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संप्रग-2 के कार्यकाल को खत्म होने में लगभग तेरह महीने बचे हैं। लेकिन घोटाले दर घोटाले होने से इसकी चूलें चरमराते हुए अब नाजुक स्थिति में पहुंच गयी हैं। राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, 2 जी आबंटन घोटाला, आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाला, कोयला खदान घोटाला। घोटालों की इस सरकार ने तो रक्षा क्षेत्र में भी घोटाले करके देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने में कोई कसर नहीं उठाई। तब राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में बोफर्स तोप घोटाला चर्चित हुआ था जिसके तार क्वात्रोकी यानी इटली से जुड़े थे। अब सोनिया गांधी की अगुआई वाली मनमोहन सिंह सरकार ने अगस्ता हेलीकॉप्टर सौदे में घोटाला करके एक बार फिर इटली की संलिप्तता जाहिर कर दी है। बोफर्स का भूत छूटे नहीं छूट रहा है।
बाकी घोटालों से अलग, फिलहाल हम रक्षा सौदों की बात करें तो 1960 और 1970 के दशक में तत्कालीन सोवियत संघ से भारत के आयुध भंडार के लगभग 70 प्रतिशत हथियार खरीदे गए थे। समय के साथ 1990 में वे हथियार सेवा से बाहर होने की स्थिति में आ गए। लेकिन '90 के दौर में भारत की अर्थव्यवस्था डावांडोल थी, दिवालिएपन की स्थिति थी। ऐसे में सशस्त्र सेनाओं को सरकार की ओर से कहा गया कि नये हथियार अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने के बाद खरीदे जाएंगे। इस बात को लगभग दो दशक बीत गए, अब अर्थव्यवस्था पटरी पर आई तो रक्षा सौदों में एक के बाद एक घोटालों ने हथियारों की खरीद पर एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। हथियारों की आमद जैसे रुक गई है।
हथियारों की खरीद होगी बाधित
भारत के सामने इस समय चीन से सबसे बड़ा खतरा दिखाई दे रहा है। चीन के रक्षा बजट की बात करें तो पिछले साल उसका रक्षा बजट 180 अरब डॉलर का था, जबकि भारत का रक्षा बजट 42 अरब डॉलर का था। कहने का अर्थ है कि चीन हर वर्ष हथियारों पर हमसे तीन-चार गुना ज्यादा खर्च कर रहा है। इसमें दो राय नहीं है कि पाकिस्तान की फौज भी चीन और अमरीका की मदद से एक से एक नये हथियारों से लैस हो रही है। ऐसे में भारत अगर हथियारों के मामले में पिछड़ता है तो यह खतरे से खाली नहीं है। इस परिदृश्य में सामने आया अगस्ता हेलीकॉप्टर खरीद घोटाला। इस घोटाले की खबर ने हमारे हथियारों की खरीद पर जैसे अचानक 'ब्रेक' लगा दी हो। हथियारों की खरीद में अब देरी होना देश को बहुत भारी पड़ सकता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस घोटाले के तार सीधे इटली से जुड़े हैं, जिसकी जांच एजेंसियों ने यह खुलासा किया कि इस सौदे में 362 करोड़ रुपये की रिश्वत दी गई है।
इस हेलीकॉप्टर सौदे पर बारीक नजर डालें तो पता चलता है कि यह पूरा सौदा 3600 करोड़ रुपये का था। इसमें से 362 करोड़ रुपये यानी कुल सौदे की राशि का दस प्रतिशत हिस्सा घूस के तौर पर दिया गया है। यह असाधारण है, क्योंकि दुनिया भर में ऐसे सौदों में आमतौर पर 2-3 प्रतिशत रकम घूस के तौर पर इस हाथ से उस हाथ जाती है। लेकिन मामला इटली का है शायद इसलिए इस सौदे में 10 प्रतिशत की रिश्वत अपने आप में चौंकाने वाली बात है। इससे संदेह होता है कि कहीं इटली की कंपनियां भारतवर्ष को अपनी मिल्कियत तो नहीं समझने लगी हैं? इस दस प्रतिशत घूस की राशि से एक काफी बड़ा हिस्सा इटली के राजनीतिक नेताओं को पहुंचाया गया। उल्लेखनीय है कि इटली की फिनमैकेनिका कंपनी में 30 प्रतिशत हिस्सेदारी इटली सरकार की है। फिनमैकेनिका कंपनी का प्रमुख बनने के लिए ओर्सी ने इटली में भी पैसे बांटे। इटली सरकार ने जांच की। उसी जांच में वह लगभग सारा दोष भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल एस.पी.त्यागी के सिर मढ़ रही है। यह अपने आप में एक संदेह पैदा करता है। क्या वायुसेना प्रमुख पर इस तरह के आरोप थोपकर कुछ नेताओं और रक्षा मंत्रालय के कुछ संदिग्ध तत्वों को बचाने की कोशिश की जा रही है?
असली दोषियों की जांच हो
जो लोग रक्षा सौदों की हमारी प्रणाली से परिचित हैं, वे जानते हैं कि सेना के मुख्यालयों और सेना प्रमुखों की इसमें ज्यादा भूमिका नहीं होती। उनका दखल बहुत सीमित होता है। आयुधों की कीमत पर बातचीत या कहें सौदा वगैरह रक्षा मंत्रालय करता है। बताया जा रहा है कि हेलीकॉप्टर खरीद में दस प्रतिशत हिस्सा घूस में दिया गया है। इससे साफ जाहिर है कि मंत्रालय में कीमतों पर चर्चा करने वाली समिति सौदे की कीमत में बढ़ोत्तरी के लिए जिम्मेदार है। लेकिन यह भी साफ है कि मंत्रालय के अफसर इस तरह की हिम्मत राजनीतिक शह के बिना नहीं दिखा सकते इसलिए इस मामले की गहराई से होने वाली जांच कई चौंकाने वाले नतीजे उजागर कर सकती है। हां, इसमें सरकार की पूरी तह तक जाने की इच्छा जरूर होनी चाहिए। इस पूरी तहकीकात में एक साल से ज्यादा की देर कई सारे सवाल पैदा करती है। इटली से जवाब का इंतजार करना सिर्फ एक बहाने जैसा प्रतीक होता है। तथ्य यह है कि हर रक्षा सौदे के संदर्भ में एक आचरण संहिता होती है, जिसके तहत कोई मंत्रालय सौदे को रद्द कर सकता है, दंड लगा सकता है और दोषी कंपनी के सभी खातों की जांच कर सकता है। हम यह सब प्रक्रिया एक साल पहले कर सकते थे। लेकिन एक साल की देरी किए जाने से यह संदेह पैदा होता है कि कुछ पहुंच वाले लोगों को बचाने और पूरा आरोप पूर्व वायुसेनाध्यक्ष पर मढ़ देने की कोशिश की जा रही है। इसकी जितनी निंदा की जाए कम है। रक्षा सौदों में इस तरह की बातों का आना निस्संदेह दुखद है। इससे हमारी रक्षा तैयारियों पर विपरीत असर पड़ सकता है। जैसा पहले बताया, हमारे हथियारों के खरीद की प्रक्रिया दस- पन्द्रह साल पीछे चल रही है। इस अगस्ता कांड के बाद तो रक्षा सौदों में एक बड़ा अवरोध आ जाने का अंदेशा है, जो हमारे देश की रक्षा तैयारियों के लिए महंगा पड़ सकता है। अंत में सिर्फ एक सवाल-हम किसका हित चाहते हैं-अपना या चीन और पाकिस्तान का?
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