पूर्वी पाकिस्तान की राह पर बलूचिस्तान
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मुजफ्फर हुसैन
भारत-पाक सीमा पर चल रहे तनाव के बीच एक ऐसी घटना घटी है जो बहुत शीघ्र पाकिस्तान को पुन: विभाजित करने वाली सिद्ध हो सकती है। पाकिस्तान सरकार ने बलूचिस्तान की राज्य सरकार को भंग करके वहां 'गर्वनर राज' लागू कर दिया है। पिछले दिनों 120 शियाओं की हत्या के बाद यह कदम उठाया गया है। स्थानीय गर्वनर को यह भी अधिकार दे दिए गए हैं कि वे जब चाहें वहां सैनिक शासन की घोषणा कर सकते हैं। प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ का कहना है कि बलूचिस्तान की स्थिति अत्यंत गम्भीर है। बलूचिस्तान की समस्या ने पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान की नाक में दम कर रखा है। बलूच जनता अब आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए कटिबद्ध है। पाकिस्तान में आपातकाल जैसी स्थिति है। इस हालत में यह प्रश्न बड़ी तेजी से पूछा जाने लगा है कि क्या पाकिस्तान में 1971 का पुनरावर्तन होगा? 1971 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में जो परिस्थितियां पैदा हुई थीं वह बलूचिस्तान में तो नहीं लौटेंगी? भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उस समय पाकिस्तान को चेतावनी दी थी। लेकिन याह्या खान और जुल्फिकार अली भुट्टो ने एक बात नहीं सुनी। जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत ने ढाका पर आक्रमण कर तत्कालीन सरकार को आरोपों के कटघरे में खड़ा कर दिया। इस्लामाबाद से पूर्वी पाकिस्तान के लोग इस हद तक दु:खी हो गए थे कि उन्होंने भारत के नेतृत्व में एक नया देश बना लिया। पूर्वी पाकिस्तान की कहानी कहीं पाकिस्तान के बलूचिस्तान में तो नहीं दोहराई जाएगी? क्योंकि इन दिनों पाकिस्तान में शियाओं पर जो अत्याचार हो रहे हैं उससे वहां की जनता बुरी तरह से त्रस्त हो गई है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हमले होना एक साधारण बात है। पर अब तो पाकिस्तान में शियाओं का रहना भी कठिन हो गया है। शियाओं के इमामबाड़ों पर सुन्नी मुसलमानों के लगातार हमले होते रहते हैं। एस समय था कि पाकिस्तान की आबादी में 30 प्रतिशत शिया थे। लेकिन राजनीतिक दुश्मनी के कारण सैकड़ों शियाओं ने पाकिस्तान छोड़ दिया और वे अन्य देशों में जाकर बस गए। लेकिन अब दु:खी होकर वहां के स्थानीय शियाओं ने हथियार उठा लिए हैं। वे हर स्थान पर सुन्नियों का सामना करते हैं। कराची, सिंध, हैदराबाद, मीरपुर और सक्खर में उनकी बहुत बड़ी आबादी है। बलूचिस्तान में भी उनकी तादाद अच्छी है। लेकिन पिछले कुछ समय से बलूचिस्तान शियाओं की कत्लगाह बन गई है। सुन्नी मौलाना उन्हें मुसलमान मानते ही नहीं। उनके विरुद्ध फतवों की बौछार होती रहती है। पिछले दिनों इसी प्रकार के एक संघर्ष में 120 शियाओं की हत्या कर दी गई।
