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उम्मीद थी कि जयपुर की अपनी चिंतन बैठक में केन्द्र में सत्तारूढ़ सोनिया कांग्रेस थोड़ा सा राष्ट्रचिन्तन तो करेंगी ही, पर ऐसा नहीं हुआ। चिन्तन बैठक 'चिन्तित बैठक' हो गयी। सोनिया की चिन्ता कुल मिलाकर राहुल को वास्तविक उत्तराधिकारी घोषित करने की थी। राहुल पहले से ही कांग्रेसी वरिष्ठों के 'मार्गदर्शक', 'मसीहा' और 'आशा', निराशा, हताशा के केन्द्र थे। कुछ समय पहले ही उन्हें सूरजकुण्ड बैठक में चुनाव अभियान का संयोजक बनाया गया था। 'चिन्तित बैठक' में उन्हंे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया। इसमें नया क्या था? वे 'कांग्रेस प्रापर्टी' के वास्तविक उत्तराधिकारी हैं ही। कांग्रेस पार्टी है भी नहीं। नेहरू परिवार में ही इस 'प्रापर्टी' का हस्तांतरण लगातार हुआ है। पं. नेहरू के बाद श्रीमती इन्दिरा गांधी ने 'प्रापर्टी' पाने के लिए ही पार्टी के घोषित राष्ट्रपति उम्मीदवार को हराया था। इसके बाद कांग्रेस टूट गयी। इसके गुट कोष्ठक बन्द अक्षरों से पहचाने जाते थे। इन्दिरा का गुट पहले कांग्रेस (रूलिंग-आर) था, बाद में कांग्रेस (आई) हो गया। वरिष्ठों के नेतृत्व वाली कांग्रेस (ओ-आरगेनाइजेशन) थी, बाद में कांग्रेस (एन-निंजलिंगप्पा) हो गयी। कांग्रेस बिखरती गयी। नारायण दत्त तिवारी ने कांग्रेस (ति.) बनाई थी। इन्दिरा गांधी वाली कांग्रेस सत्ता में रही सो ताकतवर रही। इन्दिरा गांधी की दु:खद हत्या के बाद 'प्रापर्टी' कांग्रेस पुत्र राजीव गांधी को हस्तांतरित हो गयी। राजीव के बाद पत्नी सोनिया गांधी को और अब पुत्र राहुल को।
महंगाई पर चुप क्यों सोनिया?
जयपुर की 'चिन्तित बैठक' उत्तराधिकार हस्तांतरण तक ही सीमित रही। कांग्रेस अब राहुल की। राहुल ने कहा भी कि अब वे जज की भूमिका में हैं, वकील नहीं रहंेगे। इस साल 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, फिर 2014 में लोकसभा के चुनाव। कांग्रेस इसी दहशत से चिन्तित है। जनता गुस्से में है। कांग्रेस और महंगाई साथ-साथ रहते हैं, एक साथ आते हैं, एक साथ जाते हैं। भ्रष्टाचार को संस्थागत बनाने का काम कांग्रेस ने ही किया। अदना सा देश पाकिस्तान भारतीय सैनिकों के सिर उड़ा ले गया। केन्द्रीय सत्ता ने उसे घुसपैठिए भेजने का 'मौलिक अधिकार' दिया है। वह लगातार हमलावर है और कांग्रेस लगातार आत्मसमर्पणकारी। आतंकवादी सक्रिय हैं। जम्मू-कश्मीर अशान्त है। लेकिन सत्तादल की 'चिंतित बैठक' में ऐसे राष्ट्रीय मुद्दे नहीं उठे। सोनिया गांधी के भाषण में भी राष्ट्रीय स्वाभिमान से जुड़े मुद्दों का अभाव रहा। उन्होंने महंगाई पर चुप्पी साधी, केन्द्र ने डीजल और रसोई गैस मूल्यवृद्धि का निर्णय बार-बार किया। डीजल की मूल्यवृद्धि का असर सभी वस्तुओं की कीमतें बढ़ाता है। महंगाई कांग्रेस के लिए कोई मुद्दा नहीं है। राहुल गांधी को ही सत्ता सौंपना कांग्रेस का एक सूत्रीय कार्यक्रम है।
