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भ्रष्टाचारी पतियों की पत्नियों को सजा दिए जाने का सिलसिला चल निकला है। मध्य प्रदेश में एक विशेष न्यायालय ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में पति के साथ पत्नी को भी 3 साल की जेल और 25 हजार के जुर्माने की सजा सुनाई है। उसके पति एवं वन निरीक्षक हरिशंकर गुर्जर को 4 साल की कैद और एक करोड़ के जुर्माने की सजा दी गई है। खण्डवा जिले के कालीभीत तहसील में तैनात इस वन निरीक्षक के यहां 13 जुलाई, 2009 को लोकायुक्त ने छापा मारकर 1 करोड़ से अधिक की अवैध संपत्ति बरामद की थी। इस फैसले ने तय कर दिया है कि अवैध कमाई करने वाले लोकसेवकों के परिजनों पर भी अब कानून का शिकंजा कसेगा। भ्रष्टाचार पर परदा डालने का आरोपी बनाकर इन्हें जुर्म में बराबर का भागीदार माना जाएगा।
ऐसे हुई शुरुआत
इस तरह के फैसले देने की शुरुआत दिल्ली की विशेष सीबीआई अदालत ने 24 जून, 2012 को एक अनूठा फैसला सुनाकर की थी। सीबीआई के विशेष न्यायालय के न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने दिल्ली नगर निगम के अभियंता आर. के. डबास को रिश्वत लेने तथा भ्रष्टाचार का दोषी पाते हुए तीन साल की सश्रम कैद और पांच लाख के जुर्माने की सजा दी थी। साथ ही आरोपी की पत्नी को एक साल की साधारण कैद तथा ढाई लाख रुपए जुर्माने की सजा दी। न्यायाधीश ने स्पष्ट किया था कि आरोपी की पत्नी घरेलू महिला जरूर है, लेकिन वह अपने पति को अवैध कमाई के लिए उकसाती थी और इस कमाई से चल व अचल संपत्ति जोड़ती थी।
इस फैसले के बाद मुम्बई उच्च न्यायालय ने भास्कर बाग की पत्नी मंगला को 4 अप्रैल, 2008 को पकड़े गए भ्रष्टाचार के एक मामले में तीन साल का सश्रम कारावास तथा 2 लाख रु. के जुर्माने की सजा सुनाई। जम्मू-कश्मीर की भ्रष्टाचार निवारण अदालत ने 8 मई, 2008 के एक मामले में एक अभियंता को उसकी पत्नी के साथ सजा दी। अब खण्डवा के विशेष न्यायालय ने इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए नया इतिहास रच दिया है।
यदि न्यायालय विवेक से फैसला लेते हुए भ्रष्टाचारी पतियों की पत्नियों और बालिग बच्चों को सजा देने लगे तो निश्चित रूप से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने की उम्मीद की जा सकती है। लगता है कि यह सिलसिला अब शुरू हो जाएगा। केंद्रीय मंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को भी भ्रष्टाचार के एक 23 साल पुराने मामले में शिमला स्थित उच्च न्यायालय ने आरोपी बनाया है। प्रतिभा सिंह हिमाचल प्रदेश के उद्योगपतियों से धन वसूली में पति के साथ बराबर की भागीदारी करती थीं, ऐसे साक्ष्य न्यायालय में पेश किए गए हैं।
संदेश अच्छा है
भ्रष्टाचारी अधिकारी अब दंडित होने लगे हैं- नागरिकों को यह खबर निश्चित रूप से सुकून देने वाली है। भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष को ऐसे ही कठोर और दूरगामी फैसलों से सार्थक अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है, साथ ही जनता में यह भरोसा भी पैदा किया जा सकता है कि जनता दबाव बनाए और कानून साथ दे तो बड़े से बड़ा भ्रष्टाचारी भी पत्नी व बच्चों सहित जेल में होगा।
कुछ समय पहले ही भारतीय प्रशासनिक सेवा की महिला अधिकारी नीरा यादव को चार साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी। इस फैसले ने यह भ्रम तोड़ा था कि किसी प्रशासनिक अधिकारी को सजा नहीं हो सकती। यह देश के इतिहास में पहला प्रकरण था जिसमें किसी प्रशासनिक अधिकारी को सजा सुनाने के साथ ही जेल भेज दिया गया था। निश्चित रूप से यह सजाएं भ्रष्टाचारियों के मन में खौफ पैदा करेंगी और किसी हद तक बेलगाम भ्रष्टाचार पर अंकुश भी लगेगा। लेकिन जो वैकल्पिक कानून भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देते हैं, उनमें यदि कसावट ला दी जाए तो देश भ्रष्टाचार से मुक्ति की दिशा में मुड़ सकता है।
हाल ही में चीन में भ्रष्टाचार के आरोप साबित होने पर दो अधिकारियों को मृत्युदण्ड तो दिया ही गया, उनकी चल-अचल संपत्ति भी जब्त कर ली गई। यही नहीं एक अधिकारी की पत्नी को भी आठ साल की सजा दी गई। कानूनी प्रावधानों के गंभीर क्रियान्वयन के भय के चलते ही चीन में आर्थिक विकास हो रहा है।
और क्या करें?
भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता में भ्रष्टाचार के विरुद्ध ऐसे कठोर प्रावधान लाए जाएं, जिनकी पहंुच भ्रष्टाचारी के पारिवारिक सदस्यों को भी दायरे में लाने वाली हो। क्योंकि कोई भी व्यक्ति भ्रष्टाचार से जो संपत्ति जुटाता है उसका लाभ परिवार के सदस्य ही उठाते हैं। धन आने की गति निरंतर बनी रहे इस दृष्टि से पत्नी व बच्चे भी व्यक्ति को अवैध कमाई के लिए उकसाने का काम करते हैं। इस दृष्टि से दण्ड के दायरे को लाभान्वित व्यक्तियों की पहंुच तक विस्तार देने की जरूरत है।
आज हमें ऐसा माहौल बनाने की जरूरत है कि व्यक्ति आय के अनुरूप ही खर्च करे। लेकिन भौतिक सुखों की चाहत व्यक्ति की इच्छाएं बढ़ा रही है। पत्नी और बच्चों की भोग-विलास की मांगंे लगातार बढ़ रही हैं। इन्हीं महत्वाकांक्षाओं की आपूर्ति के लिए भ्रष्टाचार चरम पर है। साथ ही भ्रष्टाचारी की यह धारणा पक्की हो चुकी है कि उनकी अनैतिक गतिविधियों को पकड़ा नहीं जाएगा और वे चतुराई से जनता की कड़ी मेहनत से कमाई संपत्ति को हड़पते रहेंगे। इसलिए उन्हें ऐसा दण्ड दिए जाने की जरूरत है, जिससे उनके मन में डर पैदा हो कि जिस दिन वे पकड़े जाएंगे उस दिन भ्रष्ट साधनों से अर्जित संपत्ति दंडित किए जाने की तारीख से मूल्य सहित उनके पास से वापस चली जाएगी। साथ ही उसकी पत्नी व बच्चों को भी सजा हो सकती है। प्रमोद भार्गव
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