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तिब्बत पर भारत के मौन से बढ़ा देश पर खतरा

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Nov 24, 2012, 12:00 am IST
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तिब्बत पर भारत के मौन से बढ़ा देश पर खतरा

दिंनाक: 24 Nov 2012 15:55:43

 

राष्ट्रधर्म का 'हिमालय–तिब्बत' विशेषांक लोकार्पण एवं साहित्यकार सम्मान समारोह

–ले.जनरल (से.नि.) एस.के. सिन्हा, पूर्व राज्यपाल, जम्मू–कश्मीर

'तिब्बत पर चीन के बढ़ते हस्तक्षेप पर भारत यूं ही मौन साधे रहा तो देश की अस्मिता व संप्रभुता खतरे में पड़ जाएगी। देश की सरकार को चीन के भारत विरोधी मंसूबों को समझना होगा। हिमालय और तिब्बत दोनों ही भारत की सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल रहे हैं लेकिन इसकी अवहेलना करके हमने चीनी खतरे को न्योता दिया है। देशवासियों को भी इस गम्भीर खतरे को समझना होगा'। उक्त विचार जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल ले. जनरल (से.नि.) एस.के. सिन्हा ने विगत दिनों लखनऊ (उ.प्र.) स्थित माधव सभागार में राष्ट्रधर्म के 'हिमालय-तिब्बत' विशेषांक के लोकार्पण एवं साहित्यकार सम्मान समारोह में व्यक्त किए।

श्री सिन्हा ने आगे कहा कि महाभारत काल में गान्धार वर्तमान् अफगानिस्तान तक भारत में था। बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य ने विदेशी आक्रमणकारियों को खदेड़ कर इस पर कब्जा किया। पर, बाद में राजनीतिक व सामाजिक चेतना में आई उदासीनता ने देश की सीमाओं पर खतरा खड़ा कर दिया। सरकार हिमालय के सामाजिक महत्व के आकलन में भी चूक गई। चीन की तरफ से खड़े होने वाले खतरे को सरकार और राजनेता समझ नहीं सके। तत्कालीन सेनाध्यक्ष करियप्पा ने प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू से हिमालय की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने का आग्रह किया था। गृहमन्त्री बल्लभ भाई पटेल ने भी छ: पन्ने का इस सन्दर्भ में पत्र लिखा था। उन्होंने नेहरू जी को चीन के इरादों के प्रति आगाह किया था। इसके कुछ हफ्ते बाद सरदार पटेल का निधन हो गया। इसके पहले उन्होंने आन्तरिक सुरक्षा के मद्देनजर असम के राज्यपाल श्री जयराम को निर्देश जारी कर दिए थे। यही वजह है कि तवांग आज भारत में है। उन्होंने कहा कि पटेल न होते तो आज तवांग भी चीन के नियन्त्रण में होता। पर सरकार की नीति ने अक्साई चिन के हजारों वर्ग किमी. क्षेत्र पर चीन का कब्जा करा दिया। भारत को तीन-चार वर्षों तक इसकी जानकारी ही नहीं हो सकी। 

समारोह के विशिष्ट अतिथि के रूप में पाञ्चजन्य साप्ताहिक के संपादक श्री बल्देव भाई शर्मा ने कहा कि देश में 'लुक ईस्ट नीति' की तरह 'लुक हिमालय नीति' बनना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि चीन ने भारत के पड़ोसियों को ही भारत का दुश्मन बनाने का सुनियोजित अभियान छेड़ रखा है। देश की सरकार को इसे समझना होगा। उन्होंने कहा कि हिमालय भारत के लोगों में विजेता भाव का संचार करता रहा है। तिब्बत जब तक स्वतन्त्र था, चीन की सीमायें हमसे बहुत दूर थीं। तिब्बत में चीन का हस्तक्षेप बढ़ा तो वह भारत की सीमाओं के करीब आ गया है। नेपाल में आई.एस.आई, आतंकवादियों और माओवादियों का गठजोड़ घातक है। यह पाकिस्तान और चीन की साठगांठ है।

समारोह की अध्यक्षता तिब्बती शोध संस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सारनाथ के निदेशक भिक्षु प्रो. लोबसाङ् नोरबू शास्त्री ने की। उन्होंने कहा कि तिब्बत सदैव विश्वशान्ति का सन्देश देता रहा है। भारत के साथ उसका स्वाभाविक, सांस्कृतिक रिश्ता रहा है। पर आज तिब्बत राष्ट्र चीन की हिंसक गतिविधियों का शिकार है इसके चलते यह पूरा क्षेत्र खतरनाक रूप धारण कर चुका है। यहां मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हो रहा है।

अतिथियों के संबोधन से पूर्व राष्ट्रधर्म के सम्पादक श्री आनन्द मिश्र 'अभय' ने विशेषांक की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि चीन ने भारत को पूरी तरह घेर लिया है। समारोह में इक्कीस हजार रुपए का राष्ट्रधर्म हिन्दी सेवा सम्मान श्री रा. शौरीराजन (चेन्नई) और प्रो. इन्द्रनाथ चौधरी (नयी दिल्ली), दस हजार रुपए का राष्ट्रधर्म गौरव सम्मान श्री विजय कुमार (नयी दिल्ली) और श्री अशोक अंजुम (अलीगढ़), कहानी प्रतियोगिता में सात हजार रुपए का प्रथम पुरस्कार श्री अजय प्रताप सिंह (फतेहपुर), पांच हजार रुपए का द्वितीय पुरस्कार श्री गोविन्द शर्मा (हनुमान गढ़, राजस्थान) और तीन हजार रुपए का तृतीय पुरस्कार सुश्री उर्मिला फुसकेले (भोपाल), पांच हजार रुपए का व्यंग्य लेख प्रतियोगिता पुरस्कार श्री के.पी. सक्सेना 'दूसरे' (रायपुर-छत्तीसगढ़) को दिया गया।

समारोह का संचालन श्री पवनपुत्र बादल ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन श्री आनन्द मोहन चौधरी ने किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार श्री के. विक्रमराव सहित बड़ी संख्या में गण्यमान्यजन उपस्थित थे। धीरज त्रिपाठी

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