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बलिदान तो बलिदान ही होता है। उसकी कीमत आंकी नहीं जा सकती। जिसने भी इस देश की रक्षा में, देशवासियों की रक्षा में कहीं भी, कभी भी बलिदान दिया, उसे असंख्य प्रणाम। हाल ही में कुण्डा में अपना कर्तव्य निभाते हुए मारे गए पुलिस उपाधीक्षक जिया उल हक की शहादत को भी सलाम। पर क्या करें तुष्टीकरण की दौड़ में पगलाए इन सेकुलरों का, बलिदानी का धर्म-मजहब देखकर जब सम्मान करने लगते हैं, पुरस्कार देने लगते हैं तो मन में टीस पैदा होती है। याद है दिल्ली के बाटला हाउस मुठभेड़ काण्ड में 19 सितम्बर, 2008 को शहीद होने वाले दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा के जाबांज इंस्पेक्टर मोहनचन्द शर्मा, उनकी शहादत पर पहला संदेह कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने ही जताया था। उस मुठभेड़ को फर्जी बताने वालों में तब समाजवादी नेता अमर सिंह भी पीछे नहीं थे। सवाल उठाए गए कि मुठभेड़ के लिए विख्यात मोहन चन्द्र शर्मा 'बुलेट प्रूफ जैकेट' पहने बिना वहां क्यों गए? बाटला हाउस काण्ड में मारे गए आजमगढ़ के आतंकवादियों को 'निर्दोष और मासूम बच्चे' कहने का चलन अब तक नहीं थमा है। सलमान खुर्शीद ने बताया कि उनके लिए मैडम सोनिया भी रोई थीं। आजमगढ़ के उन बच्चों और देवरिया में जिया उल हक के घर जाकर सांत्वना दे आए राहुल गांधी दिल्ली में ही रहकर उसके उपनगर द्वारका तक नहीं गए, जहां शहीद मोहन चन्द्र शर्मा की पत्नी माया शर्मा रहती हैं, और अब दिल्ली नगर निगम के एक स्कूल में शिक्षक हैं। स्व. मोहन चन्द्र शर्मा के पिता नरोत्तम शर्मा को मलाल है कि भिकियासैंड (कुमायूं) स्थित उनके पैतृक गांव में स्कूल, सड़क और स्मारक की घोषणाएं तो हुईं, पर पूरी एक भी नहीं हुईं। दिल्ली पुलिस का मामला था इसलिए मजबूरी में कांग्रेस की ओर से सिर्फ दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित ही आयीं, 11 लाख रुपए देने के लिए। अमर सिंह द्वारा भेजे गए 10 लाख रु. स्वाभिमानी श्रीमती माया शर्मा ने लौटा दिया। हां, बहादुर पति को मिला अशोक चक्र उनकी सबसे बड़ी पूंजी है।
झारखण्ड के लातेहार में इसी साल 9 जनवरी को माओवादियों द्वारा निर्ममतापूर्वक मारे गए बाबूलाल का पेट चीरकर उसमें बारूद भर दिया गया था। उसका शव 12 जनवरी को इलाहाबाद स्थित पैतृक गांव पहुंचा, पर न कोई सांत्वना देने आया और न संबल। परिजनों ने 17 से 21 जनवरी तक मुख्य मार्ग पर धरना दिया तो 25 जनवरी को उ.प्र. के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आए, मृतक की पत्नी को 20 लाख रु. दिए और पिता को एक एकड़ जमीन देने की घोषणा कर दी। जिस कुण्डा में जिया शहीद हुए उससे कुछ दूर बडूपुर गांव के सैनिक सुभाष यादव देश की रक्षा करते हुए गत 18 जनवरी को बारामूला में शहीद हुए। मुख्यमंत्री 25 जनवरी को उनके भी गांव गए, 20 लाख रुपए दिए, साथ ही उनके एक आश्रित को राजकीय योजनानुसार नौकरी का आश्वासन भी दिया।
पर जिया उल हक के परिजन सौभाग्यशाली हैं। मुख्यमंत्री 2 दिन बाद ही उनके घर पहुंच गए, उनकी पत्नी परवीन आजाद और पिता शमसुल को भी 25 लाख रु. दिए। इतना ही नहीं परिवार के एक-दो नहीं, पांच सदस्यों को योग्यतानुसार नौकरी देने की घोषणा कर आए। परवीन आजाद डी.एस.पी. ही बनना चाहती हैं, पर यह सरकार के वश की बात नहीं, इसलिए कल्याण विभाग का विशेष कार्याधिकारी बना दिया। भाई को भी 'कांस्टेबल' की नौकरी मिल गई है। छोटा भाई, चचेरा भाई, ननद, ननदोई आदि की सूची भी शासन तक पहुंच गई है। राहुल गांधी अपना निजी मोबाइल नम्बर भी परवीन को दे आए हैं और उनका नम्बर भी अपने फोन में 'फीड' कर लिया है। कब्र पर जाकर फातिहा भी पढ़ा। जामा मस्जिद के इमाम भी सांत्वना दे आए। उनकी अर्जी पर एक मंत्री पद से हटे, जब जिया उल हक भीड़ की हिंसा का शिकार हुए तब वे मुख्यमंत्री के साथ थे, पर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ, सी.बी.आई. जांच चल रही है। पर उसी प्रतापगढ़ के पास डा. अम्बेडकर नगर जिले के टांडा कस्बे में हिन्दू युवा वाहिनी के संयोजक रामबाबू गुप्ता की हत्या कर दी गई। सपा विधायक अजीमुल हक पहलवान पर आरोप है, पत्नी रपट लिखाने गई तो भगा दिया, शव यात्रा पर भी पथराव हुआ, अब टांडा के हिन्दू युवकों की ही गिरफ्तारी की जा रही है। सांसद योगी आदित्यानाथ को वहां जाने नहीं दिया गया। इसीलिए लोग कह रहे हैं कि उ.प्र. में कानून का राज नहीं, वहां गुण्डाराज है या फिर मुस्लिम राज जितेन्द्र तिवारी
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