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जब देश के गृहमंत्री ही पाकिस्तानी आतंकवादी हाफिज सईद को 'साहब' कह रहे हों और कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह 'ओसामा जी', तो फिर अलगाववादी रुख रखने वाले कश्मीर के नेता क्यों पीछे रहें? इसीलिए तो जम्मू कश्मीर विधानसभा में पिछले दिनों एक दुर्दांत आतंकी के लिए सम्मानजनक संबोधन देने में कुछ राजनीतिक दल अलगाववादी नेताओं से भी आगे निकल गए। संसद भवन पर हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के बाद से जम्मू-कश्मीर में जो हंगामा हो रहा है, वह अभी तक थमा नहीं है। आतंकी अफजल के शव को सम्मानपूर्वक घाटी लाने की मांग तो हो ही रही है, सदन में उसकी चर्चा करते समय अफजल 'साहब' और 'गुरुजी' का सम्बोधन भी सुनाई दिया। विपक्षी दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट की नेता महबूबा मुफ्ती की बात छोड़िए, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और विधानसभा अध्यक्ष मुबारक गुल भी 'अफजल साहब' कह रहे थे। अफजल को कश्मीर के लिए शहादत देने वाला बताने की होड़ में ये राजनीतिक दल इस हद तक चले गए कि सदन में कहा गया- 'गुरु जी को बचाने की कोशिश कामयाब नहीं हो सकी। जबकि नेशनल कांफ्रेंस 'सेंटर' में कांग्रेस के साथ है।' कांफ्रेंस ने कहा कि 'आप (पीडीपी) भी कभी कांग्रेस के साथ थे, तब 'गुरुजी' को क्यों नहीं बचाया?' पर वक्त-वक्त पर इन दोनों दलों का साथ लेने वाली, केन्द्र में फारुख अब्दुल्ला को मंत्री बनाने वाली कांग्रेस के सभी विधानसभा सदस्य मौन धारण किए रहे। हां, भाजपा के सदस्यों ने जरूर विरोध दर्ज कराया कि एक आतंकी को 'साहब' न कहा जाए और यह शब्द सदन की कार्यवाही से बाहर निकाला जाए। क्योंकि लोकतंत्र के मंदिर पर हमला करने वालों को यदि सम्मान दिया जाएगा तो अलगाववाद और आतंकवाद की सोच को कभी समाप्त नहीं किया जा सकेगा, बल्कि इससे प्रोत्साहन ही मिलेगा। जम्मू कश्मीर-विशेष प्रतिनिधि
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