स्वामी चिद्भवानन्द जी चेन्नै में रामकृष्ण मिशन के संन्यासी थे। प्रारम्भ में संघ के बारे में उनकी अच्छी धारणा नहीं थी, किन्तु उन्होंने मई, 1980 के संघ शिक्षा वर्ग, चेन्नै के समापन समारोह में अपनी धारणा में सुधार करते हुए यह उद्गार प्रकट किया, 'हे युवको! तुम सब सौभाग्यशाली हो, क्योंकि तुम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविर में जो प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हो यह बिल्कुल वही है जिसकी स्वामी विवेकानन्द ने मानव-निर्माण के लिए तथा प्रत्येक व्यक्ति में सच्चरित्रता, अनुशासन, देश तथा देशवासी के प्रति प्रेम के संचार के लिए संकल्पना की थी।' आगे उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास हो गया है कि स्वामी जी की व्यक्ति-निर्माण की योजना को संघ साकार रूप दे रहा है। यह स्वामी जी का कार्य है, ईश्वरीय कार्य है।
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स्वामी चिद्भवानन्द जी चेन्नै में रामकृष्ण मिशन के संन्यासी थे। प्रारम्भ में संघ के बारे में उनकी अच्छी धारणा नहीं थी, किन्तु उन्होंने मई, 1980 के संघ शिक्षा वर्ग, चेन्नै के समापन समारोह में अपनी धारणा में सुधार करते हुए यह उद्गार प्रकट किया, 'हे युवको! तुम सब सौभाग्यशाली हो, क्योंकि तुम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविर में जो प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हो यह बिल्कुल वही है जिसकी स्वामी विवेकानन्द ने मानव-निर्माण के लिए तथा प्रत्येक व्यक्ति में सच्चरित्रता, अनुशासन, देश तथा देशवासी के प्रति प्रेम के संचार के लिए संकल्पना की थी।' आगे उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास हो गया है कि स्वामी जी की व्यक्ति-निर्माण की योजना को संघ साकार रूप दे रहा है। यह स्वामी जी का कार्य है, ईश्वरीय कार्य है।

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Mar 16, 2013, 12:00 am IST
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स्वामी जी के राष्ट्रीय पुनरुत्थान के विचारों का क्रियात्मक रूप है संघी

दिंनाक: 16 Mar 2013 14:23:33

स्वामी अखण्डानंद और गुरुजी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी रामकृष्ण मिशन से सीधे जुड़े हुए थे। उन्होंने संन्यास-दीक्षा स्वामी जी के प्रिय गुरु भाई स्वामी अखण्डानन्द जी से सन् 1937 में प्राप्त की थी। स्वामी जी अखण्डानन्द जी ने अपना जीवन सारगाछी में समाज के दीन, दुर्बल बन्धुओं की सेवा में लगाया। अपने गुरु की  महासमाधि के पश्चात् श्री गुरुजी नागपुर में पुन: डाक्टर जी के सम्पर्क में आये। तरुण भारत के सम्पादक श्री भाऊसाहब मडखोलकर ने श्री गुरुजी के देहावसान के पश्चात 5 जून, 1973 को लेख लिखा था। उस लेख में श्री मडखोलकर ने श्री गुरुजी के साक्षात्कार का उल्लेख करते हुए लिखा कि उनका झुकाव अध्यात्म और राष्ट्रीय पुनरुत्थान दोनों की ओर था। श्री गुरुजी ने सोचा कि मैं यह कार्य संघ द्वारा भी अच्छी तरह से कर सकता हूं। यह सब लिखने का तात्पर्य यह है कि स्वामी जी का कार्य ही पूर्णतया संघ का कार्य है। 
स्वामी जी मतान्तरण के घोर विरोधी थे। उनका कहना था 'किसी एक व्यक्ति के हिन्दू-समाज को त्याग देने पर इस समाज का केवल एक व्यक्ति कम नहीं हो जाता, बल्कि उसके शत्रुओं की संख्या में एक की वृद्धि हो जाती है।' एक सम्पादक ने स्वामी जी से पूछा 'जो भाई मतान्तरित हो गये हैं, क्या उनको फिर से हिन्दू- धर्म में लाया जाना चाहिये?़' स्वामी जी बोले-अवश्य! उनको अवश्य लाया जा सकता है और लाना भी चाहिये। श्री गुरुजी का सन् 1956 के भाषण का सारांश भी यही था कि जो भाई हमसे बिछुड़कर ईसाई या मुसलमान बन गये हैं, उनको अपने धर्म में लाना चाहिये। श्री गुरुजी के आह्वान पर संघ के कार्यकर्त्ता वनवासी क्षेत्र में सेवा, समर्पण और स्नेह के आधार पर कार्य करके बिछुड़े बन्धुओं को घर वापस लाये। सन् 1981 में मीनाक्षीपुरम् में मुस्लिमों द्वारा कराये गये सामूहिक मतान्तरण ने हिन्दू समाज के मानस को झकझोर दिया। इसके विरोध में संघ के स्वयंसेवकों ने हिन्दू पुनर्जागरण का कार्य चलाया। तमिलनाडू में दो हजार सभाएं की गयी और उनमें मतान्तरण के खतरों पर प्रकाश डाला गया।
श्री गुरुजी की प्रेरणा से सन् 1952 में श्री बालासाहेब देशपाण्डे ने जसपुर में एक छात्रावास तथा स्कूल खोलकर वनवासी क्षेत्र मे सेवा-कार्य प्रारम्भ किया। आज वनवासी क्षेत्र में चौदह हजार सेवा प्रकल्प चल रहे हैं। यह स्वामी जी के विचारों का ही मूर्तरूप है। ऐसे असंख्य साक्ष्य हैं जब संघ के स्वयंसेवक राष्ट्रीय-आपदा के समय, रक्षा कार्यों में सदैव अग्रणी रहे। 1966 में बिहार का अकाल, 1977 में आन्ध्र का तूफान, 1984 में भोपाल गैस कांड- इन सब त्रासदियों में स्वयंसेवकों ने सेवा-कार्य का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। संघ के स्वयंसेवकों ने स्वामी जी के 'नर सेवा-नारायण सेवा, जीव सेवा-शिव सेवा के आदर्श को व्यवहार में लाकर दिखाया। संघ के स्वयंसेवक, समाज के प्रत्येक क्षेत्र में, राष्ट्रीय पुनरुत्थान के प्रत्येक कार्य में अनवरत संलग्न रहे हैं। गत सत्तासी वर्ष की सुदीर्घ विकास यात्रा में लक्षावधि स्वयंसेवक लोक-कल्याण और राष्ट्र-निर्माण के पुनीत सेवा-कार्यों में निरन्तर निष्ठापूर्वक निष्काम भाव से जुटे रहे हैं और राष्ट्र-वंदना के अनूठे उदाहरण प्रस्तुत करते रहे हैं।