राहुल का परिपूर्ण उदय ही कांग्रेस की आशा है और यही देश की परिपूर्ण निराशा। राहुल गांधी का नया ज्ञानोदय भी हुआ है। उन्होंने कांग्रेसी-काया की रासायनिक रपट भी बताई। कहा कि कांग्रेस में हिन्दुस्थान का डी.एन.ए. (डिआक्सी-राइबोस न्यूक्लिक एसिड) है। डी.एन.ए. रासायनिक शब्दावली है। यह प्रत्येक प्राणी की 'जैव रासायनिक विशिष्टिता' है। राष्ट्र जीवन्त सत्ता है। भारत दुनिया के अन्य देशों से भिन्न राष्ट्र है। इसकी विशेषता विविधिता के भीतर गहन सांस्कृतिक एकता है। एक प्रवाहमान संस्कृति, सम्पूर्ण राष्ट्र का एक जन-गण-मन। इसीलिए भारत एक राष्ट्र। इस राष्ट्र का डी.एन.ए. हिन्दुत्व है। हिन्दुत्व ही इस राष्ट्र की जैव रासायनिक विशिष्टता है। लेकिन कांग्रेस की मन, बुद्धि, काया में हिन्दुत्व विरोधी डी.एन.ए. है। कांग्रेस भारत की प्रकृति, संस्कृति, इतिहासबोध, रस, छन्द और जीवनशैली को घृणा से देखती है। वह कांग्रेस के राष्ट्रवादी नेताओं यथा तिलक, महात्मा गांधी, सरदार पटेल, बिपिन चन्द्र पाल आदि से प्रेरित नहीं होती। इस कांग्रेस का सीधा- सरल इतिहासबोध है। यह इतिहास पं. नेहरू से राहुल गांधी तक सीमित है। राहुल गांधी को देश का डी.एन.ए. समझना होगा। दोहराने की आवश्यकता नहीं कि भारत का डी.एन.ए. हिन्दुत्व ही है।
सच छुपा गए राहुल
कांग्रेस विदा हो रही है। कम से कम जाते-जाते तो सच बोलना ही चाहिए। राहुल गांधी के वक्तव्य में तमाम अन्तर्विरोध हैं। उन्होंने ठीक बताया है कि कांग्रेसी राज में 'सत्ता कुछ हाथों में सिमट कर रह गयी है।' लेकिन किन हाथों में सिमट कर रह गयी? यह नहीं बताया कि सत्ता पूरी तौर पर उन्हीं के परिवार के पास है। यह ठीक बताया कि 'भ्रष्ट ही भ्रष्टाचार मिटाने की बात करते हैं।' लेकिन यह नहीं बताया कि केन्द्रीय मंत्रिगण भ्रष्ट हैं, वे ही भ्रष्टाचार मिटाने की बातें करते हैं। प्रभावी लोकपाल बनाने में वही अड़ंगा हैं। कांग्रेस की स्थिति भी उन्होंने ठीक बताई है- 'आपके पास पद नहीं तो सम्मान नहीं होता।' लेकिन यह नहीं बताया कि कांग्रेसी चरित्र का ऐसा मूल स्वभाव क्यों है? कांग्रेस में देश का डी.एन.ए. होता तो ऐसा न होता। राहुल ने पिता राजीव गांधी का बयान ठीक याद कराया कि 'योजनाओं के एक रुपये में से 15 पैसे ही नीचे तक पहुंचते हैं।' राजीव गांधी ने सत्ता के भ्रष्टाचार का सच स्वीकार किया था। राहुल ने वादा किया है कि अब 100 पैसे में 99 पैसे जनता तक पहुंचेंगे। कांग्रेस माकर्ा झूठ बोलने के लिए अतिरिक्त आत्मविश्वास की जरूरत होती है। इसलिए उन्होंने 100 में 100 नहीं 99 पैसा ही बताया, लेकिन संप्रग की 8 साल पुरानी सरकार में 100 में कितने पैसे राष्ट्रमंडल खेलों में लुटे? 2 जी स्पेक्ट्रम में कितनी लूट हुई? इस समय देश का धन लुट रहा है। 100 में 90-95 की लूट है। राहुल इन्हीं मंत्रियों, इसी लुटेरे तंत्र से एक साल के भीतर 100 में 99 पैसे आम जनता तक कैसे पहुंचाएंगे?
