July 19, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

 

by
Jan 28, 2013, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

गांधी जी व्यक्ति नहीं, जीवित दर्शन थे

दिंनाक: 28 Jan 2013 11:41:18

पुण्यतिथि (30 जनवरी)  पर पुण्य स्मरण

डा.सतीश चन्द्र मित्तल

गांधी जी का जीवन बहुआयामी था। वह श्रेष्ठ हिन्दू संस्कृति के उद्बोधक, दूसरे मत-पंथों के प्रति अत्यधिक सहिष्णु, राष्ट्रभक्त तथा भावी भारत के स्वप्नदृष्टा थे। यह एक विचित्र संयोग ही है जिस भांति महात्मा बुद्ध का विचार तथा बौद्ध पंथ भारत से लुप्त प्राय: हो गया लेकिन विश्व में आज वह प्रमुख स्थान बनाए हुए है, उसी भांति गांधी जी का जीवन दर्शन भी भारत से विलुप्त हो रहा है जबकि विश्व के अनेक देशों ने उनके श्रेष्ठ विचारों को अपनाया है। आधुनिक विश्व में शायद ही कोई अन्य व्यक्ति हो जिसके जीवन दर्शन पर लाखों की संख्या में पुस्तकें लिखी गईं हों।

हिन्दू धर्म के महान उपासक

गांधी जी के व्यक्तित्व और जीवन दर्शन पर यदि दृष्टि डालें तो मोहनदास का जन्म गुजरात के सम्पन्न वैश्य परिवार में हुआ था। पारिवारिक व्यवसाय सुगंध-इत्र बेचने का था। इसलिए वे गन्धी (सुगन्ध बेचने वाले) या गांधी कहलाते थे। उनका परिवार खानपान, वेशभूषा में पूर्णत: वैष्णव था, धार्मिक प्रवृत्ति का था। सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र तथा पितृभक्त श्रवण आदि के नाटकों ने मोहनदास के नैतिक मूल्यों को दृढ़ किया था। उनकी मूल प्रेरणा उपनिषद, रामायण, महाभारत तथा गीता आदि ग्रंथ थे। वे ईशोपनिषद के प्रथम श्लोक, जिसका भाव त्यागमूलक भोग है, से बेहत प्रेरित थे। वे प्रत्येक कष्ट के लिए गीता से मार्गदर्शन लेते थे। उनकी सदैव यह इच्छा रही कि गीता को कंठस्थ कर लें। उन्होंने गीता को माता कहा। वे गीता को अपना दैनिक आध्यात्मिक आहार बतलाते थे। 21 वर्ष की आयु होते-होते उन्होंने दूसरे पंथों-विचारधाराओं के ग्रंथों का अध्ययन कर लिया। देश-विदेश के अनेक समकालीन विद्वानों ने भी उनके जीवन को प्रभावित किया। वे जान रस्किन, टाल्सटाय से बहुत प्रभावित थे। परंतु वे बैंथम तथा जे.एस.मिल के उपभोगवादी विचारों से प्रभावित नहीं थे, क्योंकि वे सिर्फ सीमित वर्ग के हित की ही बात करते थे जबकि भारतीय चिंतन में सर्वजन हिताय या सर्वे भवन्तु सुखिन: की मान्यता है। वे अपने समकालीन स्वामी विवेकानंद के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने माना कि मेरा देश प्रेम का विचार स्वामी विवेकानंद को पढ़कर हजार गुणा बढ़ गया।

गांधी जी व्यक्तिगत रूप से हिन्दू धर्म के महान पोषक, प्रेरक तथा संदेशवाहक थे। वे सत्य की अथक खोज का ही दूसरा नाम हिन्दू धर्म बतलाते थे। हिन्दू धर्म के बारे में वे मानते थे, 'जिसके अनुयायी को अधिक से अधिक आत्माभिव्यक्ति का अवसर मिलता है।' उनका कथन था कि हिन्दू धर्म न केवल मनुष्यों की एकता में विश्वास रखता है बल्कि सभी जीवधारियों की एकात्मता में विश्वास करता है। इस संदर्भ में वे गाय को माता कहते थे। वे गाय को जन्म देने वाली जननी से भी महान मानते थे। उनका कथन था कि यदि समस्त संसार उसकी पूजा का विरोध करे, तो भी मैं गाय की पूजा करूंगा। गांधी जी अपने को सनातनी हिन्दू कहते थे तथा स्वयं को हिन्दू कहलाने में गौरव का अनुभव करते थे। गांधी जी ने विश्व में हिन्दू धर्म तथा संस्कृति को सभी धर्मों की जननी भी कहा।