दर्शन वही, कार्य सही

स्वामी जी के विचार-दर्शन की गंगा को धरातल पर लाने वाले इस युग के भागीरथ डाक्टर हेडगेवार थे। विवेकानन्द सार्द्ध शती समारोह एक ऐतिहासिक अवसर है जो भारत को ही नहीं, समूचे विश्व को नया मोड़ देगा। केवल हिन्दुत्व ही वह संजीवनी है जो मानवता के संताप का परिहार कर सकती है। डाक्टर जी तथा श्री गुरुजी ने स्वामी जी की भाव-धारा को संजोकर हिन्दू-राष्ट्र की सुप्त शक्ति को जगाया। सार्द्ध शती समारोह के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज को साथ लेकर उत्साहपूर्वक जुटा है।  स्वामी जी के राष्ट्रीय पुनरुत्थान के विचारों का क्रियात्मक रूप ही संघ है। स्वामी जी युगान्तरकारी महापुरुष थे, जिन्होंने भारतीय इतिहास की दिशा को मोड़ दिया। भगिनी निवेदिता ने कहा था,  'श्री रामकृष्ण देव प्राचीन भारत के पांंच सौ वर्ष का प्रतिनिधत्व करते थे, और स्वामी जी आने वाले भारत के तीन सौ वर्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं।' स्वामी जी की युवाओं से बहुत अपेक्षाएं थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ युवाओं के आन्दोलन का संगठन है। संघ के वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत अपने व्याख्यानों में कहते हैं कि युवा-शक्ति ही भारत की दिशा और दशा को नया मोड़ देगी।  भारत के भविष्य-निर्माण का समय आ गया है। संघ स्वामी जी के कार्यों को पूर्ण करेगा। यह सार्द्ध शती राष्ट्र में नव-चैतन्य का संचरण करेगी। भारत माता पुन: अपने गौरव मंडित उच्च-शिखर पर अधिष्ठित होगी। स्वामी जी अपने जीवन के अंतिम काल में कह गये थे कि मैं नश्वर शरीर को त्यागने के बाद भी निरन्तर कार्य करता जाऊंगा। स्वामी जी संघ रूप में हमारे बीच में हैं और हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं।
इस समय चारो ओर घोर अन्धकार छाया हुआ है। परन्तु विशास है कि स्वर्णिम प्रभात शीघ्र आने वाला है। अब  भारत को विश्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। यह भारत की नियति है। भारत ही विश्व को नया मोड़ देने में सक्षम है। आसुरी शक्तियों का पराभव होने वाला है और शीघ्र ही नवयुग के सूर्य का उदय होगा। स्वामी विवेकानन्द का जो स्वप्न था, वह संघ-शक्ति के द्वारा साकार होगा
सीताराम व्यास

स्वामी जी के राष्ट्रीय पुनरुत्थान के विचारों का क्रियात्मक रूप है संघी

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