कम खायें, शाकाहारी बनें, स्वस्थ रहें
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आज चिकित्सा क्षेत्र में बहुत उन्नति हुई है परंतु नित नई बीमारियां पैदा होकर नई-नई चुनौती खड़ी करती जा रही हैं। जीवन के रहन-सहन की व्यवस्था अत्यन्त आधुनिक एवं सुविधा सम्पन्न है फिर भी पूरी तरह से व्यक्ति स्वस्थ होने का दावा करने में असमर्थ है। भारतीय जीवन शैली व्यक्ति को 100 वर्ष तक स्वस्थ जीने की कला सिखाती है। सौभाग्य से भारतीय संस्कृति से जुड़े, भारत में जन्म लेने के कारण विरासत में प्राप्त सभी जीवन मूल्य एवं संस्कार स्वास्थ्यवर्द्धक हैं। लेकिन आज व्यक्ति के खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार आदि सभी में बहुत परिवर्तन हो गया है, जिसका नतीजा रोगग्रस्त शरीर, व्यभिचार, असामयिक मृत्यु आदि के रूप में वह स्वयं भुगत भी रहा है।
हमारी भारतीय संस्कृति में शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए सात्विक और संयमित भोजन को सदा ही प्राथमिकता दी गयी है। किसी भी व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य की नींव अगर मजबूत बनानी है तो उसे अपने भोजन पर विशेष ध्यान देना पड़ेगा। अगर भोजन की ठीक चिन्ता हुई तो अधिकांश रोगों से मुक्ति भी डाक्टरी सहायता के बगैर हो सकती है। कुछ वर्ष पहले हुए अध्ययन में पता चला एक में 150 वर्ष से ऊपर जीने वाले संसार के लोगों की विशेषता यह थी कि वे कम भोजन करते थे।
दुनिया के भोजन से जुड़े विशेषज्ञों, विशेषकर अमरीका के शोध वैज्ञानिकों ने प्रमाण के साथ यह सिद्ध कर दिया है कि शाकाहारी भोजन मनुष्य की आयु बढ़ाता है एवं उसको अनेक प्रकार के शरीर के कष्टदायक रोगों से बचाता है। हमारे यहां तो ऋषियों, मुनियों ने उपनिषदों में पहले ही लिखा है-'अल्प भुक्तम् बहु भुक्तम्' अर्थात जो लोग कम भोजन करते हैं वे लम्बे समय तक भोजन करते हैं। यदि हम खाने पर संयम रखे तो अनेक प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का समाधान हो सकता है। कैसा और कितना व कब-कब भोजन किया जाए अगर यह हम स्वास्थ्य की दृष्टि से सुनिश्चित कर लें तो शायद हम भी आसानी से सौ वर्ष की आयु प्राप्त कर सकते हैं।
भारतीय संस्कृति में माना गया है कि 'आहार शुद्धो सत्व शुद्धि:' अर्थात भोजन की शुद्धि होने पर मानव की अन्तरात्मा शुद्ध होती है। 'अन्नमयं हि सौम्य मन:' अर्थात जैसा अन्न खाया जाता है, वैसा ही मन, बुद्धि, विचार इत्यादि हो जाते हैं। मनु स्मृति में कहा गया है कि 'अन्न ब्रह्म है' यह समझकर उसकी उपासना करनी चाहिए-दोनों हाथ, दोनों पांव और मुख को अच्छी तरह से स्वच्छ कर ब्रह्म चिंतन कर भोजन ग्रहण करना चाहिए। अल्प भोजन करना स्वास्थ्यवर्द्धक होता है। यदि भूख से अधिक भोजन किया जाए तो वह शरीर में विष का काम करता है। बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा है कि 'उदर ही समस्त रोगों की जड़ है।' अंग्रेजी कहावत है अत्यधिक खाने वाले अपनी कब्र को अपने ही दांतों से खोदते हैं' बहुत से लोग अधिक भोजन करने के कारण उत्पन्न हुए रोगों से मरते हैं।
अच्छे स्वास्थ्य के लिए हल्का, सादा, सुपाच्य भोजन करना चाहिए। प्राचीन काल से ही हमारे यहां शाकाहार और फलाहार का प्रचार रहा है। अधिक से अधिक फलों तथा सब्जियों का सेवन करना चाहिए। हम देखते हैं कि जो पशु-पक्षी प्राकृतिक भोजन करते हैं, वे स्वस्थ एवं दीर्घजीवी होते हैं। कच्चे, बिना पके भोजन से अच्छे स्वास्थ्य का विशेष संबंध है। इसके द्वारा भोजन में शक्ति प्रदान करने वाले विटामिन और ऊर्जा को सुरक्षित रखा जा सकता है। मानव को छोड़कर संसार का कोई भी प्राणी भोजन को आग पर पका कर नही खाता। हमारे भोजन में अंकुरित भोजन का विशेष महत्व है। इसके माध्यम से अनेक प्रकार की स्वास्थ्यवर्द्धक ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। विटामिन की मात्रा बढ़ जाती है-विटामिन-सी की मात्रा 600 और विटामिन बी की 1000 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। ऊर्जा जो शरीर के पाचन तंत्र को प्रारम्भ व पूरा करती है, उसकी क्रियाशीलता और प्रखर हो जाती है।
वैज्ञानिक तथ्यों ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि शाकाहारी भोजन हृदय रोग तथा कैंसर से शरीर को बचाता है। दिन भर में केवल 400-800 ग्राम फल एवं सब्जियों का सेवन, दालों तथा अनाजों इत्यादि का इस्तेमाल कम से कम 'प्रॉसेस्ड फूड' का इस्तेमाल, चीनी तथा चिकनाईयुक्त चीजों का कम से कम इस्तेमाल, मांस-मछली, मद्यपान, सिगरेट, पान, पान मसाला, तम्बाकू, चरस, अफीम, गांजा जैसे नशीले पदार्थ का त्याग, चाय काफी का कम से कम इस्तेमाल, हमें दिल के रोगों तथा विशेषकर अनेक प्रकार के कैंसरों से कोसों दूर रखता है। रात के खाने में और सुबह के नाश्ते में 12 घंटे से अधिक का फासला सुनिश्चित करें-अगर नाश्ता हल्का करें तो उचित रहेगा-घी, चीनी का इस्तेमाल कम करें। खाने में खीरा, ककड़ी, टमाटर, गाजर, मूली, सलाद इत्यादि का सेवन बढ़ायें फिर देखें वजन कम होने जैसे परिणाम सप्ताह में प्रारम्भ हो जाएंगे। डा. हर्ष वर्धन एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)
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