राष्ट्रीय चुनौतियों पर गहन चिंतन
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राष्ट्रीय चुनौतियों पर गहन चिंतन

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Dec 1, 2012, 12:00 am IST
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राष्ट्रीय चुनौतियों पर गहन चिंतन

दिंनाक: 01 Dec 2012 11:42:50

विभूश्री

इसे बेहद दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाना चाहिए कि जिन सुनहरे सपनों को लेकर हमने आजाद भारत में कदम रखा था, वो सपने आधी सदी से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी पूरे नहीं हुए हैं। इसके उलट इस दौरान अपना राष्ट्र भारत अनेक प्रकार की चुनौतियों से घिरता जा रहा है। चुनौतियों के ये बादल दिनों-दिन सघन होते जा रहे हैं। ऐसे में किसी भी सजग चिंतक और राष्ट्रवादी विचारक का चिंतित होना स्वाभाविक  ही है। पिछले कई दशक से अनेक पत्र-पत्रिकाओं में अपने वैचारिक लेखों के माध्यम से देश की तमाम समस्याओं पर सार्थक चिंतन करने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक शिव कुमार गोयल अपना लेखकीय दायित्व निभाते रहे हैं। हाल ही में उनके लेखों में से चयनित कुछ प्रमुख लेखों का संकलन पुस्तकाकार में प्रकाशित होकर आया है। 'चुनौतियों से घिरा भारत' शीर्षक नामक इस पुस्तक में उनके कुल 39 लेख संकलित हैं।

इन लेखों के द्वारा हम विगत तीन-चार दशकों के दौरान देश के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों को गहनता से समझ सकते हैं। वहीं इन समस्याओं के दुष्प्रभाव और उनके लिए उठाए जाने वाले संभावित व उचित कदमों पर भी लेखक ने विस्तार से चर्चा की है। राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों को लेखक ने अपने लेखों में प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है। इस प्रकार के लेखों में 'वंदेमातरम् का विरोध क्यों?', 'घुसपैठ के भयावह रूप', 'धर्मान्तरण सुरक्षा के लिए भीषण खतरा' और 'गणतंत्र पर हावी गन और धन-तंत्र' को शामिल किया जा सकता है। हालांकि ये सभी लेख अलग-अलग वर्षां में अलग-अलग पत्रों में और अलग-अलग मुद्दों के लिए लिखे गए थे, लेकिन इसके पीछे लेखक के मंतव्य को समझा जा सकता है। एक ऐसे दौर में जब पत्रकारिता भी सरोकारों से दिनों-दिन दूर होती जा रही है, धन-बल और ग्लैमर की चकाचौंध में स्तरहीन होती जा रही पत्रकारिता के इस युग में भी शिव कुमार गोयल जैसे पत्रकार और उनके द्वारा लिखे गए सभी लेख गहरी आश्वस्ति प्रदान करते हैं। ये सभी लेख भले ही आज की राजनीतिक- सामाजिक घटनाओं पर आधारित नहीं हैं, लेकिन इनमें उठाए गए मुद्दे अब भी प्रासंगिक बने हुए हैं, इसलिए इनका महत्व कम नहीं है। साथ ही इनकी एक विशेषता यह भी है कि इनमें लेखक की सद्भावना को भी समझा जा सकता है। तमाम धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उद्धरणों के द्वारा लेखक पाठक के मन में नैतिक मूल्यों के संवर्धन का भी कार्य करते चलते हैं। कहीं न कहीं लेखक की यह मान्यता भी इन लेखों में परिलक्षित होती है कि देश की तमाम समस्याओं का समाधान तभी निकल सकता है जब देश का आम नागरिक नैतिक मूल्यों के महत्व को समझकर उसे अपनाने का संकल्प लेगा। लेखक ने अपने कई लेखों में अनेक तथ्यों के आधार पर स्वाधीनता के बाद देश पर सर्वाधिक लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी की नीतियों की आलोचना की है।

शिव कुमार जी के लेखों की भाषा इतनी सहज और सरल है कि पाठकों को आसानी से समझ में आ जाती है। यही वजह है कि शिव कुमार जी के लेख बहुत लोकप्रिय होते रहे हैं। लेखक की सबसे बड़ी चिंता यह है कि देश के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों को स्वीकार कर उसे सुलझाने में सक्षम देश की युवा पीढ़ी पूरी तरह जागरूक नहीं है। उसे भी राजनीतिक और अलगाववादी ताकतें अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। 'युवा शक्ति ही जूझेगी संकटों से' शीर्षक लेख में वे लिखते हैं, 'यदि हम शुरू से ही अपनी युवा पीढ़ी को, विशेषकर बच्चों को यह बता पाते कि आजादी यूं ही नहीं मिल गई है, इसके लिए हजारों व्यक्तियों ने फांसी पर झूलकर प्राणोत्सर्ग किए हैं, लाखों ने अपनी जवानी जेलों में काटी है, 'तब उन्हें पता चलता कि आजादी की क्या कीमत होती है।' ऐसे ही अनेक विचारों से यह पुस्तक  परिपूर्ण है। यह पुस्तक न केवल देश के चिंतनशील नागरिकों को पढ़नी चाहिए बल्कि नई पीढ़ी के पत्रकारों को भी पढ़नी चाहिए, ताकि उन्हें बोध हो सके कि सरोकारों से प्रतिबद्ध पत्रकार के कलम की धार कैसी होती है!

पुस्तक का नाम –  चुनौतियों से घिरा भारत

लेखक        –  शिव कुमार गोयल

प्रकाशक        –  हिन्दी साहित्य सदन

                   2 बी.डी. चैंबर्स,

                   10/54,

                   देशबंधु गुप्ता मार्ग,

                  करोल बाग, नई दिल्ली-5

मूल्य – 100 रुपए  पृष्ठ – 192

दूरभाष-(011)-23553624, 23551344

विचार बदलिए निरोग रहिए

आयुर्वेद में कहा गया है, 'स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ विचार जन्म लेते हैं।' इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अच्छे रचनात्मक विचारों के लिए शरीर और मन का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। लेकिन इसके साथ ही यह बात भी पूरी तरह सही है कि यदि आप निरोग रहना चाहते हैं तो आपको अपनी विचारधारा को पहले रोग मुक्त करना होगा। कहने का सीधा-सा अर्थ है कि यदि आप मन से मान लेंगे कि आप बीमार हैं तो अनेक तरह के रोगों से आप ग्रसित हो सकते हैं। इसी तरह की धारणा को बहुत विस्तार और अनेक उदाहरणों के आलोक में अनिल भटनागर ने अपनी पुस्तक 'रिवर्स योर थॉट्स रिवर्स योर डिजीज' में व्यक्त किया है।

अनिल भटनागर रेकी चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञ हैं और प्रेरक (मोटिवेशनल) क्रियाकलापों से वर्षों से जुड़े रहे हैं। समीक्ष्य पुस्तक में साइको, न्यूरो और इम्यूनोलाजी के गहन अंतर्संबंधों का विश्लेषण करते हुए लेखक ने यह सिद्ध किया है कि हमारा स्वस्थ या रोगी होना हमारे विचारों और भावनाओं पर बहुत हद तक निर्र्भर करता है। वह लिखते हैं कि हमारे अच्छे या बुरे विचारों से रोग दूर करने वाले या रोगी बनाने वाले रासायनिक पदार्थ शरीर में श्रावित होते हैं, जिनकी सघनता ही आगे चलकर किसी रोग का रूप धारण कर लेती है। ऐसे में ये साफ होता है कि रोगों से दूर होने के लिए हमें अपने विचारों को नियंत्रित करना होगा, साथ ही सकारात्मक विचारों को ही अपनाना होगा।

कुल तीन खंडों और एक परिशिष्ट में विभाजित इस पुस्तक को पढ़ते हुए सकारात्मकता का अहसास होता है। इसका कारण यह है कि इसमें सीधे तौर पर रोग के लक्षण और उसके निवारण के उपाय नहीं बताए गए हैं। पहले उन वजहों पर विस्तार से चर्चा की गई है जिससे ये रोग जन्म लेते हैं। पुस्तक के पहले खंड 'रिवर्स योर अप्रोच' में मन और शरीर के अंतर्संबंध को स्पष्ट करते हुए यह भी बताया गया है कि शरीर के बीमार होने पर हम उसकी वजह को खोजे बगैर सीधे दवाओं की शरण में जाकर इलाज कराने लगते हैं। इसमें कुछ समय के लिए रोग दब तो जाता है लेकिन कई अलग बीमारियों के रूप में वह फिर हमारे सामने आ जाता है। पुस्तक के दूसरे खंड 'रिवर्स योर थॉट्स' में लेखक ने कदम दर कदम  भावनाओं को नियंत्रित करने और विचारों को बदलने के प्रभावी तरीके बताएं हैं।

पुस्तक का तीसरा खंड सबसे महत्वपूर्ण है जिसमें लेखक ने बीमारियों के निवारण की विधियां बताई है। इसमें लगभग 150 बीमारियों के होने की वजहें, उसका कारण, उसके लक्षण और इसके निराकरण की 'साइको-प्रैक्टिकल' विधि भी बताई है। शरीर के लगभग सभी प्रमुख अंगों से सबंधित सामान्य बीमारियों पर लेखक ने विस्तार से चर्चा की है। 

वस्तुत: यह पुस्तक पाठकों को इस तरह से प्रशिक्षित करती है कि इस पर अमल करके, विचारों को सही दिशा में गतिशील बनाकर वे बीमार होने से बचे रह सकते हैं। और यदि कहीं बीमार पड़ भी जाएं तो यह पुस्तक एक अच्छे प्रेरक डाक्टर की तरह सलाह भी देती है। यह पुस्तक केवल बीमारों के लिए ही नहीं बल्कि स्वस्थ व्यक्तियों के लिए भी उपयोगी है, क्योंकि इसका अध्ययन कर आप बीमारियों के चंगुल से बचे रह सकते हैं। यह पुस्तक आज के समय में और भी उपयोगी है जब दिनों-दिन लोग बीमारियों के चंगुल में फंसते जा रहे हैं।

पुस्तक का नाम     –रिवर्स योर थॉट्स रिवर्स

योर डिजीज (अंग्रेजी)

लेखक   –  अनिल भटनागर

प्रकाशक    –  ग्लोबल विजन प्रेस

                4855/24 अंसारी रोड,                    

                दरियागंज, नई दिल्ली-02

पृष्ठ     –  353

मूल्य       –        245 रुपए

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