पाठकों को यह बता दें कि बलूचिस्तान क्षेत्रफल में पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है। लेकिन उसकी जनसंख्या सबसे कम है। वे वहां की जनजातियों में शुमार किए जाते हैं। उनकी भाषा फारसी है। इसका कारण यह है कि ब्लूची जनता का बहुत बड़ा भाग ईरानी संस्कृति से जुड़ा हुआ है। बलूचिस्तान के अनेक भाग समय-समय पर ईरान की सीमाओं से भी जुड़े रहे हैं। इसलिए पाक सत्ताधीशों को यह खतरा बना रहता है कि बलूचिस्तान के उत्तरी पश्चिमी भाग पर ईरान किसी भी समय कब्जा कर सकता है। सांस्कृतिक मेल-मिलाप होने से पाकिस्तान के सुन्नी मुस्लिम इसे अपने लिए खतरा मानते हैं। 2006 से ऐसे समाचार मिल रहे हैं कि ईरान किसी भी समय बलूचिस्तान पर हमला करके अपने में विलय कर सकता है। इसलिए थोड़ा सा भी संघर्ष होने पर पाक सेना सतर्क हो जाती है। दोनों के सांस्कृतिक और भाषायी रिश्ते पाकिस्तान के लिए बहुत बड़े खतरे के रूप में देखे जाते हैं। कराची बंदरगाह के पश्चात् बलूचिस्तान के दक्षिण में ग्वादर नामक बंदरगाह मिलता है। इस बंदरगाह पर अमरीका और रूस दोनों नजरें जमाए हुए हैं। रूस जब महाशक्ति के रूप में विद्यमान था उस समय इस बंदरगाह पर कब्जा करने की उसकी तीव्र इच्छा थी। क्योंकि अपने 6 मुस्लिम राज्यों को पार करने के पश्चात् उसके लिए यह पहला समुद्री द्वार था। अफगानिस्तान सहित इस सम्पूर्ण क्षेत्र में यह अकेला बंदरगाह होने से इसका भारी महत्व है। अफगानिस्तान पर कब्जा करने की इच्छा के पीछे अमरीका की भी यही मंशा थी। इसलिए पाकिस्तान किसी कीमत पर इस बंदरगाह पर किसी का कब्जा नहीं होने देगा। भविष्य में जब अफगानिस्तान में शांति स्थापित होगी तब अमरीका इसी बंदरगाह का यहां की खनिज सम्पदा को अपने देश तक ले जाने के लिए उपयोग कर सकता है। इस दृष्टि से बलूचिस्तान के इस समुद्री तट पर दुनिया की महाशक्तियों की नजर है।
ईरान और अमरीका
पाठक इस तथ्य से भली प्रकार अवगत हैं कि इन दिनों ईरान और अमरीका में तलवारें खिंची हुई हैं। इस्रायल किसी भी कीमत पर ईरान को परमाणु शक्ति बनने नहीं देना चाहता है। ईरान अपने परमाणु बम से इस्रायल को भयभीत करता है। यदि अब बलूचिस्तान ईरान के पास चला जाए तो उसके लिए और भी संकट पैदा हो जाएगा। सच बात तो यह है कि इस्लामी देश और पश्चिमी ब्लाक की भिड़ंत भविष्य में इसी स्थान पर हो सकती है। इस हालत में अमरीका और पाकिस्तान भला बलूचिस्तान को किसी प्रकार छोड़ सकते हैं। ईरान पूरी तरह शिया सम्प्रदाय का देश है। इतना ही नहीं, यह अकेला शिया देश है। इसलिए जब कभी शिया सुन्नियों में भिड़ं़त होती है तो बलूचिस्तान दोनों के लिए महत्व का भाग बन सकता है। यहां फारसी संस्कृति होने से ईरान को बहुत बड़ा बल मिलता है। पाकिस्तान सुन्नी देश है इसलिए समस्त अरब जगत के सुन्नी देश ईरान के विरुद्ध बलूचिस्चान को ही अपना युद्ध स्थल बनाएंगे। इसी प्रकार ईरान और पाकिस्तान के शिया इस भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाने के लिए इस प्रदेश को छोड़ने वाले नहीं हैं। संक्षेप में कहा जाए तो रूस, अमरीका अथवा शिया और सुन्नी दोनों अपने शक्ति केन्द्र के रूप में बलूचिस्तान का ही उपयोग करने वाले हैं। आज की स्थिति यह है कि बलूची शिया पाकिस्तान विरोधी हैं इसलिए ईरान का समर्थन लेकर वे अपनी ताकत को अधिक मजबूत कर सकते हैं। 