मुश्किल घड़ी में दूर क्यों हुआ भारत?
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मुश्किल घड़ी में दूर क्यों हुआ भारत?

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Nov 17, 2012, 12:00 am IST
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आहत सू ची ने पूछा-मुश्किल घड़ी में दूर क्यों हुआ भारत?

दिंनाक: 17 Nov 2012 14:53:55

आहत सू ची ने पूछा–

25 साल बाद भारत आईं भारत में पढ़ीं-बढ़ीं म्यांमार की विपक्षी नेता आंग सान सू ची ने डा. मनमोहन सिंह की संप्रग सरकार की अमरीका परस्त विदेश नीति पर तीखी टिप्पणी क्या की, साउथ ब्लाक के अंग्रेजीदां अधिकारी बगलें झांकने को मजबूर हो गए। 14 नवम्बर को राजधानी दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू स्मृति व्याख्यान के अंत में सू ची ने कहा कि म्यांमार के बुरे वक्त में भारत ने उससे दूरी बनाई हुई थी। 'वे दिन बड़े कष्ट के थे और भारत दूर हो रहा था।' म्यांमार भारत का ठीक पड़ोसी देश है और श्री अटल बिहारी वाजपेयी की राजग सरकार ने भारत के सभी पड़ोसी देशों के साथ अच्छे सम्बंध बनाने की पहल की थी। लेकिन 2004 में संप्रग की सरकार बनने के बाद से ही विदेश नीति पर पश्चिमी रंग का ऐसा मुलम्मा चढ़ा कि नेपाल, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड जैसे पड़ोसियों की अनदेखी करके अमरीका की जी हुजूरी शुरू हो गई।

सू ची की पीड़ा सही है, क्योंकि तब म्यांमार में जबरदस्त राजनीतिक उथल-पुथल का दौर था और खुद सू ची अपने घर में नजरबंद थीं। अपने देश में लोकतंत्र की वापसी कराने वालीं, अब 67 की, नोबुल विजेता सू ची '60 के दशक में भारत में रहकर पढ़ी थीं, जब उनकी माताजी यहां राजदूत थीं। अपने भाषण में उन्होंने आगे के लिए उम्मीद जताते हुए कहा कि म्यांमार के लोकतंत्र की राह पर बढ़ते हुए उन्हें आशा है कि भारतवासी उनके साथ खड़े होंगे और कदम से कदम मिलाकर चलेंगे।

जापानी संसद में दलाई लामा ने कहा–

तिब्बत का दर्द समझें जापानी सांसद

पिछले दिनों दलाई लामा जापान में थे। वहां उन्होंने देश के महत्वपूर्ण राजनीतिकों से अपनी बातचीत में तिब्बत में बिगड़ते जा रहे हालात पर चिंता जताई और सांसदों से तिब्बत का दौरा करके वहां के प्रशासन से पीड़ित बौद्धों द्वारा आत्मदाह की घटनाओं की खुद तहकीकात करने को कहा। दलाई लामा ने जापानी सांसदों से कहा कि वे वहां आत्मदाह की घटनाओं की वजहों का पता लगाएं। उनकी यह अपील चीन द्वारा उन्हें बार-बार तिब्बत में आंदोलन-प्रदर्शनों को उकसाने का दोषी बताने के बीच आई है। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे सहित करीब 130 जापानी सांसदों ने दलाई लामा के भाषण को पूरी गंभीरता से सुना। जापान ने जिस तरह दलाई लामा का खुले दिल से स्वागत किया उससे चीन की भवैं तिरछी होनी ही थीं, सो हुईं भी। जापानी संसद में दलाई लामा ने बड़े भावुक शब्दों में कहा, 'मैं संसदीय समूहों से अनुरोध करता हूं कि तिब्बत का दौरा करें, उन इलाकों में जाकर देखें जहां तिब्बती बेहद दर्दनाक आत्मदाहों में जान दे रहे हैं।' उनका कहना था कि अगर बाहर देश के सांसद तिब्बत की सही तस्वीर बताएं तो शायद चीनी प्रशासन, नेताओं को पता चले कि वहां असल में चल क्या रहा है। अभी 12 नवम्बर को भी तिब्बत में दो तिब्बतियों ने आत्मदाह किया था। दलाई लामा ने चीन सरकार को कहा कि वह इन घटनाओं की गंभीरता से जांच करे, बजाय उन्हें बुरा-भला कहने के। इस पर चीनी विदेश विभाग के प्रवक्ता होंग ली ने उन पर ही आत्मदाह को उकसाने का आरोप मढ़ दिया था कि वे 'तिब्बत की आजादी' के लिए ऐसा कर रहे हैं। जापान पर भी निशाना साधते हुए ली ने कहा,  'चीन हर उस देश और हर उस इंसान का पुरजोर विरोध करता है जो दलाई लामा की अलगाववादी गतिविधियों को समर्थन देते हैं।'

लेकिन चीन की घुड़कियों को नजरअंदाज करते हुए जापान के राजनेताओं ने दलाई लामा का दिल खोल कर स्वागत ही नहीं किया, बल्कि उनकी अपील को गंभीरता से भी सुना। अगले आम चुनाव में फिर से प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार शिंजो आबे ने दलाई लामा की अपील से सहानुभूति जताते हुए कहा कि 'मैं तिब्बत और तिब्बत के वे हालत बदलने का लगातार समर्थन करने का वायदा करता हूं जिनमें लोग दमन झेल रहे ½éþ*'l

 

बंगलादेश की मांग

'71 के नरसंहार के लिए माफी मांगे पाकिस्तान

पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार उस समय भौचक्की रह गईं जब ढाका में उनसे अपनी आधिकारिक बातचीत में बंगलादेश की विदेश मंत्री दीपू मोनी ने कहा कि 'बंगलादेश उम्मीद करता है कि 1971 में पाकिस्तानी फौजियों द्वारा बंगलादेश में किए गए नरसंहार के लिए पाकिस्तान माफी मांगे।' इस पर हिना ने इतना ही कहा कि 'बीते को दफनाकर रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहिए।' अवामी लीग के तीन साल पहले ढाका में सत्ता संभालने के बाद हिना पहली पाकिस्तानी मंत्री थीं जो पिछले दिनों बंगलादेश गई थीं। दीपू मोनी ने सही मौका भांपते हुए बंगलादेश के मन की बात बोलने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई। l

ओबामा की दूसरी पारी

पहले भारतीय–अमरीकी को मंत्री बनाने की तैयारी?

अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो बहुत संभव है 39 साल के भारतीय-अमरीकी राजीव शाह अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा के नए मंत्रिमंडल में जगह पा जाएंगे। 'यू एस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवेलपमेंट' में सबसे कामयाब प्रसासक के नाते खुद का सिक्का जमा चुके शाह की दावेदारी बड़ी पुख्ता मानी जा रही है। अपने प्रशासकीय गुणों का लोहा मनवा चुके शाह ओबामा के प्रति एक निष्ठावान प्रशासक माने जाते हैं और प्रशासकीय व राजनीतिक सूत्रों की मानें तो राजीव शाह स्वास्थ्य एवं मानव सेवा, कृषि और शिक्षा में से किसी एक विभाग के मंत्री बनाए जा सकते हैं। शाह को डेमोक्रेट और रिपब्लिकन, दोनों पालों के सांसदों से भरपूर समर्थन मिलने की भी उम्मीद है। हालांकि व्हाइट हाउस ने इस बाबत कुछ भी कहने से इनकार किया है, लेकिन ओबामा प्रशासन के करीबी लोग शाह की दावेदारी में कोई अड़चन नहीं देख रहे हैं।

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