गांधी तथा अन्य मतावलंबी

हिन्दू होने के नाते उन्होंने इस्लाम और मुसलमानों के प्रति उदारता, सहनशीलता तथा सहिष्णुता की बात की, यद्यपि उनकी अत्यधिक उदारता बाद में राष्ट्रघातक भी बनी। 1919 के खिलाफत आंदोलन में मुस्लिमों का सहयोग कर उन्हें लगा कि इससे देश शीघ्र स्वतंत्र हो जाएगा तथा उन्हें राष्ट्रीय धारा से जोड़ा जा सकेगा। अत: उस अवसर को कामधेनु कहा। परंतु शीघ्र ही उन्हें अपनी भूल की अनुभूति भी हुई। उन्होंने अपने एक पत्र में एम.ए.अंसारी को हिन्दू-मुस्लिम संबंधों का वर्णन करते हुए 'इसे समस्याओं की समस्या' (देखें एम.ए.अंसारी पेपर्स, 19 फरवरी, 1930 का पत्र) कहा। इसी प्रकार से हिन्दू- मुस्लिम झगड़ों पर उन्होंने लिखा, 'यदि वे आपस में सिर फोड़ते हैं तो फोड़ने दो, मैं क्या करूं।' (कलैक्टेड वर्क्स, भाग 16, पृ.215)। भारत के पूर्व सर्वोच्च न्यायाधीश एम.सी.छागला ने भी उसे गांधी जी की भारी भूल कहा।

इसी भांति गांधी जी ने ईसा मसीह अथवा ईसाई मत के प्रति सम्मान व्यक्त किया परंतु ईसाइयत के कुचक्रों का प्रतिरोध भी किया। उन्होंने भारत में ईसाईकरण के इस कथन को बिल्कुल नकार दिया कि 'ईसाई धर्म ही एकमात्र सच्चा धर्म है या हिन्दू धर्म झूठा है' (देखें-कलैक्टेड वर्क्स, भाग 35, पृ.544-45)। उन्होंने ईसाइयों के सर्व धर्म सम्मेलन तथा अन्तरराष्ट्रीय विश्व बंधुत्व आदि शब्दों को निरर्थक बतलाया। इस संदर्भ में उन्होंने अपने मित्र सी.एफ.एंड्रयूज की भी आलोचना की।

पाश्चात्य अंधानुकरण तथा मार्क्सवाद का विरोध

गांधी जी ने अपने चिंतन में पाश्चात्य अंधानुकरण की भी कटु आलोचना की। उन्होंने यूरोप की नैतिकता को तीन बातों पर आधारित बतलाया-समर्थों की नैतिकता, झूठ बोलने की नीति और हत्या की नीति। वस्तुत: गांधी जी ने भारत में मार्क्सवाद की जड़ों को गहरे तक पनपने नहीं दिया। प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार ने गांधी जी को भारत में कम्युनिस्टों की विफलता का सबसे बड़ा कारण माना है। गांधी जी के प्रथम शिष्य विनोबा भावे ने साम्यवादी विचारधारा को आत्माविहीन विचारधारा तथा कम्युनिस्टों की दृष्टि को बौद्धिक पीलिया से ग्रस्त बतलाया है। यद्यपि यह सत्य है कि भारतीय कम्युनिस्ट समय-समय पर गांधी जी के खिलाफ पाखंड रचते रहे। कभी सोवियत रूस के इशारे पर, कभी माओत्से तुंग के इशारे पर गांधी जी को देशद्रोही, जनशक्ति का विश्वासघाती और ब्रिटिश चमचा कहते रहे, पर गांधी जी इससे जरा भी विचलित नहीं हुए।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि गांधी जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संगठन में जान फूंक दी। कुछ अंग्रेजी पढ़े-लिखे भारतीयों की कांग्रेस को सामान्य जनता की कांग्रेस बताया। उनके चुम्बकीय नेतृत्व ने भारत के सभी वर्गों, सम्प्रदायों तथा हितों को प्रभावित किया। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध तीन बड़े आंदोलन किये। जनमानस को झकझोरा। खादी के प्रयोग तथा गांधी टोपी देशभक्ति का प्रतीक चिन्ह बन गई। यद्यपि वे तीनों आंदोलन पूरी तरह सफल नहीं रहे परंतु निश्चय ही उनसे जन जागृति बढ़ी। उनकी इच्छा के विपरीत भारत को आधी-अधूरी आजादी मिली।