2014 में जब अमरीका अफगानिस्तान को छोड़ देगा उस समय नाटो संधि के देश इस उलझन मे फंस जाएंगे कि वे एशिया के इस महत्वपूर्ण हिस्से पर अपनी पकड़ किस तरह से मजबूत बनाएं। अमरीका सहित इन देशों को यह विश्वास है कि पाकिस्तान इस मामले में नेक नीयती से काम नहीं करेगा। इससे भी बढ़कर सवाल यह है कि जब पाकिस्तान ही टूट जाएगा तो नए समीकरण बनेंगे। विश्व के बड़े राजनीतिज्ञ विशेषज्ञों का मत है कि एक समय केवल पंजाब में ही पाकिस्तान सीमित हो जाएगा। सिंध स्वतंत्र होकर भारत का भाग बनना चाहेगा। पाक अधिकृत कश्मीर सहित उत्तर के भाग को चीन हड़पने का प्रयास करेगा। लेकिन हर स्थिति में दुनिया की ताकतें बलूचिस्तान को एक स्वतंत्र देश रखना चाहेंगी। लेकिन ईरान अपनी सांस्कृतिक एवं मजहबी भूमिका में बलूचिस्तान को हर स्थिति में अपने साथ जोड़े रखने का प्रयास करेगा। इसलिए आज यह भाग, जिसकी पाकिस्तान ने हर मोर्चे पर अवहेलना की है, उसके लिए बहुत महंगा पड़ेगा।
अन्याय की सूची
बलूचिस्तान के साथ पाकिस्तान ने कैसा-कैसा अन्याय किया है उसकी लम्बी सूची है। पाकिस्तानी सेना के पूर्व सेनापति टिक्का खां ने बलूचों की सामूहिक हत्याएं की थीं। इसलिए आज भी वहां की जनता उन्हें 'बलूचों के कसाई' के नाम से याद करती है। बलूचों का अपहरण पाकिस्तान में एक सामान्य बात है। पिछले 38 वर्षों से उनकी जो हत्याएं चल रही हैं इस सम्बंध में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने पाक सरकार को फटकार लगाई है। न्यायालय ने यह भी कहा है कि पाक सरकार उन नेताओं के बारे में जानकारी दे जिनके लिए यह कहा जाता है कि वे लापता हैं। बलूच नेताओं ने इसकी जानकारी प्राप्त करने के लिए राष्ट्र संघ में भी गुहार लगाई है। मानव अधिकार आयोग ने पिछले दिनों इसकी जांच-पड़ताल के लिए अपना एक प्रतिनिधिमंडल भी कोएटा भेजा है। मीर हजारा खान बजरानी मरी कबीले से सम्बंध रखते हैं। उनके विरुद्ध पाकिस्तान की आई.एस.आई ने मोर्चा खोल रखा है। राष्ट्रवादी कबीले इन सरकारी मुखबिरों से जनता को सावधान रहने के लिए कहते हैं। सरकार के विरुद्ध राष्ट्रवादी कबीलों ने 'बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी' गठित कर ली है। सरदार अताउल्ला के नेतृत्व में पिछले दिनों लंदन में एक बैठक हुई जिसमें मुहाजिर कौमी मूवमेंट के नेता अलताफ हुसैन, फख्तून मिल्ली अवाम के नेता मोहम्मद खान अचकजई और सिंधी नेता सैयद इमदाद शाह उपस्थित थे। अपनी बैठक में इन नेताओं ने द्विराष्ट्र के सिद्धांत की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि पाकिस्तान जिस सिद्धांत पर बना वही गलत है। इसलिए आए दिन इस प्रकार के मामले उठते हैं। पाकिस्तान अपनी करतूतों से टूट रहा है। पाकिस्तान को शांति का पाठ पढ़ाने के लिए भारत के पास यह सही समय है।
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