खाकी और खादी से ही सुरक्षित नहीं नारी
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उत्तर प्रदेश
शशि सिंह
9 माह में 45 बच्चियों (10 वर्ष से कम) से बलात्कार के बाद हत्या -यह है उत्तर प्रदेश की खौफनाक तस्वीर। उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के राज में हर रोज औसतन पांच महिलाएं दुराचार की शिकार होती हैं। यही नहीं, उ.प्र. के दुराचारियों में खाकी (पुलिस) से लेकर खादी (नेता) तक शामिल हैं। 10 मामलों में खाकी वाले फंसे हैं तो एक मामले में खादी (पूर्व मंत्री अवधपाल यादव)।
अखिलेश यादव ने 15 मार्च, 2012 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने महिलाओं की मदद के लिए 1090 नाम से एक 'हेल्प लाइन' शुरू की। 'हेल्प लाइन' शुरू होते ही दो माह में 60 हजार से अधिक ऐसी शिकायतें दर्ज हुईं जिनमें महिलाओं ने बलात्कार, दुराचार, छेड़छाड़, अश्लीलता और पुरुषों द्वारा असहज कर देने व्यवहार की शिकायतें दर्ज करायीं। ये आंकड़े शासन द्वारा औपचारिक रूप से जारी किए गए हैं। प्रदेश के प्रमुख सचिव आर.एम. श्रीवास्तव ने इसके साथ ही दावा किया कि इनमें से आठ हजार मामलों का निस्तारण कर दिया गया है। यानी इतने मामलों पर पुलिस ने सिर्फ संज्ञान लिया है, पर अब तक इन महिलाओं को न्याय नहीं मिल पाया है। प्रमुख सचिव (गृह) ने यह भी बताया कि मुरादाबाद, सहारनपुर, कानपुर नगर व कानपुर देहात, प्रतापगढ़ और र्फरुखाबाद में दुराचार करने वालों पर रासुका के तहत भी कार्रवाई की गई है। बहरहाल 'हेल्प लाइन' शुरू करने तथा रासुका लगाने की घोषणा के बाद भी असामाजिक तत्वों के हौसले बुलंद हैं।
थम नहीं रहा सिलसिला
बीते वर्ष के आखिरी सप्ताह में जब देश भर में बलात्कार के खिलाफ आक्रोश उबाल पर था, तब 24 दिसंबर को उत्तर प्रदेश से एक साथ तीन बुरी खबरें आईं (1) सीतापुर में सामूहिक बलात्कार के बाद मासूम लड़की की हत्या (2) फैजाबाद में चलती जीप में किशोरी से सामूहिक दुष्कर्म (3) पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत में असामाजिक तत्वों ने एक नाबालिग युवती को अगवा कर लिया। इन लोगों ने उसके साथ दुराचार का प्रयास किया। आरोपी चार युवकों में से एक को गिरफ्तार कर लिया गया।
दुराचार के मामलों में खाकी और खादी पर दाग तो पहले से ही लगे हैं। उ.प्र. के दो पूर्व मंत्री-अमरमणि त्रिपाठी व आनंद सेन बलात्कार और हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। एक पूर्व विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी भी जेल में हैं। ताजा मामला बसपा सरकार में मंत्री रहे अवधपाल यादव का है। उन पर नौकरी दिलाने के बहाने एक युवती से दुराचार का आरोप लगा है। वह पुलिस के डर से भागते फिर रहे हैं।
