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गांधी जी के विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए गठित हुआ केन्द्र अपने मूल उद्देश्यों से भटक गया है और विवादों में घिर गया है। करोड़ों रुपयों की कीमत वाले केन्द्र में आय एवं मालिकाना हक के मामलों को लेकर केन्द्रीय समिति तथा राज्य के गांधी स्मारक ट्रस्टों में पड़ी दरारें यहां तक बढ़ चुकी हैं कि पुलिस के संरक्षण में बैठकें आयोजित करनी पड़ रही हैं।
उल्लेखनीय है कि 1969 तक देश भर के सभी गांधी स्मारक केन्द्रों का संचालन केन्द्रीय गांधी स्मारक निधि समिति के तत्वावधान में किया जाता था। 25 साल पहले इसका विकेन्द्रीकरण करने की शुरुआत की गयी। इस विकेन्द्रीकरण की योजना के अनुसार राज्य के लिए अलग-अलग गांधी स्मारक ट्रस्टों का गठन किया गया। पर विगत चार वर्षों से केन्द्रीय गांधी स्मारक निधि समिति तथा उसके पदाधिकारी अचानक सक्रिय हो गये। केन्द्रीय गांधी स्मारक निधि समिति के शीर्षस्थ पदाधिकारी विभिन्न गांधी स्मारक संस्थानों की यात्रा कर गांधीजी के विचारों की चर्चा तथा जागरण करने की बजाय उन स्मारकों-भवनों तथा जमीन पर केन्द्रीय गांधी स्मारक निधि समिति का अधिकार जताने की कोशिश करने लगे। पुणे के उप नगर कोथरूड में स्थित गांधी भवन भी इन विवादों की चपेट में इस कारण आ गया क्योंकि जमीन के अलावा गांधीजी के विचारों का प्रचार-प्रसार करने के लिए राज्य सरकार द्वारा दिये गये 1.5 करोड़ रुपये की अनुदान राशि पर भी केन्द्रीय गांधी स्मारक निधि समिति ने अपना हक जताने की कोशिश की। समिति के महासचिव रामचंद्र राही ने पुणे में सार्वजनिक तौर पर दोहराया कि केन्द्रीय गांधी स्मारक निधि समिति ने महाराष्ट्र गांधी स्मारक ट्रस्ट को भंग कर दिया है इसलिए उसकी सारी की सारी जमीन-जायदाद तथा बैकों में जमा दान की राशि अब केन्द्रीय गांधी स्मारक ट्रस्ट के अधीन हो चुकी है।
केन्द्रीय समिति के इन इरादों को भांपते हुए महाराष्ट्र गांधी स्मारक निधि ट्रस्ट के अध्यक्ष डा. कुमार ने कहा कि केन्द्रीय समिति द्वारा 25 वर्ष पूर्व की गई पहल तथा पारित किए गए प्रस्ताव के अनुसार ही विकेन्द्रित तौर पर महाराष्ट्र गांधी स्मारक निधि ट्रस्ट का गठन एवं संचालन हुआ है, जो पूरी तरह उचित है। न्यायालय ने भी इसी वास्तविकता की पुष्टि की है। केवल आर्थिक पहलू एवं लाभ को लेकर केन्द्रीय समिति अपनी बेढंगी चाल चल रही है। इसी बीच केन्द्रीय गांधी स्मारक समिति तथा महाराष्ट्र गांधी ट्रस्ट के मध्य जमीन-भवन तथा जायदाद को लेकर हो रहे विवाद का लाभ उठाने के लिए पुणे के कुछ भवन निर्माता भी उतावले हो गए हैं। इस जमीन पर इन भवन निर्माताओं की नजर पहले से ही टिकी हुई थी। यही कारण है कि पुणे के कुछ दलालों ने राज्य मंत्रिमंडल के एक शीर्ष मंत्री का हवाला देकर यह जमीन उन्हें देने के लिए संस्था के पदाधिकारियों से धमकी भरी भाषा में बात तक करनी शुरू कर दी है।
उधर औरंगाबाद के महाराष्ट्र गांधी स्मारक निधि समिति की जमीन तथा भवन हथियाने का भी प्रयास किया जा रहा है। औरंगाबाद के समर्थनगर क्षेत्र में स्थित यह जमीन केन्द्रीय गांधी स्मारक निधि समिति की थी, जिस पर बाद में महाराष्ट्र की समिति ने विभिन्न चरणों में छात्रावास, चरखा केन्द्र, विकलांग विकास केन्द्र तथा बालासाहब पारदे अकादमी आदि का निर्माण कराया। 22 हजार 500 वर्ग फीट में फैले इस केन्द्र का मौजूदा व्यापारिक मूल्य 30 करोड़ रुपए से भी अधिक है, जिसे हथियाने की कोशिश बड़े सुनियोजित ढंग से की जा रही है। औरंगाबाद के गांधी भवन की यह जमीन हथियाने हेतु इस वर्ष जून महीने में केन्द्रीय समिति से जुड़े लोगों ने परिसर में स्थित छात्रावास के छात्रों को डरा-धमका कर छात्रावास छोड़ जाने हेतु कहा। गरीब, ग्रामीण तथा जरूरतमंद छात्रों के लिए स्थापित इस छात्रावास के 13 कमरों पर उन्होंने जबरन ताले भी लगा दिये। गांधी स्मारक भवन, औरंगाबाद तथा केन्द्रीय गांधी स्मारक निधि समिति के बीच जमीन तथा भवन के मालिकाना हक को लेकर छिड़ा विवाद इस हद तक पहुंच गया कि इन दोनों संस्थाओं के पदाधिकारियों ने एक-दूसरे के विरुद्ध गांधी स्मारक परिसर में प्रवेश करने पर न्यायालय द्वारा प्रतिबंध के आदेश भी जारी करवा दिए। हिंसा की आशंका को देखते हुए गांधी भवन में पिछले दिनों सम्पन्न हुई बैठक पुलिस की उपस्थिति और कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था के बीच हुई। यह सब जानकर स्थानीय लोगों की पीड़ा यह है कि जिन गांधी जी ने कभी जमीन और पैसों का मोह नहीं रखा, उनकी मृत्यु के बाद उनकी स्मृति में, उन्हीं के नाम के साथ गठित हुई संस्थाओं द्वारा जमीन तथा पैसा हथियाने के हरसंभव प्रयास किये जा रहे हैं।
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