गांधी दर्शन के हत्यारे

विचारणीय प्रश्न यह है कि गांधी का उच्च विचार-दर्शन व्यवहार में क्यों नहीं दिखाई दे रहा है? गांधी जी के महाप्रयाण के साथ सादगी की प्रतीक खादी दिखावे की वस्तु बन गई तथा स्वाभिमान की प्रतीक टोपी नेता की पहचान। गांधी जी की अंतिम इच्छा, 'कांग्रेस की समाप्ति', को किसी ने नहीं सुना। गांधी जी के नाम पर अपनी राजनीतिक रोजी-रोटी चलाने वालों ने उनके विचार की हत्या कर डाली। आपातकाल में गांधी प्रतिष्ठानों को बंद कर दिया गया या प्रतिबंधित कर दिया। गांधी समाधि पर जाना एक औपचारिकता भर बन गया। सरकारी तंत्र के पास तो यह जानकारी भी नहीं है कि गांधी जी को पहली बार कब राष्ट्रपिता कहा गया। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि भारत में सलमान रुश्दी तथा तस्लीमा नसरीन जैसे लेखकों को भारत आने से रोका जाता है या न आने के लिए उन्हें बाध्य किया जाता है, परंतु देश-विदेश में गांधी जी पर बने कार्टूनों तथा उन पर लिखे कचरा साहित्य को मौलिक स्वतंत्रता के आवरण में संरक्षण दिया जाता है। उदाहरण के लिए, विदेशों में कला के नाम पर गांधी जी को लैपटाप देखते तथा जानवर को घुमाते दिखाया जा रहा है। गांधी जी को कोका कोला से भरी गाड़ियों के साथ दिखाया गया है। आर्थर कोएस्लर ने 'गांधी ए रिवेल्युशन, (1969), माइकल एडवर्ड्स ने 'द मिथ आप, महात्मा' (1986) तथा जोसेफ लेलीवेल्ड ने 'ग्रेट सोल महात्मा गांधी एंड हिज स्ट्रगल विद इंडिया', (2011) जैसे अधकचरे तथा विवादास्पद, नकारात्मक तथा शरारतपूर्ण ग्रंथों की रचना की, पर उसकी अनदेखी की गई। इतना ही नहीं, गांधी जी जैसे पक्के हिन्दुत्वनिष्ठ को अमरीका के मोर्मन चर्च में मरणोपरांत बपतिस्मा देकर ईसाई बनाने की दीक्षा दी है (27 मार्च, 1996)। पर भारत सरकार उस पर मौन ही है। इतना होने पर भी विरोध न हो, इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?

यदि अपने देश में गांधी दर्शन की उपेक्षा न होती तो देश का स्वदेशीकरण होता तथा भारत आत्मनिर्भर होता, बेरोजगारी की समस्या कम होती तथा विदेशी खुदरा व्यापार के द्वारा आर्थिक गुलामी की ओर कदम न बढ़ते। यदि गांधी जी के हिन्द स्वराज्य की कल्पना साकार होती तो भ्रष्टाचार, घोटालों तथा कालेधन से मुक्ति मिलती। यदि गांधी जी का रामराज्य या ग्राम स्वराज्य साकार होता तो भारत के गांवों की ऐसी दुर्दशा न होती। यदि गांधी जी की संस्कृत भक्ति तथा हिन्दी का स्वाभिमान होता तो भारत में इंग्लिश देवी का मंदिर न बनता। देश में पाश्चात्य तथा पश्चिमी अंधानुकरण की आंधी न आती। गांधी जी ने 'हिन्द स्वराज्य' में ब्रिटिश संसद की तुलना वेश्या तथा बांझ से की है इसलिए वे स्वतंत्र होने पर भारत के अपने तंत्र की कल्पना करते थे, जो सम्भव न हुआ। अत: देश की वर्तमान दुरावस्था, दिशाहीनता तथा नैतिक पतन के निराकरण के लिए आवश्यक है कि भारतीय नागरिक, विशेषकर राजनेता गांधी जी तथा हिन्दुत्व के जीवन-दर्शन का गंभीर अध्ययन करें तथा उसे व्यवहार में लाएं।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

जमानत मिलते ही करने लगा तस्करी : अमृतसर में पाकिस्तानी हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

जमानत मिलते ही करने लगा तस्करी : अमृतसर में पाकिस्तानी हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश

Pahalgam terror attack

घुसपैठियों पर जारी रहेगी कार्रवाई, बंगाल में गरजे PM मोदी, बोले- TMC सरकार में अस्पताल तक महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं

अमृतसर में BSF ने पकड़े 6 पाकिस्तानी ड्रोन, 2.34 किलो हेरोइन बरामद

भारतीय वैज्ञानिकों की सफलता : पश्चिमी घाट में लाइकेन की नई प्रजाति ‘Allographa effusosoredica’ की खोज

डोनाल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका

डोनाल्ड ट्रंप को नसों की बीमारी, अमेरिकी राष्ट्रपति के पैरों में आने लगी सूजन

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies