पाकिस्तान के हमदर्द हेगल?
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पाकिस्तान के हमदर्द हेगल?

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Mar 2, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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नए अमरीकी रक्षा मंत्री की दिशा को लेकर ऊहापोह

दिंनाक: 02 Mar 2013 13:48:06

आलोकगोस्वामी

अब अमरीकी रक्षामंत्री हेगल ने 2011 में कहा था-

अफगानिस्तान में दूसरा मोर्चा खोले है भारत

अमरीका का ओबामा प्रशासन भले भारत से दोस्ती बढ़ाने की तमन्नाएं पाले हो, लेकिन उसके नए रक्षा मंत्री चक हेगल की सोच में धुंधलका किस कदर हावी है, इसका हल्का सा आभास उनके उस बयान से हो जाता है जो उन्होंने ओकलाहामा के कैमरन विश्वविद्यालय में साल 2011 में दिया था। उनके रक्षा मंत्री बनने से ठीक पहले इंटरनेट पर जारी हुआ हेगल का वह बयान था-'भारत कुछ समय से अफगानिस्तान को दूसरे मोर्चे की तरह इस्तेमाल कर रहा है। अफगानिस्तान की तरफ से पाकिस्तान के लिए मुसीबतें खड़ी करने में भारत ने पैसा लगाया है।' पुराने रिपब्लिकन हेगल ने पाकिस्तान को जैसे पुचकारा था और अमरीका पर जिहादी हमला करने वाले अल कायदा के सरगना को अपने यहां छुपाए रखने वाले उस मुल्क की पीठ थपथपायी थी। इस बयान से यह भी साफ हुआ कि अमरीकी सत्ता गलियारों में पाकिस्तान समर्थक कॉकस किस कदर हरकत में है।

भारत में हेगल के उस बयान पर बावेला मचना ही था। भाजपा ने मनमोहन सरकार से मांग की कि वाशिंगटन पर दबाव बनाकर हेगल के बयान को बेशर्त वापस लेने को कहें। लेकिन सरकार ने खास हिलडुल नहीं की। सिर्फ वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास ने तड़ से बयान जारी कर दिया कि सीनेटर हेगल का बताया जा रहा बयान असलियत से परे है। भारत अफगानी लोगों की भलाई के प्रति पूरी तरह समर्पित रहा है।

वैसे हेगल का बयान ओबामा प्रशासन ने उस नजरिए से उलट है जिसके तहत वह हमेशा से अफगानिस्तान के विकास में भारत की भूमिका की तारीफें करता रहा है। शायद यही वजह थी कि हेगल के उस बयान से पल्ला झाड़ने में नई दिल्ली स्थित अमरीकी दूतावास ने भी देरी नहीं की। उसने बयान जारी करके कहा कि अमरीकी सरकार ने खुद को उन विचारों से अलग कर लिया है जो ऐसा लगता है 2011 में चक हेगल के रहे थे। दूतावास ने दोहराया कि भारत अफगानिस्तान में अहम सहयोगी है और अमरीका अफगानिस्तान में भारत की सकारात्मक भूमिका का पुख्ता तौर पर समर्थन करता है। लेकिन भारत के विश्लेषकों के दिमाग में यह सवाल तिरने लगा है कि (2011 वाली सोच के) हेगल भारत-पाकिस्तान और बड़े रूप में दक्षिण एशियाई मसलों में क्या रुख दिखाने वाले हैं। आने वाले वक्त में हेगल के बयानों को और बारीकी से परखा जाएगा, इसमें कोई शक नहीं है।

बड़बोले उत्तर कोरिया ने चेताया

अमरीका तक पहुंच सकते हैं परमाणु हथियार

उत्तर कोरिया की अधिकृत वेबसाइट उरिमिनजोकीरी पर जारी लेख के हवाले से 27 फरवरी को उत्तर कोरिया ने अमरीका को लगभग चेतावनी के लहजे में कहा है कि अमरीकी धरती उसके परमाणु हथियारों के दायरे में है। उसकी सरकारी प्रचार इकाई के एक सदस्य ने उत्तर कोरिया को राकेट और परमाणु हथियारों से लैस देश बताया। अक्तूबर 2012 में भी प्योंगयोंग ने अमरीका को सावधान किया था कि उसके पास अमरीका पर चोट करने वाले राकेट हैं। उस वक्त इस धमकी को उत्तर कोरिया का बड़बोलापन कहकर हल्के में लिया गया था, लेकिन फौरन बाद ही दिसम्बर में प्योंगयोंग ने लंबी दूरी तक मार करने वाले राकेट के सफल परीक्षण और अभी 12 फरवरी को परमाणु परीक्षण करके अपने खतरनाक इरादों को जाहिर कर दिया है। उसके परमाणु परीक्षण से दुनिया में शांति के कसीदे पढ़ने वाले विश्लेषक खासे चौंके हुए हैं, क्योंकि उस परीक्षण से साफ हो गया था कि उत्तर कोरिया लंबी दूरी की मिसाइल पर छोटे आकार के परमाणु हथियार चस्पां करने की तकनीक में धार ला रहा है। दिसम्बर के राकेट परीक्षण के कचरे की पड़ताल करके दक्षिण कोरिया की फौज ने अंदाजा लगाया है कि उसकी मार का अनुमानित दायरा 10 हजार किलोमीटर हो सकता है जो अमरीका के पश्चिमी तट को छूता है।

उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन यूं भी अमरीका और दक्षिण कोरिया के संयुक्त सैन्य अभ्यास से चिढ़े बैठे हैं। इसी के संदर्भ में 'कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी' ने आगाह भी किया कि कोरियाई प्रायद्वीप 'विस्फोट से बस इंच भर की दूरी' पर है।

नोबुल पदक की नीलामी!

डीएनए खोजने वाले डा.क्रिक को 1962 में मिला था पदक

नोबुल सम्मान के 70 साला इतिहास में पहली बार कोई नोबुल पदक नीलाम होने जा रहा है। डीएनए (डीओक्सी-राइबोज न्यूक्लिक एसिड) यानी जीव के गुण सूत्रों की बनावट खोजने वाले डा. फ्रांसिस क्रिक को यह पदक 1962 में दिया गया था। पिछले 50 साल से क्रिक परिवार की हिफाजत में रहा यह पदक किसी संग्रहालय या किसी ऐसे संस्थान को सौंपा जाएगा जहां इसे सभी लोग देख सकें। क्रिक परिवार मानता है कि इससे अगली पीढ़ी के वैज्ञानिकों को प्रेरणा मिलेगी। इससे मिलने वाली राशि का हिस्सा लंदन के फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट में अनुसंधान में लगाया जाएगा जो 2015 में पूरा होना है। इस पैसे से दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारियों के इलाजों की खोज होगी। न्यूयार्क में 10 अप्रैल को यह नोबुल पदक नीलाम करने वाली 'हैरिटेज आक्शन' कंपनी की मानें तो 250,000 डालर से बोली शुरू होने की उम्मीद है। सोने के इस पदक पर डा. फ्रांसिस क्रिक का नाम अंकित है।

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