|
कहते हैं, कौवा बड़ा सयाना होता है, लेकिन खाता है गंदगी। बहुत पुराने समय की बात है। कौवे की चालाकी और कुटिलता से सभी पक्षी तंग आ गये। वे गरुड़ जी के पास गये क्योंकि उन दिनों वही पक्षियों के मुखिया थे। गरुड़ जी ने जितने भी पक्षी थे, सबको एक स्थान पर इकट्ठा आने को कहा। उनमें कौवे भी थे। जब सब पक्षी आ गये तो गरुड़ जी ने कहा- 'आंखें बंद करके भगवान का ध्यान करो। जब मैं कहूं, तभी आंखें खोलना। अन्त में सबको प्रसाद बंटेगा।'
पक्षियों ने आंखें बंद करके ध्यान लगाया। कौवों ने भी ध्यान का ढोंग रचा, पर मन में सोचते रहे कि प्रसाद तो बहुत रखा है, क्यों न हम सबसे पहले ही उसका स्वाद ले लें। कुछ देर बाद कौवों ने एक-एक आंख खोलकर देखा तो चौंके कि अरे! यहां तो जितने पक्षी हैं, कोई भी ध्यान नहीं कर रहा, बल्कि आनन्द से प्रसाद खाने में जुटे हैं। हम ही पिछड़ गये। अब तो कौवों ने दोनों आंखें खोलकर गरुड़ जी से कहा- 'वाह महाराज! हम तो ध्यान ही करते रहे और ये सब प्रसाद खाते रहे! आप इन्हें दंड दें।'
गरुड़ जी ने कहा- 'तुम लोगों की शिकायत बहुत समय से मुझे मिलती रही, आज मैं जांच कर रहा था कि तुम्हारी भूल है या नहीं। इसीलिए मैंने आंखें बन्द करने को कहा था, किन्तु इन सबको पहले ही बता दिया था कि तुम लोग प्रसाद खाना। फिर भी तुम चालाकी से बाज न आये, एक आंख खोलकर देखने लगे कि कोई तुम्हें देख तो नहीं रहा। अत: दंड तो तुम्हें ही दूंगा। आज से तुम एक आंख वाले हो जाओगे।'
यह सुनते ही कोवे 'हाय! हाय!!' कर उठे और गरुड़ जी से ऐसा दण्ड न देने की प्रार्थना की। तब दया करके गुरुड़ जी ने दंड कुछ हल्का किया, कहा- 'जाओ, तुम्हारी आंखें तो दोनों रहेंगी, लेकिन पुतली एक ही रहेगी। उस पुतली को तुम जिस आंख में चाहोगे ले जाकर देख सकोगे।' उसी दंड को कौवे अभी तक भोग रहे हैं।वचनेश त्रिपाठी
टिप्पणियाँ