स्वामी विवेकानंद सार्द्ध शती पर विशेष-डा.वागीश दिनकर
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स्वामी विवेकानंद सार्द्ध शती पर विशेष-डा.वागीश दिनकर

by
Feb 9, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Feb 2013 16:25:06

 

यों वरद् सपूतों ने यश से रोचित कीं अगणित राकाएं

युग–युग से इसके शूरों की फहरी है शौर्य पताकाएं।

यह धरती मेरी माता है मैं इसका सुत यह कहकर नर

युग–युग से गौरव मान रहे चरणों की रज मस्तक पर धर।।1।।

लेकिन मेरी भारत मां ने जैसे विरले सुत जाये हैं

इतिहास साक्षी है उनकी समता न अन्य कर पाये हैं।

वह कौन देश वह कौन काल वह कौन जाति बोलो जग में

जिसने विवेक आनंद दिये निष्ठा थी जिनकी रग–रग में।।2।।

था दिव्यतेज उन्नत ललाट मृदुवाणी रूप सलोना था

वह विश्वनाथ भुवनेश्वरि की अनुरक्ति भक्ति का छोना था।

शिव की पूजा से प्रकट हुआ अंशावतंस शिव का भू पर

बलि–बलि जाती थी भुवनेश्वरि मां ललित लाड़ले के ऊपर।।3।।

जैसे लेकर अवतार देव धरती पर केलि किया करते

वैसे ही चंचल विले परिजनों को मुद मोद दिया करते।

माता से रामायण सीखी गीता का भी गुरु ज्ञान गहा

पौराणिक कथा कहानी से सिंचित शैशव के शौर्य रहा।।4।।

संकट में ईश्वर शरण गहो कब सच्चाई का यहां ठौर

परकीयों का सम्मान करो हो दृष्टि दुष्ट के प्रति कठोर।

मां के सम्मुख बहुधा आता था करके शंकर का श्रृंगार

मैं शिव हूं मैं शिव हूं मां से कहता बालक कोपीन धार।।5।।

वह खेल–खेल में ध्यान साधना में ऐसा लग जाता था

हो चकित कोबरा सांप स्वयं देख उलटे पैरों भग जाता था।

आंख बंद कर निश्छल मन से उसने गुरु से शिक्षा पाई

अचरज करते सब देख देख उसकी निष्ठा की अरुणाई।।6।।

सच क्या है यह जानने हेतु सत्यान्वेषण मजबूरी है

यह भले कठिन सा लगे किन्तु मित्रो! यह बहुत जरूरी है।

आत्मालोचन, एकाग्रचित्त, अभ्यास प्रगति की सीढ़ी है

जिसने अपनाया इसे सदा उसका यश गाती पीढ़ी है।।7।।

इस तरह तर्क की शक्ति बढ़ा बंगला अंग्रेजी ज्ञान लिया

संगीत पिताश्री से सीखा एफ.ए.,बी.ए.उत्तीर्ण किया।

अंग्रेजी में हो पारंगत शुचिता से भरा चरित्र रहा

वेदांत ज्ञान औ ब्रह्मचर्य उनका सदैव बन मित्र रहा।।8।।

ऐश्वर्य और धनधान्य आदि सांसारिक वैभव सब छोड़े

केवल भिक्षा से पेट भरा ईश्वर पाने को पग मोड़े।

इस बीच पिता ने प्राण तजे विपदा की घोर घटा छाई

लेकिन मां काली द्रवित हुई जो रामकृष्ण तक ले आयी।।9।।

श्री रामकृष्ण बोले नरेन्द्र! तुम गौरवेय अवतार प्रखर

मानवता की पीड़ा हरने हेतु अवतरित हुए हो धरती पर।

पहले शंकित से थे नरेन्द्र लेकिन आकर्षण भारी था

वह थे बलिहारी ईश्वर पर गुरु खुद उन पर बलिहारी था।।10।।

श्रीरामकृष्ण ने अंत समय उनको संन्यासी रूप दिया

मिल गया विवेकानंद नाम उनने जीवन भर जिसे जिया।

नर सेवा नारायण सेवा को जीवन में अपनाया था

बिन पैसे एक वस्त्र में ही भारत का गर्व जगाया था।।11।।

दुर्दशा देश जन की विलोक स्वामी का हृदय विदीर्ण हुआ

घनघोर अशिक्षा छूत अंध विश्वासों से मन शीर्ण हुआ।

रह तीन दिवस तक निराहार निष्कर्ष नया यह जान गये

धर्म से पूर्व है अन्न, स्वास्थ्य, शिक्षा आवश्यक मान गये।।12।।

