऊतक संर्वधित केला, आलू, टमाटर का त्रिवर्षीय चक्र अपनाकर व्यावसायिक खेती को बढ़ावा दे रहा हूं। 1990 से अब तक एक लाख से अधिक किसान भाई इस प्रगतिशील तकनीक को अपना कर बेहतर जीवनयापन कर रहे हैं। वर्तमान में करीब 200 ग्रामीण कृषक मजदूरों को गांव में ही रोजगार प्राप्त हो रहा है। इसके साथ ही हमारे गांव के आस-पास के लगभग 20 किमी. परिधि के किसान भाई और प्रदेश के लगभग 50 हजार कृषकों ने हमारे मॉडल को अपनाकर घर में सम्पन्नता लाने में सफलता हासिल की है।

मेरे लिए पौधे बच्चे की तरह और खेत परिवार की तरह हैं। पूर्वी उ.प्र. में टिश्यू कल्चर आधारित खेती मेरे द्वारा ही प्रारम्भ की गई। मैंने टमाटर की स्टाकिंग, टिश्यू कल्चर केला तथा इसकी पेड़ी (दूसरी पीढ़ी) खेती की उन्नत तकनीक, आलू बोआई की नवीन तकनीक, मेन्था ऑयल निकालने की नई विधि तथा कृषि यंत्रों से सुगमता और कुशलतापूर्वक कार्य करने हेतु उनमें आवश्यक सुधार करते हुए कई नए प्रयोग भी किए हैं। इस कारण कम लागत में अधिक लाभ प्राप्त करने का रास्ता साफ हो गया है। नये प्रयोगों से स्पष्ट हो गया है कि फसल चक्र अपनाने से उर्वरकों पर होने वाले व्यय को 30 प्रतिशत कम किया जा सकता है। साथ ही 30 प्रतिशत तक अधिक पैदावार प्राप्त कर अधिक लाभ कमाया जा सकता है। समतल खेत, गोबर की खाद का प्रयोग और समय से बोआई करके पैदावार बढ़ाई जा सकती है। नई खोजों की जानकारी किसान भाइयों तक पहुंचाने के लिए कृषि गोष्ठियां और कृषि वैज्ञानिक सम्मेलनों का भी आयोजन होता रहता है। मेरे ‘½þÉ<Ç]äõEò’ कृषि फार्म को देखने के लिए प्रदेश और देश के एक लाख किसान आ चुके हैं।

हमने केला, टमाटर, आलू और मेन्था की खेती के लिए पांच साल अवधि का ऐसा फसल चक्र विकसित किया जो सफलतापूर्वक चले तो चाहे कितनी भी प्राकृतिक आपदायें आयें किसान को घाटा हो ही नहीं सकता। इस मॉडल के मुताबिक जिस खेत में पहले साल केले की खेती की जाए, उसमें दूसरे साल आलू, टमाटर और मेन्था, तीसरे साल फिर केला, चौथे साल फिर आलू, टमाटर और मेन्था और पांचवें साल धान, गेहूं और मेन्था की खेती की जानी चाहिए। कभी मेरे पास एक साधारण सा मकान था और अब मैं किसान होते हुए ‘nùÉè±ÉiÉ{ÉÖ®ú का nùÉè±ÉiɨÉxnù’ कहा जाता हूं। मेरे बच्चे इसी खेती के बल पर अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। अब यहां पर एक ऐसे केन्द्र की स्थापना हो गई है जहां दूर दराज से आये किसान हमारी प्रगतिशील खेती के बारे में जान सकते हैं। q|ɺiÉÖÊiÉ : शशि सिंह

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