कुछ वर्दीवाले तो मानो हैवानियत पर उतर आए हैं। पहले तो ये महिला उत्पीड़न पर त्वरित कार्रवाई नहीं करते, अगर करते हैं तो ढीली-ढाली। और कभी-कभी तो न्याय दिलाने के नाम पीडिता को खुद ही अपनी हवस का शिकार बना डालते हैं। ताजा मामला अंबेडकरनगर जिले का है। एक पीड़ित महिला थाने में दरोगा से न्याय मांगने गई तो वह उसे मदद दिलाने के नाम पर फैजाबाद ले आया और एक होटल में ठहरा दिया। उक्त दरोगा मान सिंह ने उससे होटल में दुराचार किया। मामला सामने आया तो उसे निलंबित कर दिया गया। वह इस समय जेल में बंद है। उक्त मामले में अयोध्या के कोतवाल ए.के. उपाध्याय पर भी उसी महिला से उसी होटल में बलात्कार करने का आरोप है, हालांकि पुलिस के अधिकारी उसे बचा रहे हैं। मामले की जांच चल रही है।
दागदार वर्दी वाले
सत्ता परिवर्तन के बाद उ.प्र. में मात्र 15 दिन बाद पहला मामला 30 मार्च को सामने आया। झांसी के गरौठा थाने के भीतर सिपाही राम प्रसाद मिश्रा ने एक विवाहित महिला से बलात्कार किया, और अब साल का अंत होते-होते ये घटनाएं बढ़ती गईं। 17 दिसंबर को यातायात पुलिस के एक सिपाही ने एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का प्रयास किया, मामला सामने आने पर उसे निलंबित कर दिया गया। 2 दिसंबर को एक सिपाही ने एक नाबालिग के साथ बलात्कार किया, अब वह छिपता फिर रहा है। इससे पूर्व 23 सितंबर को एक नाबालिग का अपहरण किया गया। एक सिपाही और उसके दो गैरपुलिस साथियों ने उसके साथ मुंह काला किया। 18 जुलाई को सीतापुर, 17 जुलाई को कुशीनगर, 12 जुलाई को लखनऊ, 28 मई को बदायूं, 18 अप्रैल को कानपुर में पुलिसकर्मियों द्वारा महिलाओं के साथ बलात्कार और दुराचार की घटनाएं सामने आईं। 18 अप्रैल को तो एक पुलिस अधीक्षक अमरजीत सिंह ने एक किशोरी के साथ मुंह काला किया। अमरजीत को गिरफ्तार कर लिया गया है और वह अब जेल में है।
ये ऐसे मामले में जिनमें पुलिसवालों की ही संलिप्तता लिखित रूप में दर्ज है। कितने ही ऐसे मामले होंगे जिनमें महिलाओं या उनके परिवार वालों ने डर के कारण पुलिस के खिलाफ मुंह ही नहीं खोला होगा। फैजाबाद के बीकापुर में एक ही ऐसा मामला सामने आया जिसमें तहरीर के अभाव में पुलिस ने कई दिन तक दुराचार के आरोपियों के खिलाफ मुकदमा ही दर्ज नहीं किया, जबकि मामला लगातार स्थानीय समाचार पत्रों में छपता रहा। जब पत्रकारों ने पूछा तो पुलिस क्षेत्राधिकारी (सी.ओ.) ने साफ कहा कि तहरीर (शिकायत) मिलने के बाद ही प्राथमिकी दर्ज होगी। पत्रकारों के ज्यादा कुरेदने पर उन्होंने यहां तक कहा कि ज्यादा फिक्र है तो पत्रकार ही अपनी ओर से तहरीर दे दें। बहरहाल छठे दिन उक्त मामले में चार लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार भी किया है, बाकी फरार हैं या उन्हें फरार होने का मौका दिया गया है।
खतरनाक सच
भारत में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अत्याचार-दुराचार में 10 प्रतिशत केवल उत्तर प्रदेश में घटित होते हैं। यह भी खतरनाक तथ्य है कि देश और प्रदेश में बलात्कार की शिकार युवतियों में 55 फीसदी से अधिक छोटी बच्चियां होती हैं। किसी-किसी प्रदेश में तो यह आंकड़ा 75 प्रतिशत तक है।
कुछ तथ्य, कुछ सत्य
घटता लिंगानुपात (राष्ट्रीय)
1000 पुरुषों पर महिलाएं 916 (2001)
1000 पुरुषों पर महिलाएं 889 (2011)
दुराचार की घटनाएं (उत्तर प्रदेश)
1958 (2001), 2044 (2011)
नाबालिगों के साथ दुराचार
562 (2001), 1088 (2011)
