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मौलवी को फांसी की सजा

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Jan 28, 2013, 12:00 am IST
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अमरीका की अदालत ने दी-26/11 के दोषी हेडली को 35 साल की जेल

दिंनाक: 28 Jan 2013 11:21:33

 

आलोक गोस्वामी

26/11 हमले से पहले ठिकानों की खुफिया जानकारी देकर जिहादी हत्यारों की मदद करने के आरोपी लश्करे तोयबा के पाकिस्तानी-अमरीकी जिहादी डेविड हेडली को अमरीका की एक अदालत ने 35 साल जेल की सजा सुनाई है। 24 जनवरी को यह फैसला सुनाने वाले जज लीनेनवेबर ने ही हफ्ते भर पहले हेडली के पुराने दोस्त तहव्वुर राणा को कोपेनहेगन में एक अखबार पर जिहादी हमले की योजना  बनाने और लश्करे तोयबा की सहायता करने के जुर्म में 14 साल कैद की सजा सुनाई थी। हेडली ने माना था कि उसने अपने पाकिस्तानी आकाओं के लिए खुफिया जानकारियां इकट्ठी करने के कई अभियानों में भाग लिया था, मुम्बई में हमले की जगहों की तस्वीरें ली थीं। उसने भारत में आने-जाने के दौरान 2006 में अपना नाम दाऊद गिलानी रख लिया था ताकि किसी को शक न हो।

 

'71 में हिन्दुओं की हत्या करने वाले

1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी फौजियों के साथ मिलकर (पूर्वी पाकिस्तान में) हिन्दुओं की हत्या करने, हिन्दू महिलाओं का बलात्कार करने और बंगलादेश मुक्ति संग्राम के खिलाफ काम करने के अपराध में बंगलादेश की एक अदालत ने मौलाना अबुल कलाम आजाद को फांसी की सजा सुनाई है। बच्चू रजाकार के नाम से भी जाना जाने वाला यह 63 वर्षीय मौलवी कुछ समय पहले तक टेलीविजन पर इस्लामी कार्यक्रम पेश करता था। '71 के युद्ध के दौरान उस पर कम से कम 6 हिन्दुओं की हत्या और हिन्दू महिलाओं के बलात्कार के आरोप थे। यह सजा अवामी लीग सरकार द्वारा 2010 में गठित किए गए इंटरनेशनल वॉर क्राइम्स ट्रिब्यूनल की सुनाई पहली सजा है। प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार ने युद्ध अपराधों की सुनवाई को सरकार के प्रमुख कामों में घोषित किया था।

1971 में मौलाना आजाद जमाते-इस्लामी की छात्र शाखा में अदना सा नेता था और वह जमात द्वारा पाकिस्तानी सेना की मदद के लिए बनाई गई सहायक फौज 'रजाकार बाहिनी' से जुड़ा था। उसका काम पाकिस्तानी सेना को मिलने वाले स्थानीय प्रतिरोध को दूर करना था। 'रजाकार बाहिनी' हिन्दुओं को प्रताड़ित करने और मुक्ति संग्राम के हमदर्दों के दमन के लिए कुख्यात थी। ट्रिब्यूनल ऐसे बंगलादेशियों की जांच कर रहा है जिन पर '71 में पाकिस्तानी सैनिकों से साठगांठ करने के आरोप हैं। इनमें जमाते-इस्लामी के कई बड़े नेता और पूर्ववर्ती खालिदा सरकार में विदेश मंत्री रहे एक नेता का नाम भी है।

फांसी की सजा पाने वाला यह मौलवी फिलहाल 'भगोड़ा' घोषित है। बंगलादेशी गुप्तचर अधिकारियों का कहना है कि इस मुकदमे की भनक पाकर 2 अप्रैल 2012 को वह पश्चिम बंगाल (भारत) में जा छुपा था, जहां से बरास्ते नेपाल वह पाकिस्तान भाग गया।

 

 

चीन का नया फरमान

तिब्बतियों को पासपोर्ट नहीं

चीन में पिछले दिनों कम्युनिस्ट पार्टी की बागडोर नए नेताओं के हाथों में थमाई गई। जैसी आशंका थी, तिब्बतियों पर चीनी दमन जारी है। नए नेताओं ने तो एक कदम आगे बढ़कर एक नया फरमान जारी कर दिया है। इसके तहत साल भर से तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र में रहने वाले तिब्बतियों को नए पासपोर्ट जारी नहीं किए गए हैं। जिनके पास पहले से पासपोर्ट थे, उनके लिए नए इलेक्ट्रानिक पासपोर्ट जारी करने के नाम पर चतुर चीनियों ने पिछले वाले जब्त कर लिए, नए देने के नाम पर ठेंगा दिखा दिया। अब ऐसे हजारों तिब्बती बाहर देश की यात्रा पर नहीं जा सकेंगे। इतना ही नहीं, तिब्बत पर अपना शिकंजा और कसने की गरज से चीनियों ने वहां जनांदोलन की संभावना वाली जगहों को घेराबंदी करके अलग कर दिया है और तिब्बतियों के घरों पर लगीं हजारों सेटेलाइट छतरियां जब्त कर ली हैं।

चीन की सरकार तिब्बतियों को लेकर कितनी बौखलाई हुई है इसका अंदाजा पिछले साल नवम्बर में चीनी लेखक वांग के न्यूयार्क टाइम्स में छपे लेख से लगा था। इसमें उन्होंने लिखा था कि कम्युनिस्ट पार्टी के 18वें अधिवेशन से पहले कम्युनिस्ट कामरेडों ने उनकी पत्नी वोइसर (जो एक प्रमुख तिब्बती कवियित्री हैं) को कहा, बीजिंग छोड़कर चली जाओ। तिब्बतियों को वहां हमेशा शक की निगाहों से ही देखा जाता है। वोइसर ने तिब्बतियों पर दमन के विरोध में कुछ कविताएं लिखीं थीं, जिससे चीनी प्रशासन ने उनका नाम 'काली सूची' में डालकर उनकी किताबों के छपने, उनकी नौकरी, पासपोर्ट वगैरह सब पर पाबंदी लगा दी। बहरहाल, वोइसर जब बीजिंग छोड़कर जाने के फरमान के तहत तिब्बत स्थित अपने घर के लिए निकलीं तो हर चौक-चौराहे पर उनकी जबरदस्त तलाशी ली गई। चीनियों को तो बस, ट्रेन, हवाई जहाज से बेरोक-टोक तिब्बत आने-जाने की छूट है। दूसरी ओर तिब्बतियों को उनके अपने तिब्बत में ही बाहरी बनाया जा रहा है!

 

'माली का बदला लो पश्चिम से'

अल–कायदा नेता ने जिहादियों को उकसाया

माली में पिछले दिनों फ्रांस की अगुआई में उग्रवादियों/जिहादियों के खिलाफ तीखी कार्रवाई चली। ढेरों इस्लामी जिहादी ढेर किए गए। माली के लोगों ने राहत की सांस ली, क्योंकि लंबे अरसे से उग्रवादी उनका जीना हराम किए हुए थे। जिहादियों की कमर तोड़ने वाले इस फ्रांसीसी अभियान से अल-कायदियों का तिलमिलाना स्वाभाविक ही था। सो लादेन वध के बाद जिहादी कायदियों के अगुआ बने अयमन अल जवाहिरी का भाई मोहम्मद अल जवाहिरी बोल उठा-पश्चिम से बदला लो माली का। उसने पश्चिम के खिलाफ हिंसा तेज करने का फरमान जारी किया है। मोहम्मद इजिप्ट में सबसे बड़ा वाला अल कायदी माना जाता है। पश्चिम, खासकर अमरीका और यूरोप के खिलाफ उसकी यह भड़ास कैयरो में द एसोसिएटिड प्रेस को दिए इंटरव्यू में निकली। इंटरव्यू में जवाहिरी गुर्राया, 'सारे मुसलमानों को हक है कि किसी भी तरीके से इस हमले (फ्रांस की कार्रवाई) को रोकें। इस बर्बरता और नृशंसता का… शरिया के तहत, सामना करना होगा।'

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