सोनिया कांग्रेस बनाम पवार कांग्रेस
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महाराष्ट्र द. बा. आंबुलकर
कांग्रेस के नए उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा जयपुर सम्मेलन में पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर सशक्त बनाने की हुंकार से देशभर के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में जोश पैदा हुआ। ऐसे में महाराष्ट्र में आने वाले चुनाव अपने बलबूते पर लड़ने के कांग्रेसियों के ऐलान से कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस गठबंधन की वर्तमान सरकार के साथ भविष्य भी खटाई में पड़ता दिख रहा है। हालांकि महाराष्ट्र के कांग्रेसी अच्छी तरह जानते हैं कि उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस के सहयोग से जैसे-तैसे राज्य में सरकार भले बना ली हो, अपने बलबूते पर चुनाव लड़ना और सरकार बनाना असंभव है। इतिहास बताता है कि कांग्रेस ने कभी श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में ही महाराष्ट्र में अपने बल पर चुनाव लड़कर सत्ता हासिल की थी। तब से अब तक राज्य की राजनीति में कई बदलाव आए हैं। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार ने सोनिया गांधी की विदेशी नागरिकता के मुद्दे पर पार्टी तोड़ी और राष्ट्रवादी कांग्रेस का गठन किया। हालांकि 1995 में महाराष्ट्र में पहली बार भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार बनने के बाद सन् 2000 में उसकी पुनरावृत्ति रोकने के लिए दोनों कांग्रेस में गठबंधन की मजबूरी हो गई, पर इन दोनों दलों में आपसी तालमेल न के बराबर ही रहा।
जहां तक कांग्रेस द्वारा अपने बलबूते पर चुनाव लड़ने का सवाल है, सन् 2004 में विलासराव देशमुख के मुख्यमंत्रित्व काल में तथा उसके बाद अशोक चव्हाण के काल में भी इसी प्रकार की राजनीतिक पहल की गयी थी, जो विफल रही। उस स्थिति में आज तक कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है। वर्तमान मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की छवि साफ-सुधरी है, पर मात्र यह चुनावी सफलता के लिए पर्याप्त नहीं होता। इस बीच कांग्रेस द्वारा राहुल गांधी की ताजपोशी पर राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार ने कटाक्ष कर दिया कि, 'उनके दल के लिए यह नौबत नहीं आयी है कि वे अपनी सांसद पुत्री (सुप्रिया सुले) को दल की कमान सौंप दें।' शरद पवार का सीधा-सा संदेश है कि उन्हें राहुल का नेतृत्व कतई स्वीकार नहीं होगा। पर शरद पवार तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस की राजनीतिक मजबूरी है कि वे कांग्रेस का हाथ पकड़े रहें। क्योंकि जहां एक ओर उनका दल महाराष्ट्र, उसमें भी पश्चिमी महाराष्ट्र के चीनी संभाग तक सिमट कर रह गया है, वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस के शीर्ष नेता तथा उपमुख्यमंत्री अजित पवार, पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल, सिंचाई मंत्री सुनील तटकरे, गृहनिर्माण राज्यमंत्री गुलाबराव देवकरे आदि ऐसे मंत्री है जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं और जनता में उनकी छवि बहुत खराब है। यही बात राष्ट्रवादी कांग्रेस के लिए चिंता का सबब है, क्योंकि ऐसे दागी मंत्रियों के होते वे राज्य में अकेले क्या कर पाएंगे?
इस राजनीतिक कशमकश के बीच एक गैरजिम्मेदारना टिप्पणी से आग में घी डालने का काम किया उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने। उन्होंने कहा, ' पहले हमारा लक्ष्य कांग्रेस के साथ गठजोड़ कर राज्य विधानसभा की 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का था, पर बदलते परिप्रेक्ष्य में हमने सीटों का आंकड़ा बढ़ाते हुए 288 कर दिया है।' यानी राष्ट्रवादी कांग्रेस अब राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की कोशिश करेगी। इस जोश भरे वक्तव्य के पीछे अजित पवार की मंशा साफ है कि वे कांग्रेस को तो चुनौती दे ही रहे हैं, अपने चाचा शरद पवार को भी बता रहे हैं कि पार्टी की जिम्मेदारी संभालने की समझ पुत्री (सुप्रिया सुले) से ज्यादा भतीजे (अजीत पवार) में है। पवार कांग्रेस की इस कशमकश का लाभ उठाने की कोशिश में सोनिया कांग्रेस अकेले लड़ने का मन तो बना रही है, पर उसे भी भाजपा-शिवसेना गठबंधन का भय सता रहा है।
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