छेड़छाड़ की घटनाएं
2870 (2001), 3455 (2011)
साफ है कि पुलिस अश्लीलता के मामलों को गंभीरता से नहीं ले रही है, अन्यथा 2012 में महिला हेल्पलाइन (1090) शुरू होने के दो माह के भीतर महिलाओं की ओर से छेड़छाड़ व अश्लीलता की 60 हजार से अधिक शिकायतें दर्ज नहीं कराई जातीं।
प. बंगाल
बासुदेव पाल
बढ़ रहे महिलाओं के खिलाफ अपराध
पश्चिम बंगाल में सत्ता परिवर्तन हुए लगभग डेढ़ वर्ष होने को है। एक तेज-तर्रार महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब वहां सत्तारूढ़ हैं। इस बीच कोलकाता के पार्क स्ट्रीट, वर्धमान जिले के काटिया और दक्षिण 24 परगना के वारूईपुर में बलात्कार की घटनाएं सामने आयीं। इस कारण राज्य में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं। कोलकाता पुलिस की रपट में भी बलात्कार, यौन उत्पीड़न, महिलाओं के अपहरण आदि की घटनाओं में बढ़त देखी जा रही है। पुलिस के आंकड़ों के अनुसार ममता बनर्जी की सरकार के पहले दस माह (13 मई, 2011 से 31 मार्च, 2012) में केवल कोलकाता में महिलाओं के अपहरण, बलात्कार एवं यौन उत्पीड़न की 373 घटनाएं घटी हैं। इनमें बलात्कार की 64 घटनाएं हैं। 162 महिलाएं यौन उत्पीड़न की शिकार बनीं। 141 महिलाओं का अपहरण हुआ। इन सारी घटनाओं के लिए कुल मिलाकर 516 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। स्वाभाविक है लोग जानना चाहते हैं कि सत्ता परिवर्तन से पूर्व यानी कम्युनिस्टों के शासनकाल में बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराधों का आंकड़ा क्या था? तो पिछले दस सालों में सबसे ज्यादा बलात्कार की घटनाएं 2007 में 44 दर्ज हुईं थीं। यह संख्या ममता की साढ़े दस महीने में घटी घटनाओं से बहुत कम है। इससे पूर्व महिलाओं के अपहरण की घटनाएं सबसे अधिक 2001 में 107 हुई थीं। ममता के साढ़े दस माह में अपहरण की घटनाएं 4 गुना अधिक बढ़ गयी हैं।
स्पष्ट है कि इस समय महिलाओं के विरुद्ध अपराध तेजी से बढ़ता जा रहा है। अकेले बांकुड़ा जिले में 32 बलात्कार एवं सामूहिक बलात्कार की घटनाएं दर्ज हुई हैं। यौन उत्पीड़न की घटनाएं 56 एवं अपहरण की 39 घटनाएं घटीं। ममता के राज में मालदा जिले में ही 158 महिलाओं का अपहरण हुआ। महिला उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के कारण राज्य के विपक्षी दल एवं आम नागरिक पहले ही आवाज उठा चुके हैं। इसके बावजूद राज्य सरकार व उसका प्रशासन इसे कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति मानने से इनकार कर रहा है। उसका कहना है कि वाम मोर्चा शासन में लोग थाने में जाते हुए डरते थे, अब निडर होकर शिकायत दर्ज करा रहे हैं। अजब तर्क है, भले तब मामले दर्ज न किए जाते हों और आज किए जा रहे हों, पर इससे अंतर क्या पड़ता है? प्रश्न यह है कि इन अपराधों को रोकने के लिए ममता बनर्जी की सरकार ने क्या किया है? एक महिला के मुख्यमंत्री बनने के बावजूद अपराधियों में भय क्यों नहीं पैदा हुआ? क्यों वे बेधड़क महिलाओं की अस्मत से खिलवाड़ कर रहे हैं?
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