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कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उस जख्म को एक बार फिर कुरेद कर हरा कर दिया, जो उनकी सासू मां श्रीमती इंदिरा गांधी ने दिया था। अवसर था अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के 60वें दीक्षांत समारोह का और सोनिया गांधी उस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं। गत 16 फरवरी को उन्हें अलीगढ़ जाना था, पर मौसम खराब होने के कारण 10 जनपथ से ही 'आडियो कांफ्रेंसिंग' के जरिये उन्होंने छात्रों को सम्बोधित किया। इस दौरान एक तरफ उन्होंने कहा कि सर सैयद अहमद खां द्वारा स्थापित यह विश्वविद्यालय पूरे देश में 'धर्मनिरपेक्षता' का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि सर सैयद की सोच 'धर्मनिरपेक्ष' थी। वहीं दूसरी तरफ बोलीं कि भले इस विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिए जाने का मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हो, पर विश्वास दिलाती हूं कि इसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिलाने की पूरी कोशिश करूंगी।
तो देश एक बार फिर तैयार रहे सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को संसद में संख्या बल से पलटता देखने के लिए, जैसे सोनिया के पति (स्व.) राजीव गांधी ने शाहबानो के मामले में किया था। यहां इंदिरा खानदान की चर्चा इसलिए, क्योंकि सोनिया ने अपने सम्बोधन में यह भी कहा- 'इस संस्थान से हमारे खानदान का गहरा नाता है।' हो भी क्यों नहीं? विश्वविद्यालय एक्ट-1920 के अन्तर्गत स्थापित इस विश्वविद्यालय को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की अवहेलना कर अल्पसंख्यक संस्थान बनाने की पहल 1981 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने तब की थी जब आपातकाल के बाद वे दोबारा सत्तारूढ़ हुई थीं और मुस्लिम वोट बैंक को भविष्य के लिए पक्का कर लेना चाहती थीं। जबकि इससे पूर्व अनेक याचिकाओं को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने 1968 में ही स्पष्ट कर दिया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। मुख्य न्यायाधीश के.एन. वानछू की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति आर.एस. वछावत, न्यायमूर्ति वी. रामास्वामी, न्यायमूर्ति जी.एस. मित्तर और न्यायमूर्ति के.एस. हेगड़े की खण्डपीठ ने अपने निर्णय में साफ लिखा- 'अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय संविधान की घारा 30(1) के अन्तर्गत नहीं आता। न तो यह विश्वविद्यालय मुस्लिमों द्वारा स्थापित है और न ही इसके प्रशासन पर उनका अधिकार है।' पर वोट बैंक की राजनीति और मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते 1981 में श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के उक्त निर्णय को ताक पर रखकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक्ट-1920 में संशोधन कर वह सब लिखवा दिया जिससे इसे 'मुस्लिमों द्वारा स्थापित और मुस्लिमों द्वारा संचालित' मान लिया जाए।
1981 में किया गया यह संशोधन संविधान की मूल भावना के विरुद्ध तो था ही, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना भी था। पर उसी आधार पर मुस्लिम हितों के पैरोकार अर्जुन सिंह ने मानव संसाधन विकास मंत्री रहते 19 मई, 2005 को एक आदेश जारी कर अ.मु. विश्वविद्यालय में एमबीए, एम.टेक, एमडी, एमएड, एमसीए जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों सहित कुल 36 परास्नातक विषयों के 50 प्रतिशत स्थान मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षित कर दिए। यह भी संविधान और अ.मु. विश्वविद्यालय एक्ट-1920 के विरुद्ध था। हल्ला मचा, विरोध हुआ और मामला सर्वोच्च न्यायालय में है। पर अगले वर्ष (2014) संभावित लोकसभा चुनावों में मुस्लिम वोट बैंक की दरकार कांग्रेस और उसकी अध्यक्षा को बहुत शिद्दत से महसूस हो रही है। इसीलिए उन्होंने अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिलाने का जुमला एक बार फिर हवा में उछाल दिया है। जितेन्द्र तिवारी
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