संविधानेतर सत्ता
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नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का यह कहना कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) जैसी संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए, संप्रग सरकार के कामकाज पर तीखी टिप्पणी मानी जानी चाहिए, क्योंकि सीबीआई और सीवीसी के मामले में यह सरकार बेहद बदनाम हो चुकी है। सीवीसी के रूप में पी.जे. थामस जैसे दागदार व्यक्ति की नियुक्ति को लेकर सरकार नीयत और प्रक्रिया दोनों ही दृष्टि से जबर्दस्त आरोपों से घिर गई और उसकी विश्वसनीयता पर ही सवाल उठ खड़े हुए कि देश में भ्रष्टाचार पर निगाह रखने और उसे रोकने में जिस संस्था की सबसे बड़ी भूमिका है, उसकी नियुक्ति में ही जब सरकार ईमानदारी नहीं बरत रही और एक दागदार व्यक्ति को उस शीर्ष पद पर नियुक्त कर रही है तो इसके पीछे की सरकार की मंशा को समझा जा सकता है। इसी तरह सीबीआई के राजनीतिकरण और सत्ता के दबाव में काम करने की उसकी शैली पर लगातार सवाल उठते रहे हैं कि कांग्रेस लोगों को सीबीआई का डर दिखाकर संप्रग सरकार को बनाए रखने के लिए उन नेताओं और दलों पर दबाव बनाती है। मुलायम सिंह और मायावती के नाम इस मामले में खूब उछले कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के संप्रग से अलग होने और सरकार को समर्थन न देने के बाद बहुमत के संकट से उबरने के लिए सपा व बसपा को सीबीआई के डर से सरकार के समर्थन में खड़े रहना पड़ा।
आय से अधिक संपत्ति के मामलों में दोनों पार्टी प्रमुखों पर सीबीआई का शिकंजा रहा है, जिसे जरूरत के मुताबिक कांग्रेस के इशारे पर कसा या ढीला किया जाता रहा है। ताज कॉरीडोर मामले में सीबीआई की विशेष अदालत के तर्क के आधार पर अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ से भी मायावती और उनकी सरकार में उनके बेहद कृपापात्र रहे केबीनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बड़ी राहत मिल गई। 5 जून, 2007 को सीबीआई की विशेष अदालत ने राज्यपाल से मायावती के विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति न मिलने पर मामले को खारिज कर दिया था। कांग्रेस किस तरह अतीत में अपने सत्तास्वार्थों के लिए राज्यपालों व सीबीआई का दुरुपयोग करती रही है, यह किसी से छिपा नहीं है, इसलिए 175 करोड़ की ताज कॉरीडोर परियोजना, जो शुरू से ही विवादों में रही, उसमें मायावती की लिप्तता के प्रति राज्यपाल और सीबीआई का रवैया आश्चर्यजनक नहीं है। संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता हमेशा कांग्रेस को खटकती रही है और उसे वह अपने सत्ता स्वार्थों में बाधक मानती रही है। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले और कोयला खदान आवंटन में हुए महाघोटालों के 'कैग' के आकलन पर कांग्रेसी मंत्री व नेता कितने हमलावर हो गए थे, यह कल की ही तो बात है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय पर यहां तक आरोप लग गए कि वे राजनीति में आने के लिए यह सब कर रहे हैं। चुनाव आयोग की स्वायत्तता भी कांग्रेस को जब-तब नागवार गुजरती रही है। लेकिन उसके संवैधानिक दर्जे के सामने वह बेबस है। शायद इसीलिए सीबीआई और सीवीसी को भी संवैधानिक दर्जा दिए जाने की बात उठी है, ताकि इनके दुरुपयोग को रोका जा सके और इनकी सही व निर्विवाद भूमिका को अंजाम दिया जा सके। लेकिन कांग्रेस व संप्रग सरकार को यह सुझाव रास नहीं आ रहा, क्योंकि इससे उसके सत्ता स्वार्थों पर आंच आती है और उसकी संविधानेतर सत्ता पर अंकुश लगता है।
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