शिशुओं के दिमागी रोग, लक्षण और बचाव
|
शिशुओं के दिमागी रोग,
लक्षण और बचाव
डा. हर्ष वर्धन
एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)
दिमागी बीमारी अथवा स्नायविक विकार एक ऐसी शारीरिक परेशानी या बीमारी है, जिसमें मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी तथा स्नायु शामिल हैं। इस बीमारी से नवजात शिशु भी मुक्त नहीं हैं। स्नायविक विकार से ग्रस्त शिशुओं/बच्चों के क्रियाकलाप, बोलने में कठिनाई, सोचने, देखने अथवा सुनने में परेशानी उत्पन्न हो सकती है। कुछ शिशुओं में स्नायविक विकार अनुवांशिक होते हैं परन्तु कुछ बच्चों में गर्भावस्था, पैदा होने के समय अथवा बचपन में विकसित हो सकते हैं। एकाग्रता की कमी, अतिसक्रियता विकार, ऑटिज्म सेरीब्रल पाल्सी एवं मस्तिष्क अभिघात आदि प्रमुख बीमारियां हैं, जिनकी गिरफ्त में शिशु/बच्चे आ जाते हैं।
ए.डी.एच.डी. एक आम बीमारी है जो बच्चों में देखने को मिलती है। ऐसे बच्चों में एकाग्रता में कमी तथा बेचैनी दिखाई देती है। कुछ बच्चों में एक ही कार्य को बार-बार दोहराने, प्रतिबंधित रुचि, संवाद करने में विकृति-ऑटिज्म का संकेत है। जो बच्चे ऑटिज्म से ग्रसित होते हैं उन्हें बात-चीत करने में कठिनाई होती है, बोलने में असमर्थ होते हैं तथा आंख के इशारों को समझते हैं। मस्तिष्क के कुछ हिस्सों के क्षतिग्रस्त होने के कारण शरीर व मांसपेशियों के संचालन में बाधा होती है। ऐसे बच्चे चलने, खाने, कपड़े बदल पाने तथा अन्य क्रियाकलापों को करने में परेशानी महसूस करते हैं। मस्तिष्क अभिघात चोट लगने अथवा दुर्घटना आदि के होने पर होता है। अभिघात की गंभीरता मस्तिष्क के हिस्से और चोट की गहराई पर निर्भर करती है। मस्तिष्क अभिघात के कारण बच्चे की क्रियाशीलता, सोचने की क्षमता, बोलने, देखने व सुनने में परेशानी उत्पन्न हो जाती है।
इसके अलावा कुछ नवजात शिशुओं/बच्चों में मस्तिष्क संबंधी अन्य परेशानियां उत्पन्न होती हैं जो निम्नलिखित प्रकार हैं। शिशुओं में होने वाली मस्तिष्क संबंधी परेशानियों से प्रश्नोत्तरी के माध्यम से पाठकों को अवगत कराने का प्रयास किया जा रहा है।
तीन माह के एक शिशु को दो दिनों से बुखार हो तथा एक घंटे से उसके शरीर में ऐंठन हो, शिशु बीमार, सा दिखाई दे रहा हो तथा उसकी श्वास तेजी से चल रही हो। उस शिशु की गर्दन में अकड़न तथा 'कर्निंग्स साइन' (एक बीमारी जिसमें रोगी पीठ के बल लेटा रहता है तथा जांघ को ऊपर की ओर झुकाता है और पैर को पूरी तरह फैलाना उसके लिए असंभव सा हो जाता है) लक्षण भी नहीं दिखाई दे रहा हो। यह किस बीमारी का संकेत हो सकता है?