जनता को जवाब दे कांग्रेस
पाखण्ड की भी हद होती है। कांग्रेस इसी पाखण्ड से पिट चुकी है। राहुल में बचा क्या है? वे युवकों की भागीदारी की बात करते हैं। राजधानी के युवा ही सामूहिक बलात्कार पर व्यथित-आन्दोलित थे। उनकी सरकार ने ही युवा-व्यथा पर दमन चक्र चलाया। राहुल ने नहीं बताया कि युवकों के प्रति 'लगाव' रखने के बावजूद वे मौन क्यों रहे? वे उत्तर प्रदेश के भट्टा परसौल गये थे। मायाराज ने किसानों की जमीन छीनी थी। उन्होंने जबरन जमीन छीने जाने का विरोध किया था। उन्होंने 100 साल से ज्यादा पुराने अंग्रेजीराज के भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन की बात कही थी। भाजपा के नेता पूर्व कृषि मंत्री राजनाथ सिंह ने इस मांग पर अतिरिक्त बल दिया था। लेकिन भूमि अधिग्रहण कानून के संशोधन के मसौदे का विरोध केन्द्र के मंत्रियों ने ही किया। वे औद्योगिक घरानों के पक्ष में रियायतों को लेकर अड़ गये। राहुल गांधी किसान हितकारी संशोधन के लिए आगे नहीं आए? सरकार उनकी, पार्टी उनकी, बावजूद इसके औद्योगिक घरानों के लिए फायदेमंद अंग्रेजीराज का यह कानून क्यों नहीं बदला गया? कांग्रेस अपनी पार्टी को पार्टी की तरह चलाती है या प्रापर्टी की तरह? यह सोनिया परिवार का निजी मसला है, लेकिन वाजपेयी सरकार के 6 बरस छोड़ देश में कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित सरकारें ही रही हैं। इसलिए कांग्रेस जनता के प्रति जवाबदेह भी है।
जहां–जहां पांव पड़े राहुल के…
पार्टी ने उ.प्र. विधानसभा चुनावों में राहुल को आगे किया था। राहुल पिट गये, कांग्रेस पुरातात्विक प्रापर्टी हो गयी। उ.प्र. कांग्रेस लोकसभा चुनाव के एक साल पहले ही पराजय की व्यथा में है। इसके पहले बिहार में भी राहुल के चुनाव अभियान का यही हश्र हुआ था। राहुल गांधी कहीं भी कोई प्रभाव नहीं डाल पाये। जयपुर 'चिन्तित बैठक' में एक घोषणा पत्र भी जारी हुआ है। पत्रक के अनुसार, पार्टी ने जनाधार बढ़ाने का संकल्प लिया है। लेकिन अल्पसंख्यकवाद को लेकर सच्चर कमेटी की राष्ट्रतोड़क सिफारिशों को लागू करने की खतरनाक बातें भी कही गयी हैं।
2003 में शिमला में भी ऐसी ही 'चिन्तित बैठक' हुई थी। वहां गरीबों की खाद्य सुरक्षा का संकल्प लिया गया था। 9 साल हो गये। कुछ नहीं हुआ। गरीबी की रेखा के नीचे (बी.पी.एल.) के कार्ड धारकों को मिलने वाला खाद्यान्न भी बंद करने की तैयारी है। 2014 चुनावी जीत के लिए 'नोट फॉर वोट'- सीधे नकदी हस्तांतरण की योजना लागू हो चुकी है। राहुल और कांग्रेस ने निराश और हताश किया है। आमजन घात लगाए बैठे हैं। कांग्रेस प्रतिघात सहने के लिए तैयार रहे। भारत के लोग एक-एक पैसे का हिसाब जानते हैं। कांग्रेस का डी.एन.ए. जगजाहिर है। सम्प्रति, कांग्रेस की जैव रासायनिक विशेषता में भारत के कम, विदेशी तत्वों की ही बहुलता है। बर्दाश्त की भी हद होती है। 2014 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस की विदाई और देश की भलाई का अवसर बनेगा।
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