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पिछले दिनों शाहरुख खान ने एक अमरीकी पत्रिका में प्रकाशित अपने लेख में भारत में मुसलमानों से भेदभाव का आरोप लगाया। जब विवाद बढ़ा तो उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है। हमें भारतीय होने पर गर्व है। किन्तु यहां सवाल उठता है कि शाहरुख के मन में इस तरह के विचार आए ही क्यों? ऐसा लगता है कि इस समय मुसलमानों के कुछ कथित रहनुमाओं ने आजादी की पूर्व वाली स्थिति का निर्माण करने का बीड़ा उठाया है। शायद इसी के तहत हैदराबाद के एक विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी ने सार्वजनिक रूप से जहरीला भाषण दिया। कुछ वर्ष पूर्व अभिनेता इमरान हाशमी ने भी कहा था कि मुसलमान होने की वजह से किसी हिन्दू सोसायटी में उन्हें घर नहीं मिलता है। हिन्दुओं पर ऐसे मिथ्या आरोप लगते हैं तो मन बड़ा दुखी होता है। जब तक भारतीय जनता उनको सिर–आंखों पर बैठाकर रखती है, तब तक तो वे सर्वजन की बात करते हैं लेकिन जैसे ही उनका करियर ढलान पर पहुंचता है, उन्हें अपने एवं अपने संप्रदाय के साथ भेदभाव नजर आने लगता है। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान अजहरुद्दीन, जब तक कप्तान रहे, प्रसन्न रहे लेकिन जैसे ही हेन्सी क्रोनिए के साथ मैच फिक्सिंग में उनकी संलिप्तता के प्रमाण सामने आए, उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि मुसलमान होने के कारण उन्हें फंसाया गया है। शाहरुख खान का भी करियर ढलान पर है। वे इसे पचा नहीं पा रहे हैं।
अपने क्षुद्र स्वार्थों में फंसे ये लोग उस देश और उस समुदाय पर अनर्गल आरोप लगा रहे हैं जिसने अपने हितों की बलि देकर इन्हें प्रोत्साहित किया है। क्या यह सत्य नहीं है कि मजहब के आधार पर देश के विभाजन के बाद भी भारत सरकार और बहुसंख्यक हिन्दू समाज ने भारत में रहने के इच्छुक 12 करोड़ मुसलमानों को सुरक्षा प्रदान की? आज भी भारत के मुसलमान जितना इस देश में सुरक्षित हैं, उतना विश्व के किसी भी देश में नहीं। जिन शाहरुख खान ने भारत में मुसलमानों के साथ भेदभाव की शिकायत की है, उन्हीं शाहरुख खान के कपड़े तक अमरीका के हवाई अड्डे पर सुरक्षा–जांच के नाम पर उतरवा दिए गए थे। फिर भी वे अमरीका जाने के लिए लालायित रहते हैं और जिस देश और समुदाय ने उन्हें 'सुपर स्टार' बनाया उसके खिलाफ अनर्गल प्रलाप करते हैं। जिस देश में राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर तीन–तीन मुसलमान चुने जा चुके हों, नौकरशाही से लेकर राजनीति, न्यायपालिका से लेकर कार्यपालिका के शीर्ष तक जिस संप्रदाय के सदस्य प्रतिष्ठित हो रहे हों, वहां यह आरोप लगाया जाता है कि मजहब के नाम पर मुसलमानों से भेदभाव किया जाता है। यह आश्चर्यजनक ही नहीं, अत्यन्त दुखद और शोचनीय भी है। तथ्य यह है कि संगठित वोट बैंक होने के कारण मुसलमानों को विशेषाधिकार प्राप्त है जो हिन्दू समुदाय या किसी अन्य अल्पसंख्यक संप्रदाय को प्राप्त नहीं है। उन्हें उनके मजहबी क्रिया–कलापों के लिए भी सरकारी खजाने से धन उपलब्ध कराया जाता है। हज यात्रा के लिए हजारों करोड़ रुपयों की सब्सिडी दी जाती है। हिन्दुओं के सभी बड़े मन्दिरों को सरकार ने अधिगृहीत कर रखा है, वहां के चढ़ावे पर भी सरकार का ही अधिकार है। लेकिन कोई भी मस्जिद सरकारी नियंत्रण में नहीं है। शुक्रवार की दोपहर में हर मुसलमान को सरकारी महकमों में दो घंटे की अघोषित छुट्टी नमाज पढ़ने के लिए दी जाती है। ऐसी सुविधा किसी अन्य मतावलंबी को नहीं मिलती। संविधान में संशोधन द्वारा 'हिन्दू कोड बिल' पारित करके हिन्दुओं के धार्मिक मामलों में खुला हस्तक्षेप किया जाता है लेकिन 'मुस्लिम पर्सनल ला' को छूआ भी नहीं जाता। भारत के अतिरिक्त विश्व के किस देश में मुसलमानों को ऐसी सुविधाएं सहज ही उपलब्ध हैं?
–विपिन किशोर सिन्हा
लेन-8सी, प्लाट नं.-78, महामनापुरी एक्स.,पो. बीएचयू, वाराणसी-221005
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