भारत में तकनीकी वाला ज्ञान और विज्ञान बढ़े

हो टीम कार्यकर्त्ताओं की धन का भी कुछ कुछ रंग चढ़े।

इस बीच शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में सहभाग हेतु

मित्रों–शिष्यों से प्रेरित हो उत्साहित नृपगण बने सेतु।।13।।

बाधाएं तो आनी ही थीं उनको श्रीवर कर पार गये

देदीप्यमान मुख देख चकित श्रोता हो सात हजार गये।

मन में भारत का स्वाभिमान लेकर प्रवचन प्रारंभ किया

अमरीकावासी भाई–बहनों का सम्बोधन मंत्र दिया।।।14।।

इतना सुनते ही मंत्रमुग्ध श्रोता करतल ध्वनि कर बैठे

भावुक मन के घट में उनकी छवि का अमृत रस भर बैठे।

तार्किक उद्बोधन के बल पर स्वामी जी का वर्चस्व बढ़ा

हिन्दुत्व, धर्म की व्याख्या कर उनने नूतन इतिहास गढ़ा।।15।।

सब पंथों की जो जननी है जो विश्वपटल पर समीचीन

वह मेरी भारत माता है इसकी संस्कृति है युगयुगीन।

दुनिया के पीड़ित धर्मों को इसने ही था विश्वास दिया

जो हुए उपेक्षित अन्यों से उनने इस भू पर वास किया।।16।।

है धर्म एक पर पंथ विविध जो ईश्वर तक ले जाते हैं

निर्दिष्ट मार्ग पर चलकर हम अंत में कृष्ण को पाते हैं।

कुछ मिनटों के इस भाषण ने गौरवमय रंग बिखेरा था

मोहक ग्यारह भाषण देकर भावों का बना चितेरा था।।17।।

फिर क्या था प्रतिभा जाग गई विद्वत्ता ने पट खोले थे

चर्चा–वार्ता–अध्यात्म–योग ने सबके हृदय टटोले थे।

वापस आने पर स्वागत में भारत दिखलाई दिया खड़ा

संदेश दिया था जो अनुपम उसका सब पर था असर पड़ा।।18।।

बोले पचास वर्षों तक भारत को ही सब ईश्वर समझें

जन–जन की सेवा को ही अपना कर्तव्य प्रवर समझें।

मानव की सेवा करना ही वंदन अभिनंदन पूजा है

इस जीवन में इससे बढ़कर कोई भी काम न दूजा है।।19।।

हम बढ़ें विश्व कल्याण हेतु विषपायी के हम वंशज हैं

जिनने परार्थ है देह तजी उन ऋषियों के हम अंशज हैं।

गीता तो फिर भी पढ़ लेंगे पहले खेलें फुटबाल मित्र

इससे शरीर होगा बलिष्ठ युवकों का संवरेगा चरित्र।।20।।

हम बड़े बने हैं तो हमको बड़भाग निभाना ही होगा

जो आये अपनी शरण प्रेम पीयूष पिलाना ही होगा।

इस भांति दिव्य उद्बोधन दे जग के सिरमौर बने स्वामी

इनके सारे ही शिष्यों ने थे भरे वचन खायी हामी।।21।।

इस विश्व पटल पर केसरिया ध्वज के फर फर फहराने की

जो सदा सदा को सोया वह आध्यात्मिक भाव जगाने की।

फिर रामकृष्ण का मिशन बना खुद को ही उसमें लगा दिया

बोये बीजों की फसल देखने हित विदेश प्रस्थान किया।।22।।

लंदन होते न्यूयार्क गये कैलिफोर्निया उपदेश दिये

पेरिस, हंगरी, रुमान, मिश्र होकर कलकत्ता लौटे लिये।

बारह वर्षों की सेवा से वह तन कृश और निढाल हुआ

मधुमेह दमा के रोगों से घिर गये हाल बेहाल हुआ।।23।।

इस तरह व्याधि से ले समाधि प्रभु चरणों मध्य विलीन हुए

भगवान स्वयं लेने आये ये उनमें अंतर्लीन हुए।

जिस हेतु लिया अवतार यहां उसको सानंद निभाया था

विष पिया स्वयं, पर जीवन भर हमको मकरंद पिलाया था।।24।।

उठ बैठो, जागो और लक्ष्य पाओ पथ में विश्राम न लो

कह गये विवेकानंद पथिक अनपेक्षित कहीं विराम न लो।

अब उनकी सार्द्धशती पर हम उठ जाग खड़े होवें मिलकर

भारत फिर से भारत होवे हर अंध तमस हर ले 'दिनकर'।।25।।

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