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भारत नीति प्रतिष्ठान के तत्वावधान में गत 15 दिसंबर को नई दिल्ली में समान नागरिक संहिता पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। 'यूनीफॉर्म सिविल कोड' विषय पर आयोजित परिचर्चा में प्रतिष्ठान द्वारा तैयार किए गए 'ज्यूडीसियरी, जेंडर एंड यूनिफॉर्म सिविल कोड' नामक शोध पत्र का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री आरिफ मोहम्मद खान थे तथा मुख्य अतिथि थे रा.स्व.संघ के उत्तर क्षेत्र के क्षेत्र संघचालक डा. बजरंग लाल गुप्त। इस अवसर पर भारत नीति प्रतिष्ठान के मानद निदेशक प्रो. राकेश सिन्हा, प्रतिष्ठान के अध्यक्ष प्रो. कपिल कपूर तथा समाजसेवी श्री गोपाल अग्रवाल भी मंच पर आसीन थे।
श्री आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि जिस शाहबानो मामले को आधार बनाकर यह परिचर्चा हो रही है शायद हम उस मामले की गंभीरता को समझ नहीं पा रहे हैं। शाहबानो मामले में जिस कानून के तहत फैसला किया गया वह आपराधिक कानून का हिस्सा था। उन्होंने कहा कि हमने सिद्धांत में एक बात तय कर रखी थी कि 'पर्सनल लॉ' अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन आपराधिक कानून एक होगा। परन्तु हमने तो अलग-अलग आपराधिक कानूनों की बुनियाद रख दी। श्री खान ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनेक पहलुओं का विस्तृत वर्णन करते हुए कहा कि समान नागरिक संहिता के लिए शिक्षा, सुरक्षा और ईमानदारी जरूरी है।
डा. बजरंग लाल गुप्त ने कहा कि समान नागरिक संहिता के संबंध में मत-पंथ से ऊपर उठकर विमर्श करने की जरूरत है। उन्होंने प्रश्न उठाए कि क्या इस विषय पर हिन्दू-मुस्लिम के दायरे में विचार किया जाना चाहिए? राजनीतिक लाभ-हानि के तराजू में तोलकर विचार करना चाहिए? डा. गुप्त ने कहा कि समान नागरिक संहिता के प्रश्न को देश की तरक्की के नजरिए से देखने की जरूरत है। उन्होंने भारत नीति प्रतिष्ठान को इस विषय पर प्रकाशन करने के लिए बधाई भी दी।
प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा कि समान नागरिक संहिता का विषय राष्ट्रीय एजेंडा होना चाहिए। इसे किसी राजनीतिक दल विशेष के विषय से ऊपर उठकर देखना चाहिए। इस अवसर पर रा.स्व.संघ, दिल्ली प्रांत के प्रांत सेवा प्रमुख श्री अजय कुमार सहित दिल्ली के प्रमुख विश्वविद्यालय के छात्र तथा प्रबुद्ध गण्यमान्यजन बड़ी संख्या में उपस्थित थे। प्रतिनिधि
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