तीन माह के नवजात शिशु के शरीर में अकड़न के साथ बुखार होना 'पायोजेनिक मेनिन्जाइटिस' का संकेत हो सकता है। इस अवस्था में गर्दन में अकड़न, 'कर्निग्स साइन' जैसे 'मेनिन्जियल इरिटेशन' परिलक्षित नहीं होता है। ऐसे में फूले हुए और ऐंठे हुए 'फोन्टेनील' को देखना चाहिए। नवजात शिशुओं की सांस में बाधा मस्तिष्क ज्वर के कारण हो सकती है।
उक्त लक्षणों के अतिरिक्त बुखार से ग्रसित शिशु को निम्नलिखित लक्षणों में से कोई एक अथवा अधिक लक्षण के दिखाई देने पर 'पायोजेनिक मेनिन्जाइटिस' होने की संभावना हो सकती है-
बदला हुआ 'सेन्सोरियम' अर्थात सुस्ती, चिड़चिड़ापन, अधिक रोना, मूर्छा या बेहोशी की परेशानी हो सकती है।
तंत्रिका संबंधी विकृति
¶´ÉÉºÉ में बाधा जिसमें सीने में कोई संकेत न मिले।
ʺɮú दर्द एवं उल्टी
”¤ÉϱVÉMÉ फोन्टेनील' (सिर की हड्डियों के मिलने का स्थान जो पैदा होने के समय झिल्लीनुमा होता है)
”]õÉìCºÉÒʨɪÉÉ' (शरीर में घातक संक्रमण हो जाना), सुस्ती, भोजन कर पाने में असमर्थता, बुखार के न रहने के बावजूद स्वस्थ महसूस न कर रहा हो, के लक्षण नवजात शिशुओं में देखने को मिल सकते हैं।
nùÉä वर्ष से कम उम्र के बच्चों में यह लक्षण बहुधा दिखाई नहीं देता है लेकिन शिशुओं में अक्सर गर्दन में खिंचाव दिखाई पड़ सकता है।
'पायोजेनिक मेनिन्जाइटिस' एक गंभीर बीमारी है, जिसका समय पर तत्परता से इलाज नहीं हुआ तो शिशु के शरीर में विकार तथा उसकी मृत्यु तक हो सकती है। ऐसे लक्षण परिलक्षित होने पर तुरन्त अस्पताल ले जाना चाहिए। इस परिस्थिति में शिशु को अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है।
दो वर्ष का एक बच्चा जिसे पिछले 6-7 दिनों से अनियमित रूप से बुखार आ रहा है। तीन दिनों से उल्टी हो रही है और सुबह से उसे सुस्ती आ रही है। परीक्षण में सुस्त बच्चे का किसी प्रकार का स्नायविक विकास भी नहीं दिखाई दे रहा है। किसी प्रकार की बाधा पड़ने पर बच्चा चिढ़ रहा है। संबंधित जांच की रिपोर्ट भी सामान्य है। यह किस बीमारी का संकेत हो सकता है?
छह माह से तीन वर्ष की उम्र का बच्चा जिसे 4-5 दिनों से अधिक समय से बुखार आ रहा है, 5-7 दिनों के बुखार के बाद सुस्ती, चिड़चिड़ापन तथा शरीर में ऐंठन दिखाई दे रही है तो दिमाग की टी.बी. (ट्यूबरकुलर मेनिन्जाइटिस) की संभावना हो सकती है। शुरुआती अवस्था में बहुधा 'मेनिन्जियल इरिटेशन' दिखाई नहीं देती है। इस बीमारी की प्रथम अवस्था में बच्चों में बढ़ता चिड़चिड़ापन और मामूली सुस्ती दिखाई देती है। इसके अलावा भी निम्नलिखित एक अथवा अधिक लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
फूला और ऐंठा हुआ 'फोन्टेनील'
ऐंठन के दौरे
एक तरफ का लकवा अथवा लकवे के पहले आने वाली कमजोरी की स्थिति
दिमाग से निकलने वाली अनेकों स्नायु से संबंधित लकवा
'पेल ऑप्टिक डिस्क्स' (आंख)
पूरे शरीर में कड़ापन
यह अत्यंत ही आवश्यक है कि 'ट्यूबरकुलर मेनिन्जाइटिस' का शीघ्र निदान हो। इस बीमारी में मृत्यु दर एवं शारीरिक विकृति इस पर निर्भर करती है कि जिस समय निदान हुआ उस समय बीमारी की स्थिति क्या थी। 5-7 दिनों या इससे अधिक दिनों के बुखार तथा स्नायविक लक्षणों के साथ छह माह से लेकर 5 वर्ष तक के बच्चों में इस बीमारी के होने का अंदेशा बना रहता है। चिड़चिड़ापन, सुस्त बच्चा, बार-बार उल्टी होने अथवा न होने, सोने का बदला तरीका-शुरुआती स्नायविक परेशानी का प्रदर्शन हो सकता है। इस बीमारी का शीघ्र निदान एवं उपचार शिशु के जीवन पर होने वाले खतरे को कम कर देता है। अक्सर यह बीमारी जब अपनी आरम्भिक अवस्था (स्टेज-1) में होती है तो मरीज इलाज से ठीक हो जाता है। दूसरी अवस्था (स्टेज-2) में 25 प्रतिशत मृत्युदर तथा 25 प्रतिशत शारीरिक विकृति होती है, तीसरी अवस्था (स्टेज-3)में 50 प्रतिशत मृत्यु दर तथा लगभग सभी बचने वाले मरीजों में स्नायविक विकृति हो जाती है।
शिशुओं में लकवा की बीमारी
डेढ़ वर्षीय एक बच्चे को बुखार है, शरीर में अकड़न है तथा पिछले छह घंटे से वह अपने दाहिने हिस्से को हिला-डुला नहीं पा रहा है। बच्चे को पहले से कोई बीमारी नहीं है। शारीरिक परीक्षण में दाहिनी तरफ फ्लैकिड 'हेमीप्लीजिया' देखने को मिलती है। 'फोन्टेनील' सामान्य है। 'मेनिन्जियल इरिटेशन' का लक्षण भी नहीं दिखाई दे रहा है। इसका संभावित निदान क्या है?
6 माह से 3 वर्ष की अवस्था में हेमीप्लीजिया के अचानक दौरे में 'एक्यूट इन्फैन्टाइल हेमीप्लीजिया सिन्ड्रोम' का निदान आवश्यक है। कई बार यह परेशानी एक स्वस्थ बच्चे में भी देखी जाती है जैसा वयस्कों में 'स्ट्रोक' होता है। इस 'सिन्ड्रोम' का वास्तविक कारण क्या है, इसकी सही जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन इसका बेसिक 'पैथोजेनिक मेकैनिज्म इन्ट्रासेरीब्रल थ्रोम्बो एम्बोलिक फेनोमेनन' है। कई बार इन मामलों में सी.एस.एफ. (रीढ़ का हड्डी का पानी) सामान्य होता है। ऐसे बच्चों की गहराई से जांच की जानी चाहिए खासकर उन बच्चों की जिन्हें पैदाइशी हृदय विकार है (बार-बार शरीर नीला पड़ता है) तथा रीढ़ का हड्डी के पानी की भी जांच की जानी चाहिए। इस बीमारी के दूसरे संभावित कारण निम्नलिखित हैं-
Ênù¨ÉÉMÉ की टी.बी.
'पायोजेनिक मेनिन्जाइटिस'
मस्तिष्क के ऊपर खून का गोला बन जाना
'टॉड्स परेसिस' जिसमें 'फोकल सीजर्स' (शरीर के किसी हिस्से में दौरा पड़ना) अथवा 'सेकण्डरी जनरलाइज्ड सीजर्स' (सारे शरीर का दौरे से प्रभावित होना) ½þÉä*”mÉÉ䨤ÉÉä एम्बोलिक फेनोमेनन' (साथ में पैदाइशी हृदय में विकार)
खून की सबसे बड़ी नस 'कैरोटेड' में चोट
मस्तिष्क से संबंधित बीमारियों का कुछ लक्षण तो सामान्य होता है परन्तु कुछ लक्षण सही प्रकार से परिलक्षित नहीं होता है तथा इसका निर्धारण चिकित्सक ही कर पाते हैं। मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियों के लक्षण इसके अतिरिक्त भी हो सकते हैं जो उस समय संबंधित बीमारी से पीड़ित होने पर ही उसका पता लगाया जा सकता है। ऐसे में शिशु को किसी भी प्रकार की उक्त लक्षणों से मिलती जुलती परेशानी उत्पन्न होने पर अविलंब शिशु रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए। उक्त बीमारियों के बारे में दी गयी जानकारी संक्षिप्त है तथा पाठकों की जागरूकता की दृष्टि से दी गयी है। मस्तिष्क से संबंधित किसी भी परेशानी के उत्पन्न होने पर चिकित्सक के सलाह के बगैर बच्चे को कोई दवा न दें।
टिप्पणियाँ